Budget 2025: यूनियन बजट 2025 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के ऐलान पर करीबी नजरें होंगी। सरकार के अगले वित्त वर्ष के कर्ज लेने के टारगेट पर खास नजरें होंगी। इसकी वजह यह है कि सरकार के कर्ज लेने के टारगेट का सीधा असर लोन के इंटरेस्ट रेट पर पड़ता है। सरकार के ज्यादा कर्ज लेने पर इंटरेस्ट रेट बढ़ने के आसार होते हैं। पिछले सालों में सरकारों को अपने खर्च को पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ा है। इससे सरकार को हर वित्त वर्ष में अपने रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा सिर्फ कर्ज का इंटरेस्ट चुकाने पर खर्च करना पड़ता है।
इस वित्त वर्ष में कर्ज से 15.51 लाख करोड़ जुटाने का टारगेट
पिछले सालों में कर्ज का इंटरेस्ट चुकाने पर सरकार का खर्च लगातार बढ़ा है। FY20 में सरकार के कुल खर्च में इंटरेस्ट पेमेंट की हिस्सेदारी 23 फीसदी थी। FY25 में इसके बढ़कर 24 फीसदी पहुंच जाने का अनुमान है। कोविड की महामारी के दौरान सरकार पर इंटरेस्ट पेमेंट का बोझ बढ़ा था। तब से सरकार इंटरेस्ट पर होने वाले खर्च में कमी लाने की कोशिश कर रही है। FY25 में सरकार ने कर्ज से 15.51 लाख करोड़ रुपये जुटाने का टारगेट रखा था। एनालिस्ट्स का कहना है कि सरकार के फिस्कल डेफिसिट में कमी के बावजूद सरकार का कर्ज टारगेट के करीब रह सकता है।
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सरकार बॉन्ड के जरिए मार्केट से लेती है कर्ज
सरकार अपने कुल खर्च और कुल इनकम के बीच के फर्क को पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेती है। कुछ पैसा उसे सरकारी सेविंग्स स्कीम में लोगों के निवेश से मिल जाता है। सरकार बॉन्ड्स के जरिए बाजार से कर्ज लेती है। सरकार के ज्यादा कर्ज लेने पर मार्केट में बॉन्ड की सप्लाई बढ़ जाती है। सरकार को बॉन्ड को अट्रैक्टिव बनाने के लिए उसका इंटरेस्ट रेट ज्यादा रखना पड़ता है। इससे आम तौर पर कर्ज की लागत बढ़ जाती है। बैंक लोन पर ज्यादा इंटरेस्ट वसूलते हैं, जिसे आम आदमी के लिए भी कर्ज महंगा हो जाता है।
क्या सरकार के कर्ज में कमी आ सकती है?
सवाल है कि क्या हर साल इंटरेस्ट पर होने वाले सरकार के खर्च को कम किया जा सकता है? क्या इसे 20 फीसदी तक के लेवल पर लाया जा सकता है। इसका एकमात्र तरीका यह है कि सरकार बाजार से जितना कर्ज लेती है, उसमें धीरे-धीरे करनी होगी। इसके लिए सरकार को दूसरे स्रोतों से पैसे जुटाने की कोशिश करनी होगी। सरकार अपनी स्मॉल सेविंग्स स्कीम को बढ़ावा दे सकती है।