Manoj Kumar Death: ‘पूरब और पश्चिम’ का सितारा अस्त, कहानी हरिकिशन गोस्वामी के 'भारत कुमार' बनने की
Manoj Kumar Death: जब भी देशभक्ति फिल्मों की बात होगी, मनोज कुमार का नाम सबसे पहले आएागा। उन्होंने देशभक्ति को सिर्फ परदे पर नहीं, दिलों में भी उतारा। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर ‘उपकार’ बनाई। अमिताभ को जब इंडस्ट्री छोड़नी थी, तब उन्हें मौका दिया। अब ‘भारत कुमार’ हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी शख्सियत, उनका किरदार, उनकी फिल्में हमेशा जिंदा रहेंगी।
मनोज कुमार ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को तब मौका दिया, जब वो असफलता से हताश बॉलीवुड छोड़ रहे थे।
Manoj Kumar Death: 'जब जीरो दिया मेरे भारत ने', 'मेरे देश की धरती सोना उगले', 'मेरा रंग दे बसंती चोला'... इन गानों की आवाज जब भी कान में पड़ती है, तो पूरे बदन में देशभक्ति की लहर दौड़ जाती है। और आंखों के सामने एक छरहरी काया वाले शख्स की तस्वीर आ जाती है... मनोज कुमार।
भारत में देशभक्ति फिल्मों का ट्रेंड शुरू करने का श्रेय मनोज कुमार को ही है। उनके किरदार अक्सर 'भारत' होता था। वह अपने किरदार में इस कदर रच-बस जाते थे कि दुनिया उन्हें मनोज कुमार से ज्यादा 'भारत कुमार' के नाम से ही जानने लगी।
हरिकिशन कैसे बने मनोज कुमार
यह भी बड़ी दिलचस्प बात है कि मनोज कुमार का असली नाम भी मनोज कुमार नहीं था। वह 24 जुलाई 1937 को ऐबटाबाद (अब पाकिस्तान) में हरिकिशन गोस्वामी के रूप में जन्मे थे।
हरिकिशन को फिल्मों का बड़ा शौक था। उन्हें दिलीप कुमार की शबनम (1949) फिल्म काफी पसंद आई। इसमें दिलीप साब के किरदार का नाम था, मनोज कुमार। वहीं, से हरिकिशन बाबू ने तय कर लिया कि वो फिल्मी दुनिया में जाएंगे और नाम रखेंगे मनोज कुमार।
फिल्मों में कैसे हुई मनोज की एंट्री
मनोज कुमार 19 साल की उम्र में दिल्ली से मुंबई आए। वह साल था 1956। उनकी आंखों में भी अनगिनत नौजवानों की तरह हीरो बनने का सपना था। उन्हें साल 1957 में पहली फिल्म मिली फैशन। किरदार बेहद छोटा था, वो भी 80-90 साल के भिखारी।
मनोज को बतौर हीरो अपनी पहली फिल्म के लिए 4 साल का इंतजार करना पड़ा। उन्हें पहला ब्रेक मिला 1961 में 'कांच की गुड़िया'। लेकिन, उनकी जिंदगी का रास्ता बदला विजय भट्ट की फिल्म 'हरियाली और रास्ता' से, जो इसके एक साल बाद आई।
देशभक्ति फिल्मों से कैसे बने भारत कुमार
मनोज कुमार के करियर का सबसे अहम पड़ाव साल 1964 में आया। उस साल भगत सिंह पर बनी फिल्म 'शहीद'रिलीज हुई। इसमें मनोज कुमार ने भगत सिंह का किरदार इतने दमदार तरीके से निभाया कि लोगों के रोंगटे खड़े हो गए।
'शहीद' को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म और राष्ट्रीय एकता के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला। मनोज कुमार ने समारोह के लिए मनोज कुमार ने भगत सिंह की मां को भी बुलाया था। मनोज कुमार ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि कैसे इंदिरा गांधी ने आकर भगत सिंह की मां के पैर छूए थे। यहां से देशभक्ति फिल्मों का जो कारवां शुरू हुआ, वो पूरब और पश्चिम, उपकार, क्रांति जैसी कई फिल्मों तक जारी रहा।
लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनाई उपकार
फिल्म शहीद की स्क्रीनिंग के लिए दिल्ली में खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री आए थे। उन्होंने मनोज कुमार को अपने घर पर दावत भी दी। वहीं पर शास्त्री जी ने मनोज कुमार से कहा था कि आप मेरे 'जय जवान, जय किसान' नारे पर कोई फिल्म बनाओ।
मनोज कुमार ने इस नारे पर फिल्म बनाई 'उपकार।' इसी में महेंद्र कपूर की कालजयी आवाज में वो गाना है, 'मेरे देश की धरती सोना उगले।' हालांकि, अफसोस की बात यह रही कि इस फिल्म को खुद शास्त्री जी नहीं देख पाए, क्योंकि फिल्म रिलीज से पहले ही उनका ताशकंद में देहांत हो गया।
अमिताभ बच्चन की भी बदली जिंदगी
मनोज कुमार ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को तब मौका दिया, जब वो असफलता से हताश बॉलीवुड छोड़ रहे थे। उन्होंने BBC को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, 'अमिताभ लगातार नाकामी से हताश थे। वह मुंबई छोड़कर दिल्ली वापस जाने की सोच रहे थे। तब मैंने अमिताभ को रोका और अपनी फिल्म 'रोटी, कपड़ा और मकान' में मौका दिया। मुझे अमिताभ पूरा भरोसा था कि वो एक दिन बहुत बड़े स्टार बनेंगे।"
मनोज कुमार के बारे में एक किस्सा बड़ा मशहूर है। इसका जिक्र खुद मनोज कुमार ने कई इंटरव्यू में किया था। एक बार वो रेस्टोरेंट में आराम से सिगरेट सुलगा रहे थे। तभी एक लड़की बड़े गुस्से में आई। उसने मनोज कुमार को घूरा और कहा, 'भारत होते हुए सिगरेट पीते हो?' ये था उनकी देशभक्ति फिल्मों का असर।