आखिर राहुल गांधी के 'वोट चोरी' के आरोपों को मतदाताओं ने क्यों किया रिजेक्ट?

अब तक बिहार विधानसभा चुनावों के जो नतीजे आए हैं, उससे महागठबंधन भारी नुकसान में दिख रहा है। कांग्रेस की हालत तो और भी पतली है। कांग्रेस ने बिहार में 61 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस सिर्फ 4 सीटों पर आगे दिख रही है। इस तरह से कांग्रेस का प्रदर्शन बड़ी पार्टियों में सबसे खराब दिख रहा है

अपडेटेड Nov 14, 2025 पर 2:28 PM
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कभी पूरे देश में राज करने वाली कांग्रेस आज बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले राज्य में हाशिये पर दिख रही है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बिहार में 'वोट अधिकार यात्रा' की थी। उन्होंने केंद्र की एनडीए सरकार पर वोट चोरी का आरोप लगाया था। करीब हर रैली में उनका फोकस वोट चोरी के आरोप पर होता था। ऐसा लगता था कि उन्हें बिहार की एनडीए सरकार को विधानसभा चुनावों में पराजित करने का बड़ा हथियार मिल गया है। लेकिन, 14 नवंबर को मतदाताओं का जो फैसला सामने आया है, उससे लगता है कि उन्होंने वोट चोरी के आरोप को पूरी तरह से रिजेक्ट कर दिया है।

कांग्रेस 10 फीसदी सीटें भी नहीं जीत पाई

अब तक बिहार विधानसभा चुनावों के जो नतीजे आए हैं, उससे महागठबंधन भारी नुकसान में दिख रहा है। Congress की हालत तो और भी पतली है। कांग्रेस ने बिहार में 61 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस सिर्फ 4 सीटों पर आगे दिख रही है। इस तरह से कांग्रेस का प्रदर्शन बड़ी पार्टियों में सबसे खराब दिख रहा है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस 10 फीसदी सीटें भी नहीं जीत पाएगी।


कांग्रेस का प्रदर्शन 2020 चुनावों से भी खराब

कभी पूरे देश में राज करने वाली कांग्रेस आज बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले राज्य में हाशिये पर दिख रही है। इस बार से अच्छा प्रदर्शन को कांग्रेस ने 2020 में किया था। उसने कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से उसने 19 सीटें जीती थी। ऐसा लगता है कि लोकल मसलों की जगह राष्ट्रीय मसलों पर फोकस करना कांग्रेस पर भारी पड़ा। खास बात यह है कि कांग्रेस का यह प्रदर्शन न सिर्फ खुद उसके लिए नुकसानदायक है बल्कि इससे महागठबंधन को भी भारी नुकसान होता दिख रहा है।

सिर्फ SIR के विरोध पर राहुल गांधी ने किया फोकस

पिछले करीब चार महीनों से कांग्रेस का फोकस सिर्फ वोट चोरी के आरोप और स्पेशल इनटेंसिव रिवीजन (SIR) पर था। कांग्रेस और इंडिया अलायंस ने न सिर्फ इस मसले का बिहार में विरोध किया था बल्कि संसद तक में इसके विरोध में प्रदर्शन किए गए। बिहार विधानसभा चुनावों के जो नतीजे आ रहे हैं, उससे लगता है कि बिहार के मतदाताओं ने लोकल मसलों पर ज्यादा गौर किया। यह इस बात का भी संकेत है कि कांग्रेस मतदाताओं खासकर आम लोगों का नब्ज पकड़ने में नाकाम है।

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मौजूदा हथियारों से कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना मुश्किल

1990 में जगन्नाथ मिश्र की सरकार के बाद से कांग्रेस कभी बिहार में अपनी पैठ बढ़ा नहीं पाई। उधर, एनडीए ने बदलती स्थिति के मुताबिक, खुद को बदला और वह एक बार फिर बिहार में न सिर्फ अपनी सरकार बनाने जा रही है बल्कि वह 200 से ज्यादा सीटें जीतती दिख रही है। इस चुनाव के नतीजों से फिर से यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस को बिहार जैसे राज्यों में अपनी पोजीशन ठीक करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। वह वोट चोरी जैसे आरोपों से बड़े चुनाव नहीं जीत सकती।

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