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Mainpuri : 24 दलितों का खून और 42 साल बाद मिली सजा, देहुली नरसंहार के 3 दोषियों को फांसी की सजा

Dehuli Massacre : 18 नवंबर, 1981 की शाम करीब 4:30 बजे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा और राधेश्याम उर्फ राधे के नेतृत्व में 17 डकैतों का एक गिरोह देहुली गांव में घुसा। खाकी वर्दी में आए इन डकैतों ने दलित परिवारों को निशाना बनाकर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 24 लोगों की मौत हो गई

MoneyControl Newsअपडेटेड Mar 18, 2025 पर 8:22 PM
Mainpuri : 24 दलितों का खून और 42 साल बाद मिली सजा, देहुली नरसंहार के 3 दोषियों को फांसी की सजा
कोर्ट ने देहुली नरसंहार मामले में मंगलवार को तीन दोषियों को मौत की सजा सुनाई।

Dehuli Massacre : उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की एक विशेष अदालत ने 1981 में हुए देहुली नरसंहार मामले में मंगलवार को तीन दोषियों को मौत की सजा सुनाई। इस घटना में 24 दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी, जिनमें महिलाएं और दो मासूम बच्चे भी शामिल थे। विशेष न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने 12 मार्च को कप्तान सिंह (60), रामपाल (60) और राम सेवक (70) को दोषी करार दिया था। सरकारी वकील रोहित शुक्ला ने बताया कि अदालत ने न केवल तीनों को फांसी की सजा सुनाई, बल्कि उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

1981 में हुआ था दिल दहला देने वाला नरसंहार

बता दें कि 18 नवंबर, 1981 की शाम करीब 4:30 बजे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा और राधेश्याम उर्फ राधे के नेतृत्व में 17 डकैतों का एक गिरोह देहुली गांव में घुसा। खाकी वर्दी में आए इन डकैतों ने दलित परिवारों को निशाना बनाकर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 24 लोगों की मौत हो गई। मारे गए बच्चों में एक की उम्र छह महीने और दूसरे की दो साल थी।

यह हत्याकांड देशभर में भारी आक्रोश का कारण बना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर संवेदनाएं व्यक्त कीं। वहीं, विपक्ष के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने फिरोजाबाद के देहुली से सदुपुर तक पदयात्रा कर पीड़ितों के प्रति एकजुटता जताई।

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