महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में महायुति खासकर बीजेपी को जीतनी सीटें मिलती दिख रहे हैं, उसकी उम्मीद शायद किसी को नहीं थी। 20 नवंबर को आए एग्जिट पोल में महायुति की बढ़त दिखाई गई थी। लेकिन, किसी एग्जिट पोल में इतनी ज्यादा सीटों का अनुमान नहीं जताया गया था। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यहां तक कि बीजेपी को खुद इतनी सीटें आने की उम्मीद नहीं थी। अब यह स्पष्ट है कि हरियाणा में जीत के तुरंत बाद महाराष्ट्र में इतनी बड़ी जीत से एक बार फिर से बीजेपी का आत्मविश्वास चरम पर होगा। लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपने दम पर सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिली थी। तब यह माना जा रहा था कि बीजेपी के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा। लेकिन, अब यह धारणा बदलती दिख रही है।
महिलाओं ने खुलकर किया समर्थन
BJP की इस जीत में महिला वोटर्स का बड़ा हाथ है। 2019 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार महिला मतदाताओं की संख्या 53 लाख ज्यादा थी। उनके मतों का प्रतिशत 6 फीसदी बढ़ा है। महायुति को लाडकी बहन योजना का बड़ा फायदा मिला है। इस योजना का लाभ राज्य की 2.5 करोड़ महिलाओं को मिला। महायुति सरकार ने इस स्कीम के तहत मिलने वाले 1,500 रुपये को बढ़ाकर 2,100 रुपये किया था। महिला वोटर्स ने इस वादे पर भरोसा किया। ऐसा लगता है कि इस स्कीम की वजह से महिलाओं ने धर्म की दीवार तोड़कर महायुति सरकार के पक्ष में वोट दिया।
ज्यादा सीटों पर लड़ने की रणनीति
बीजेपी ने इस बार चुनावों में सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ने का फैसला किया। इसका फायदा उसे मिलता दिख रहा है। वह महायुति के दोनों सहयोगी पार्टी के मुकाबले ज्यादा सीटों पर आगे चल रही है। बीजेपी ने इस बार चुनावों में कपास और सोयाबीन के किसानों के बीच पैठ बनाने की काफी कोशिश की थी। उसने एमएसपी से जुड़े किसानों की मांगे पूरी करने का भरोसा दिया था। उसने कहा था कि अगर उसकी सरकार बनती है तो वह एमएसपी से ज्यादा कीमत पर कपास किसानों से खरीदेगी। सोयाबीन के किसानों से भी उसने यह वादा किया था। किसानों ने उसके वादे पर भरोसा किया।
किसानों के बीच पैठ बनाने का फायदा
बीजेपी ने इस बार किसानों से पूरा लोन माफ कर देने का वादा नहीं किया। आम तौर पर दल ऐसे वादे करते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद लोन माफी के नाम पर किसानों को नाममात्र की मदद उपलब्ध कराई जाती है। इसलिए किसानों ने ऐसे वादों पर भरोसा करना बंद कर दिया है। लोन माफी स्कीम का वादा करने की जगह बीजेपी ने किसानों को उनकी कमाई बढ़ाने के उपायों पर फोकस किया। जिसका फायदा पार्टी को मिला।
बीजेपी खासकर महायुति को इस बार पिछड़े वर्गों का अच्छा समर्थन मिला है। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा कारगर रहा। इस नारे की वजह से हिंदू मतदाताओं ने जाति के बंधन को तोड़कर भाजपा के पक्ष में मतदान किया। लोकसभा चुनावों में पिछड़ी जातियों के मतों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में देखने को नहीं मिला था। इससे भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। उसका प्रदर्शन दूसरे राज्यों के मुकाबले महाराष्ट्र में काफी खराब था।
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आखिर में महायुति सरकार के कामों की वजह से मतदाताओं ने उसे फिर से मौका देने का फैसला किया। 2019 के चुनावों के बाद राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनी थी। अगर उस सरकार के कामकाज की तुलना एकनाथ सरकार के कामकाज से की जाए तो शिंदे की सरकार आगे दिखती है। शिंदे की सरकार ने राज्य के विकास के साथ ही सभी वर्गों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की। देवेंद्र फड़णवीस ने उपमुख्य बनाए जाने के बाद भी कभी सरकार का मतभेद बाहर नहीं आने दिया। इससे लोगों के बीच अच्छा संकेत गया। लोगों को लगा कि यह सरकार महाविकास आघाड़ी के मुकाबले ज्यादा एकजुटता के साथ काम कर सकती है।