Cloud seeding Delhi pollution: क्लाउड सीडिंग से नहीं रुकेगा दिल्ली का प्रदूषण, IIT-दिल्ली ने बताई असली वजह
Cloud seeding Delhi pollution: आईआईटी दिल्ली में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) दिल्ली की सर्दियों में होने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का न तो मुख्य और न ही भरोसेमंद तरीका हो सकता है, क्योंकि दिल्ली का मौसम इसके लिए उपयुक्त नहीं है।
क्लाउड सीडिंग से नहीं रुकेगा दिल्ली का प्रदूषण, IIT-दिल्ली ने बताई असली वजह
Cloud seeding Delhi pollution: आईआईटी दिल्ली में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) दिल्ली की सर्दियों में होने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का न तो मुख्य और न ही भरोसेमंद तरीका हो सकता है, क्योंकि दिल्ली का मौसम इसके लिए उपयुक्त नहीं है।
अध्ययन में कहा गया है कि क्लाउड सीडिंग को "अधिक से अधिक एक संभावित उच्च-लागत वाले, आपातकालीन और थोड़े समय के लिए इस्तेमाल के रूप में देखा जाना चाहिए, जो कड़े पूर्वानुमान मानदंडों पर निर्भर हो"। यह इस बात पर जोर देता है कि वायु प्रदूषण की समस्या का "निरंतर उत्सर्जन में कमी, सबसे व्यवहार्य और आवश्यक दीर्घकालिक समाधान है"।
IIT-दिल्ली ने तैयार की रिपोर्ट
यह रिपोर्ट, जो इस महीने सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज (CAS), आईआईटी दिल्ली द्वारा तैयार की गई है, "जलवायु विज्ञान संबंधी आंकड़ों (2011-2021), एरोसोल-क्लाउड इंटरैक्शन आकलन और प्रदूषक वाशआउट/रिकवरी को एकीकृत करने वाले एक व्यापक विश्लेषण" का परिणाम है।
दिल्ली सरकार ने 28 अक्टूबर को लगातार दो बार क्लाउड सीडिंग परीक्षण किए, जिसमें आईआईटी-कानपुर की एक टीम ने दिल्ली के कुछ हिस्सों के ऊपर एक छोटा विमान उड़ाया और सिल्वर आयोडाइड और नमक के कणों को फ्लेयर्स में छोड़ा।
इसका उद्देश्य कृत्रिम वर्षा कराना और इस प्रकार राजधानी के ऊपर से वायु प्रदूषण को कम करना था। ऐसा माना जाता है कि वर्षा वायु प्रदूषण को कम करती है क्योंकि यह एक प्राकृतिक सफाई तंत्र के रूप में कार्य करती है, जिससे हवा में मौजूद हानिकारक गैसें और धूल के कण नीचे जमीन पर गिर जाते हैं और हवा कुछ समय के लिए साफ हो जाती है।
पर्यावरण मंत्री ने जारी किया रिपोर्ट
परीक्षण के बाद दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा के कार्यालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 'Windy' वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, दो वर्षा की घटनाएं दर्ज की गईं - शाम 4 बजे नोएडा में 0.1 मिमी बारिश हुई, उसके बाद ग्रेटर नोएडा में 0.2 मिमी। दिल्ली में कोई वर्षा दर्ज नहीं की गई।
आईआईटी-दिल्ली की रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है 'क्या क्लाउड सीडिंग दिल्ली के वायु प्रदूषण से निपटने में मदद कर सकती है?', में कहा गया है कि- “दिसंबर से जनवरी के बीच जब प्रदूषण सबसे ज़्यादा होता है, उस समय हवा में नमी और संतृप्ति (moisture and saturation) बहुत कम होती है। यही वह समय है जब इस तकनीक की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन उस वक्त इसका असर नहीं होता।”
"हालांकि पश्चिमी विक्षोभ (WDs) संभावित सीडिंग स्थितियों के प्राथमिक चालक हैं, लेकिन ऐसे उपयुक्त मौसमी मौके बहुत कम और सीमित समय के लिए आते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, “जिन दिनों को क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त माना गया (जैसे बादल वाले दिन जब बारिश न हो), उन दिनों पर भी Moisture Suitability Index (MSI) के अनुसार, जरूरी तत्व जैसे नमी की गहराई, संतृप्ति (saturation) और वायुमंडलीय उभार (atmospheric lift) की पर्याप्त मात्रा नहीं होती, जो सफल क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी हैं।”
विश्लेषण में ये भी पुष्टि की गई है कि भारी प्राकृतिक वर्षा वास्तव में PM2.5, PM10 और NOX को दूर करने में अत्यधिक प्रभावी है, जबकि "हल्की बारिश न्यूनतम प्रभाव डालती है"। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि "काफी हद तक वर्षा के बाद भी, वायु गुणवत्ता में सुधार अल्पकालिक होता है, और लगातार उत्सर्जन के कारण प्रदूषक स्तर आमतौर पर 1-5 दिनों के भीतर पूर्व-घटना स्तर पर आ जाती है।"
क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल होने वाले केमिकल नुकसानदायक
इसके अलावा, अध्ययन में कहा गया है कि "बारिश के बाद ओजोन लेयर अक्सर बढ़ जाती है"। इसके अलावा रिपोर्ट ने यह चिंता भी जताई कि क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल होने वाले रसायन (जैसे सिल्वर आयोडाइड - AgI) पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं, साथ ही इस प्रक्रिया की लागत बहुत अधिक है और इससे जुड़ी वैज्ञानिक अनिश्चितताएं भी बनी हुई हैं।
अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि वाहनों की आवाजाही, औद्योगिक गतिविधियों, निर्माण धूल, कृषि बायोमास जलाना और आवासीय हीटिंग सहित विविध स्रोतों से उत्सर्जन में निरंतर कमी, वायु प्रदूषण का "सबसे व्यवहार्य और आवश्यक दीर्घकालिक समाधान" बना हुआ है।
दिसंबर 2024 में संसद को क्लाउड सीडिंग की जानकारी दी गई
2024 में, तत्कालीन दिल्ली सरकार ने केंद्र से दिल्ली में सर्दियों की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए आपातकालीन उपाय के रूप में क्लाउड सीडिंग के बारे में पूछा था, जिसके बाद "भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से सर्दियों के दौरान दिल्ली में कृत्रिम वर्षा के लिए क्लाउड सीडिंग की व्यवहार्यता के बारे में विशेषज्ञ की राय मांगी थी।" वहीं, इस बारे में दिसंबर 2024 में संसद को जानकारी दी गई थी कि क्लाउड सीडिंग के जरिए सर्दियों में कृत्रिम वर्षा कराने की संभावना और व्यवहार्यता पर चर्चा की गई थी।
सरकार ने संसद को बताया कि विशेषज्ञों का मानना है कि "प्रभावी क्लाउड सीडिंग के लिए बादलों की खास परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर दिल्ली के ठंडे और शुष्क सर्दियों के महीनों में अनुपस्थित होती हैं।"
आईआईटी-दिल्ली अध्ययन के मार्गदर्शकों में से एक, एरोसोल वैज्ञानिक शहजाद गनी ने शुक्रवार को द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "अध्ययन के दौरान पिछले आंकड़ों का अध्ययन किया गया, जिससे पता चला कि दिल्ली की प्रदूषित सर्दियों के दौरान, वायुमंडलीय परिस्थितियां क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। यहां तक कि जब बारिश होती है, तो प्रदूषण कुछ घंटों या ज्यादा से ज्यादा एक-दो दिन में वापस आ जाता है।" उन्होंने आगे कहा, "क्लाउड सीडिंग और स्मॉग टावर जैसे समाधान ध्यान भटकाने वाले और संसाधनों की बर्बादी हैं।"