महागठबंधन की सरकार बिहार में नहीं बनने जा रही, इसका अंदाजा तो 11 नवंबर को एग्जिट पोल के नतीजों से मिल गया था। लेकिन, राजद का इतना बुरा हश्र होगा यह शायद किसी ने नहीं सोचा था। राजद को जितनी सीटें मिलती दिख रही है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस मामले में एग्जिट पोल के नतीजे भी फेल रहे। शायद ही किसी एग्जिट पोल में महागठबंधन खासकर राजद को इतनी कम सीटें मिलने की बात कही गई थी। सवाल है कि आखिर तेजस्वी का मुख्यमंत्री बनने का सपना क्यों चकनाचूर हो गया? तेजस्वी से कहां हुई असली भूल?
महागठबंधन को 40 से कम सीटें
RJD को करीब 30 सीटें मिलती दिख रही हैं। Mahagathbandhan की सीटें 40 दिख रही हैं। अगर इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजों की तुलना 2020 के नतीजों से की जाए तो बहुत बड़ा फर्क नजर आता है। तब राजद 75 सीटों के साथ सूबे की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में सामने आई थी। इस बार लालू यादव की पार्टी को जितनी सीटें मिलती दिख रही है, उसकी कल्पना शायद ही यादव परिवार के किसी सदस्य ने की होगी। यह न सिर्फ राजद बल्कि पार्टी के आम कार्यकर्ताओं के लिए भी बड़ा झटका है।
रोजगार और महिलाओं पर फोकस का नहीं मिला फायदा
अब तक आए चुनावी नतीजों से ऐसा लगता है कि रोजगार और बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के वादों का इस बार बिहार के मतदाताओं पर असर नहीं पड़ा। इतना ही नहीं, तेजस्वी ने नीतीश की तरह महिला मतदाताओं को भी लुभाने की कोशिश की। उन्होंने महिलाओं से संबंधित वेल्फेयर स्कीम पर फोकस किया। उन्होंने सरकार बनने पर महिलाओं को 30,000 रुपये देने का वादा किया। राजद और कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में माई बहिन योजना शुरू करने की बात कही गई। इसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर और पिछले समुदाय की महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये देना का वादा किया। पूरे साल का एडवान्स पेमेंट (30,000 रुपये) 14 जनवरी, 2026 को करने का वादा किया गया।
नीतीश के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश असफल
तेजस्वी यादव का यह वादा नीतीश कुमार के महिलाओं के बैंक अकाउंट में 10,000 रुपये ट्रांसफर करने के ठीक एक दिन बाद किया गया। नीतीश सरकार ने राज्य की 25 लाख महिलाओं के बैंक खातों में यह पैसा ट्रांसफर किया। कहा गया है कि इस पैसे से महिलाओं को अपना खुद का रोजगार शुरू करने में मदद मिलेगी। नीतीश ने महिलाओं के वेल्फेयर के लिए पहली बार किसी योजना का ऐलान नहीं किया। 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लड़कियों और महिलाओं पर फोकस करना शुरू कर दिया था।
मुस्लिम-यादव पार्टी की धारणा नहीं तोड़ सकें तेजस्वी
आखिर तेजस्वी को मतदाताओं ने क्यों रिजेक्ट कर दिया? कुछ एनालिस्ट्स का कहना है कि तेजस्वी राजद के बारे में मतदाताओं की इस धारणा तोड़ने में नाकाम रहे कि यह सिर्फ मुस्लिम-यादवों की पार्टी है। सक्रिय राजनीति में आने के बाद से ही तेजस्वी इस धारणा को तोड़ने में नाकाम रहे। सच यह है कि उन्होंने इस धारणा को तोड़ने के लिए पर्याप्त कोशिश भी नहीं की। ईबीसी और दलित मतदाताओं में अपनी पैठ बढ़ाने के बजाय उन्होंने युवाओं और महिलाओं पर फोकस किया।
जंगलराज पर जदयू-भाजपा के फोकस से राजद को बड़ा नुकसान
तेजस्वी ने बिहार में रोजगार उपलब्ध कराने और हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा किया। लेकिन, इस पर जदयू और बीजेपी के जंगलराज का नैरेटिव भारी पड़ा। प्रधानमंत्री अपनी हर रैली में मतदाताओं को जंगलराज की याद दिलाने की कोशिश की। उन्होंने युवाओं को भी जंगलराज के बारे में बताने की कोशिश की, जिनका जन्म उस दौर के बाद हुआ था। महागठबंधन ने राज्य में कानून व्यवस्था की आज की स्थिति पर नीतीश पर हमले किए। लेकिन, उसका मतदाताओं पर असर नहीं पड़ा।