डिसइनवेस्टमेंट सरकार की फिस्कल प्लानिंग का अहम हिस्सा रहा है। पिछले कुछ सालों में सरकार यूनियन बजट में डिसइनवेस्टमेंट का टारगेट तय करती आ रही है। सरकार बताती है कि नए वित्त वर्ष में वह सरकारी कपनियों में हिस्सेदारी बेचकर कितने पैसे जुटाएगी। सरकार यह भी बताती है कि वह किन सरकारी कंपनियों में विनिवेश अगले वित्त वर्ष में करेगी। हालांकि, पिछले एक-दो सालों में इस ट्रेंड में कमी आई है। सवाल है कि क्या सरकार 1 फरवरी, 2025 को पेश होने वाले यूनियन बजट में डिसइनवेस्टमेंट का टारगेट तय करेगी?
इस वित्त वर्ष के बजट में नहीं था डिसइनवेस्टमेंट का टारगेट
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने इस वित्त वर्ष के लिए पेश बजट में 'डिसइनवेस्टमेंट' (Disinvestment) शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था। इसकी जगह सरकार ने बताया था कि 'मिसलेनियस कैपिटल रिसीट' से सरकार को 50,000 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल हो सकता है। सरकार की फिस्कल प्लानिंग की जानकारी रखने वाले लोगों का मानना है कि इससे पता चलता है कि सरकार रेवेन्यू के स्रोत के लिहाज से डिसइनवेस्टमेंट पर फोकस घटा रही है। पिछले वित्त वर्ष के विनिवेश के टारगेट में कई बार संशोधन किया था। आखिर में सरकार तय लक्ष्य से काफी कम पैसा डिसइनवेस्टमेंट से जुटा सकी थी।
सरकार की डिविडेंड से हो रही मोटी कमाई
खास बात यह है कि कि 2024 की शुरुआत से सरकारी कपनियों के शेयरों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। जहां निफ्टी का रिटर्न 10.41 फीसदी रहा वहीं पीएसयू स्टॉक्स का रिटर्न 23.35 फीसदी रहा। ऐसे में सरकार के लिए ज्यादा कीमत पर सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर पैसे जुटाने का अच्छा मौका है। DIPAM के डेटा के मुताबिक, बीते एक दशक में सरकार ने सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 4.36 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं। इस दौरान सरकार को सरकारी कंपनियों से 5.09 लाख करोड़ रुपये का डिविडेंड मिला है। इस तरह डिविडेंड का अमाउंट डिसइनवेस्टमेंट के अमाउंट से ज्यादा है।
विनिवेश से ज्यादा पैसा डिविडेंड से मिला है
सरकार को अपनी कंपनियों से काफी ज्यादा डिविडेंड मिला है। इसकी बड़ी वजह यह है कि सरकारी कंपनियों का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। इससे उनका मुनाफा बढ़ा है। अगर सरकारी कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है तो इससे सरकार को भी डिविडेंड के रूप में ज्यादा पैसे मिलते हैं। पिछले पांच साल में सरकार को विनिवेश से करीब 1.06 लाख करोड़ रुपये मिले हैं, जबकि टैक्स-फ्री डिविडेंड 2.7 लाख करोड़ रुपये रहा है।
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डिसइनवेस्टमेंट पर नहीं होगा सरकार का फोकस
एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिविडेंड से बढ़ती सरकार की कमाई को देख ऐसा लगता है कि सरकार की दिलचस्पी सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाने में कम हुई है। अगर सरकार पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखती है तो उसे डिविडेंड भी मिलता रहेगा और जरूरत पड़ने पर हिस्सेदारी बेचकर पैसे जुटाने का विकल्प भी खुला रहेगा। ऐस में 1 फरवरी को पेश होने वाले यूनियन बजट में भी सरकार का फोकस डिसइनवेस्टमेंट पर होने की उम्मीद कम है।