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बिहार में मोदी फॉर्मूला की बेमिसाल सफलता में सामाजिक न्याय के भगवाकरण का बड़ा हाथ

मुस्लिम-यादव आधारित लालू प्रसाद यादव की राजनीति का मिथ तो 2005 में ही खत्म हो गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो खुद पिछड़ी जाती से आते हैं, उनका बिहार से खास लगाव है। उन्होंने राज्य के विकास को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। 'पलटू राम' की छवि के बावजूद उन्होंने नीतीश कुमार पर भरोसा बनाए रखा

Amitabh Sinhaअपडेटेड Nov 14, 2025 पर 6:06 PM
बिहार में मोदी फॉर्मूला की बेमिसाल सफलता में सामाजिक न्याय के भगवाकरण का बड़ा हाथ
नीतीश कुमार की छवि धर्मनिरपेक्ष और ईमानदार नेता की रही है। नीतीश खुद पिछड़ी जाति से आते हैं। इससे बिहार में एनडीए को पैठ बढ़ाने में मदद मिली है।

बीजेपी ने बिहार में जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया है। बीजेपी की यह जीत एकतरफा दिख रही है। वह दिन खत्म हुए जब बीजेपी को अगड़ी जातियो के सपोर्ट वाली 'शहरी-ब्राह्मण-बनिया' पार्टी माना जाता था। इसने अब ग्रामीण इलाकों में अति पिछड़ी जतियों (ईसीबी) और महादलितों में पैठ बना ली है।

मुस्लिम-यादव आधारित लालू प्रसाद यादव की राजनीति का मिथ तो 2005 में ही खत्म हो गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो खुद पिछड़ी जाती से आते हैं, उनका बिहार से खास लगाव है। उन्होंने राज्य के विकास को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। 'पलटू राम' की छवि के बावजूद उन्होंने नीतीश कुमार पर भरोसा बनाए रखा। यह गेम चेंजर साबित हुआ।

बिहार की राजनीति में जातियों की बड़ी भूमिका है। 2022-23 के जाति-सर्वे के मुताबिक, राज्य में ईबीसी की आबादी 36 फीसदी, ओबीसी की आबादी 27.1 फीसदी, एससी की 19.6 फीसदी, अगड़ी जातियों की 15.5 फीसदी और एसटी की 1.6 फीसदी है। जाति आधारित राजनीति वाले बिहार में विकास का मसला पीछे रह जाता है। हर जाति के अपने नेता रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर 1970 के दशक में पिछड़ी जातियों के नेता बनकर उभरे थे। बाद में लालू यादव, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान ने दलितों और पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी की।

इनमें लालू प्रसाद यादव सबसे स्मार्ट थे। यादवों के मजबूत समर्थन के दम पर लालू ने खुद को अल्पसंख्यकों के मसीहा के रूप में पेश किया। उन्होंने ईबीसी और महा दलितों को भी साधा। उन्होंने राजपूतों को भी भरोसे में लिया। उनके करीबी सहयोगी रघुवंश प्रताप सिंह इसके उदाहरण थे। बाद में नीतीश कुमार और राम विलास पासवान ने जनता दल से नाता तोड़ लिया। कुर्मी-कुशवाहा और दलित मतदाताओं पर लालू की पकड़ ढीली पड़ गई।

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