क्या आपका पड़ोसी वोटर लिस्ट से कटवा सकता है आपका नाम या सॉफ्टवेयर से किया जा सकता है डिलीट ? राहुल गांधी के आरोपों पर क्या कहता है कानून
राहुल गांधी ने तर्क दिया कि यह सिस्टम कई राज्यों में इस्तेमाल किया जा रहा है। महाराष्ट्र के राजुरा विधानसभा क्षेत्र में, उन्होंने आरोप लगाया कि 6,815 नामों को धोखाधड़ी से जोड़ा गया। उन्होंने तर्क दिया कि ये सॉफ्टवेयर नाम हटाने और जोड़ने दोनों का काम करता था। उन्होंने कहा कि यह तरीका केवल कर्नाटक और महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैला है
Vote Chori: राहुल गांधी के आरोपों पर क्या कहता है कानून
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर हमला तेज कर दिया है, आरोप लगाते हुए कि वह "वोट चोरों" की सुरक्षा कर रहा है। गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, उन्होंने दावा किया कि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान, हजारों कांग्रेस समर्थकों के नामों को एक सेंट्रलाइज सॉफ्टवेयर-बेस्ड ऑपरेशन के जरिए हटाने का लक्ष्य तय किया गया था।
उन्होंने कहा कि अकेले आलंद विधानसभा क्षेत्र में, करीब 6,000 नाम एक कंप्यूटर प्रोग्राम से हटाने की कोशिश की गई। यह प्रोग्राम हर बूथ के “पहले वोटर” की पहचान लेकर उसका इस्तेमाल करता था और ऐसे दिखाता था जैसे उसी ने नाम हटाने की अर्जी दी हो। मंच पर उन्होंने दो लोगों को पेश किया-एक वो मतदाता जिनका नाम हटाने की कोशिश हुई थी और दूसरा उनका पड़ोसी जिनकी जानकारी का गलत इस्तेमाल किया गया था। दोनों ने साफ कहा कि उन्होंने कभी ऐसी कोई अर्जी नहीं दी।
गांधी ने तर्क दिया कि यह सिस्टम कई राज्यों में इस्तेमाल किया जा रहा है। महाराष्ट्र के राजुरा विधानसभा क्षेत्र में, उन्होंने आरोप लगाया कि 6,815 नामों को धोखाधड़ी से जोड़ा गया। उन्होंने तर्क दिया कि ये सॉफ्टवेयर नाम हटाने और जोड़ने दोनों का काम करता था। उन्होंने कहा कि यह तरीका केवल कर्नाटक और महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैला है। गांधी ने मांग की कि चुनाव आयोग एक हफ्ते के भीतर इन आवेदनों में इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन और OTP डेटा जारी करे।
चुनाव आयोग ने क्या कहा
ECI ने गांधी के आरोपों को साफतौर से खारिज कर दिया। उसने कहा कि ऑनलाइन वोटों को हटाना "जैसा कि राहुल गांधी ने गलत समझा है" नहीं किया जा सकता। पोर्टल और ऐप्स केवल आवेदन दाखिल करने की अनुमति देते हैं और इन आवेदनों कि फिर जांच होती है। उसने जोर दिया कि बिना नोटिस जारी किए और मतदाता को सुनवाई का मौका दिए बिना किसी का भी नाम नहीं काटा जा सकता है।
आलंद मामले पर, आयोग ने साफ किया कि यह चुनाव आयोग ही था, जिसने 2023 में गड़बड़ियां को उजागर किया और FIR दर्ज की। उसने बताया कि कांग्रेस ने वास्तव में 2023 में आलंद सीट जीती थी, जिससे व्यवस्थित निशाना बनाने के दावे कमजोर हो गए।
EC ने जोर देकर बताया कि वोटर लिस्ट से किसी का नाम कानूनी प्रक्रिया के जरिए हटाया जाता, न कि किसी सॉफ्टवेयर या तकनीक से।
क्या है वोटर का नाम हटाने की पूरी प्रक्रिया?
1950 का जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और 1960 के मतदाता पंजीकरण नियम यह तय करते हैं कि किसी मतदाता का नाम कैसे लिस्ट से हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया गलत इस्तेमाल को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन की गई है कि किसी भी शख्स को बिना सूचित किए या विरोध करने का मौका दिए बिना, उससे उसके वोट देने का अधिकार न छिन जाए।
यह फॉर्म 7 से शुरू होता है: अगर कोई व्यक्ति किसी वोटर का नाम हटाना चाहता है, या वोटर लिस्ट में किसी एंट्री पर आपत्ति करता है, तो उसे फॉर्म 7 को चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) को जमा करना होता है। यह फॉर्म खुद वोटर भी इस्तेमाल कर सकता है, अगर वे किसी दूसरे विधानसभा क्षेत्र में शिफ्ट हो गए हैं। इसमें निर्वाचन क्षेत्र का नाम, वोटर का EPIC नंबर, नाम हटाने का कारण, और आवेदक का विवरण और हस्ताक्षर जैसी जरूरी डिटेल शामिल होती हैं। फॉर्म जमा करने के बाद, स्थानीय बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) एक पावती जारी करते हैं।
नाम हटाने के लिए मान्य कारण सीमित हैं: कानून कुछ ही कारणों को मान्य मानता है, जैसे वोटर स्थायी रूप से किसी दूसरे विधानसभा क्षेत्र में शिफ्ट हो गया है, रजिस्टर्ड पते पर नहीं पाया गया है, दो बार दर्ज किया गया है, मर चुका है, या भारतीय नागरिक नहीं है। मनमानी या राजनीतिक आधार पर नाम हटाने की मांग नहीं की जा सकती।
ERO फिर अनुरोध की जांच करता है: हर आवेदन को आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है। अगर फॉर्म अधूरा या उसमें कोई खामी है, तो इसे शुरुआती चरण में ही रिजेक्ट किया जा सकता है।
वोटर को नोटिस दिया जाना चाहिए: अगर नाम हटाने का प्रस्ताव किया जाता है, तो ERO को वोटर को एक नोटिस देना होता है, जिसमें सुनवाई की तारीख, समय और स्थान बताया जाता है। यह नोटिस व्यक्तिगत रूप से, रजिस्टर्ड डाक या उस व्यक्ति के घर पर चिपकाकर दिया जा सकता है।
जमीन पर सत्यापन होता है: एक BLO संबंधित पते पर जाकर जांच करता है कि वोटर अभी भी वहां रह रहा है, मर चुका है, या उसका दो बार नाम है। इन निष्कर्षों को ERO को रिपोर्ट किया जाता है।
मामला सुनवाई में जाता है: नाम हटाने की मांग करने वाले आवेदक और जिस वोटर का नाम सवाल में है, दोनों को सुनवाई का अधिकार होता है। ERO दस्तावेजों की मांग कर सकता है, व्यक्तिगत उपस्थिति की मांग कर सकता है, और निर्णय लेने से पहले शपथ के तहत बयान भी रिकॉर्ड कर सकता है।
फिर ERO एक आदेश पारित करता है: साक्ष्य पर विचार करने के बाद, ERO या तो आवेदन को अस्वीकार करता है या नाम हटाने को मंजूरी देता है। अगर मंजूरी दी जाती है, तो नाम अगले अपडेट के बाद लिस्ट से हटा दिया जाता है।
अपील का अधिकार भी है: अगर कोई वोटर मानता है कि उसका नाम गलत तरीके से हटाया गया है, तो वह ERO के आदेश को चुनौती दे सकता है। वे नए सिरे से नाम शामिल करने के लिए फॉर्म 6 के साथ निवास और पहचान का प्रमाण जमा कर सकते हैं। फॉर्म 7 आवेदन में झूठी घोषणाएं करने पर Representation of the People Act, 1950 की धारा 31 के तहत दंडनीय है।
क्या कोई पड़ोसी वोटर लिस्ट से आपका नाम कटवा सकता है?
कानूनी तौर पर, उसी विधानसभा क्षेत्र का कोई भी वोटर फॉर्म-7 भरकर किसी और का नाम हटाने पर आपत्ति दर्ज कर सकता है। लेकिन इससे वोट अपने आप डिलीट नहीं हो जाता। चुनाव रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) को नोटिस भेजना, जांच करना और सुनवाई करनी जरूरी है। इन प्रक्रियाओं के बिना किया गया डिलीशन गैरकानूनी है। झूठा आवेदन करना कानूनन अपराध है और सजा का प्रावधान है।
भारत में किसी मतदाता का नाम वोटर लिस्ट से हटाना इतना आसान नहीं है कि एक क्लिक में हो जाए। चाहे आवेदन किसी पड़ोसी ने फॉर्म-7 के जरिए किया हो या किसी ने ऑनलाइन फॉर्म भरा हो, कानून के अनुसार हर मामले की जांच करनी होती है, नोटिस भेजा जाता है, जमीनी तौर पर वैरिफाई किया जाता है और संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का मौका दिया जाता है- इन प्रक्रियाओं के बिना कोई नाम हटाना गैरकानूनी होगा।
राहुल गांधी के आरोपों की तरह फर्जी आवेदन दर्ज किए जा सकते हैं, लेकिन सिर्फ आवेदन करने से ही किसी का नाम वोटर लिस्ट से खुद-ब-खुद नहीं काटा जाता। अगर कोई प्रक्रिया को दरकिनार कर नाम हटाने की कोशिश करे, तो वो अपराध माना जाएगा और इसके लिए सजा भी हो सकती है।