Vijay Karur Rally Stampede : तमिलनाडु के करूर में एक्टर और TVK चीफ विजय की रैली में हुए हादसे में 41 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोगों का इलाज अबतक अस्पताल में चल रहा है। बीते शनिवार यानी 27 सितंबर को हुए हादसे में 10 बच्चों की भा मौत हो गई थी। वहीं इस हादसे पर शुक्रवार को मद्रास हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान ने TVK चीफ विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) और तमिलनाडु पुलिस ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए।
घटना के जांच के लिए बना SIT
चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने करूर भगदड़ मामले में सीबीआई जांच से इनकार करते हुए तमिलनाडु सरकार और राजनीतिक दलों को सख्त एसओपी बनाने का सुझाव दिया है। अदालत ने साफ किया कि राजनीतिक रैलियों और बैठकों के आयोजन में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। घटना की जांच के लिए पुलिस महानिरीक्षक (उत्तर) असरा गर्ग के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है।
एक्टर विजय की पार्टी ने रखा अपना पक्ष
तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए भगदड़ की जिम्मेदारी पुलिस पर डाली। पार्टी का कहना था कि जब समर्थक विजय से मिलने का इंतज़ार कर रहे थे, तभी भीड़ में कुछ लोगों ने चप्पलें फेंकीं। इसके बाद पुलिस ने बिना चेतावनी दिए लाठीचार्ज कर दिया, जिससे भगदड़ मच गई। टीवीके ने आरोप लगाया कि पुलिस हालात को संभालने में नाकाम रही। टीवीके के वकील का कहना था कि पुलिस ने भीड़ को संभालने में गंभीर लापरवाही की और अगर स्थिति को शांत तरीके से संभाला जाता तो भगदड़ नहीं होती। वहीं, तमिलनाडु पुलिस ने पलटवार करते हुए टीवीके पर आरोप लगाया कि पार्टी ने अपने समर्थकों की सुरक्षा को लेकर खुद लापरवाही बरती।
अदालत ने लगाई फटकार
अदालत में पुलिस अधिकारियों ने कहा कि टीवीके नेताओं ने अपने समर्थकों की कोई परवाह नहीं की और घटना के समय वहां से चले गए। वहीं, भगदड़ मामले में गिरफ़्तारी से बचने के लिए टीवीके के दो पदाधिकारियों ने अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई थी। मद्रास हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि टीवीके इतनी बड़ी भीड़ को क्यों नहीं संभाल पाई और विजय के रोड शो में कार्यकर्ताओं द्वारा की गई तोड़फोड़ और अव्यवस्था का भी उल्लेख किया। पार्टी की ओर से वकील ने दलील दी कि यह मामला पूरी तरह से "राज्य की ओर से गढ़ा गया" है और उनका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था।
वकील ने दलील दी, "भीड़ के पास कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था। मेरे अपने ही कार्यकर्ताओं की जान लेने का कोई इरादा नहीं है। असल आरोप क्या है? दोनों अपराधों में गैर-इरादतन हत्या का इरादा होना जरूरी है। किसी हादसे को गैर-इरादतन हत्या नहीं कहा जा सकता।" वकील का कहना था कि अगर प्रशासन को चुने गए स्थल पर आपत्ति थी तो शुरुआत में ही रैली की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अव्यवस्था पार्टी कार्यकर्ताओं ने नहीं बल्कि बाहरी उपद्रवियों ने की थी, और सवाल उठाया कि पुलिस ने बिना चेतावनी अचानक लाठीचार्ज क्यों किया।
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