मिडिल क्लास को उम्मीद है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण उनकी जिंदगी आसान बनाने के लिए यूनियन बजट में बड़े ऐलान करेंगी। पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ती महंगाई ने उनकी मुश्किल बढ़ा दी है। खासकर खाने-पीने की चीजों के दाम काफी बढ़े हैं। पेट्रोल-डीजल के लिए उन्हें प्रति लीटर करीब 100 रुपये की कीमत चुकानी पड़ रही है। इधर, पिछले करीब 8-10 सालों में सरकार ने इनकम टैक्स के मामले में भी ज्यादा राहत नहीं दी है। इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम में अब भी बेसिक एग्जेम्प्शन लिमिट 2.5 लाख रुपये बनी हुई है। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी की लिमिट 2014 के बाद नहीं बढ़ाई गई है। इस बीच, रुपये की वैल्यू काफी घटी है।
अभी इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम (old regime of income tax) में सालाना 10 लाख रुपये से ज्यादा इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगता है। नई रीजीम (new regime of income tax) में सालाना 15 लाख रुपये से ज्यादा इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगता है। मिडिल क्लास का कहना है कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, उससे सालाना 10-15 लाख रुपये की इनकम ज्यादा नहीं रह गई है। दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में तो इस कमाई में परिवारों को गुजारा करना तक मुश्किल हो गया है। मिडिल क्लास का कहना है कि सरकार को सालाना 10 लाख रुपये तक की इनकम को टैक्स से छूट देना चाहिए। साथ ही 15-20 लाख सालाना इनकम वाले लोगों पर टैक्स घटना चाहिए।
कोविड की महामारी के बाद से इकोनॉमी काफी हद तक पटरी पर लौट आई है। लेकिन, रोजगार के मौकों में पर्याप्त इजाफा नहीं हुआ है। आज बड़े इंजीनियरिंग कॉलेजों और बिजनेस स्कूलों से बढ़ाने करने वाले लोगों तक को एंप्लॉयमेंट में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। रोजगार के मौकों की कमी से मिडिल क्लास को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। मिडिल क्लास का कहना है कि प्रोफेशनल पढ़ाई करने के बावजूद युवाओं को काफी कम सैलरी वाली नौकरी करने को मजबूर होना पड़ रहा है।
कोविड की महामारी के बाद से महंगाई तेजी से बढ़ी है। सरकार और RBI की काफी कोशिश के बाद रिटेल इनफ्लेशन तो काबू में आया है। लेकिन, फूड इनफ्लेशन अब भी कंट्रोल से बाहर है। फल-सब्जियों, दलहन, खाद्य तेलों की कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इससे मिडिल क्लास को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। लोअर मिडिल क्लास तो काफी ज्यादा मुश्किल में है। वह पिछले कई सालों से पेट्रोल के लिए प्रति लीटर 100 रुपये की कीमत चुका रहा है। ऐसे में खानेपीने की चीजों की बढ़ती कीमतों ने उसका जीना हराम कर दिया है।
आम लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में इनकम की ग्रोथ काफी सुस्त रही है। नौकरी करने वाले लोगों का कहना है कि सैलरी में सालान इंक्रीमेंट ना के बराबर है। इससे उनके पास सेविंग्स के लिए पैसे नहीं बच रहे हैं। कोविड की महामारी खत्म होने के बाद कंपनियों की कमाई में अच्छी ग्रोथ देखने को मिली थी। लेकिन, कंपनियों ने एंप्लॉयीज की सैलरी में उस अनुपात में वृद्धि नहीं की। इस बीच, घर का किराया, ऑफिस आनेजाने का खर्च, परिवार का मासिक बजट काफी बढ़ गया।
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सरकार ने FY25 में पूंजीगत खर्च के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये का टारगेट तय किया था। लेकिन, इस टारगेट के पूरा होने की उम्मीद नहीं है। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लोकसभा चुनावों की वजह से सरकार का पूंजीगत खर्च काफी कम रहा। इसका सीधा असर आर्थिक गतिविधियों पर पड़ा है। आर्थिक गतिविधियां घटने से लोगों के हाथ में पर्याप्त पैसा नहीं पहुंच पा रहा है। इससे लोगों को बुनियादी जरूरतें पूरी करने में भी मुश्किल आ रही है।