बारामती के बुजुर्ग अब भी उस युवा अजीत पवार को याद करते हैं, जो अपनी राजदूत मोटरसाइकिल से शहर की सड़कों को नापा करते थे। स्थानीय लोगों से संपर्क करने के लिए यह दोपहिया उनका पसंदीदा वाहन था। तीन दशक बाद महाराष्ट्र की राजनीति में वह अहम शख्सियत बनकर उभर हैं और राजनीतिक गलियारों में कई लोग उन्हें 'सीएम इन वेटिंग' के तौर पर भी जानते हैं।
अजीत पवार को अक्सर विभिन्न रूपों में जाना जाता है: एक मजबूत नेता, कुशल प्रशासक, बागी, अवसरवादी और यहां तक भ्रष्ट शख्स के तौर पर भी। उनका जन्म बारामती से 200 किलोमीटर दूर देवलाली परवरा नामक गांव में हुआ था। उनकी राजनीतिक यात्रा अपने प्रभावशाली चाचा शरद पवार के गाइडेंस में शुरू हुई। वह काफी कम उम्र के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। लिहाजा कम उम्र में ही उन्हें अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी।
अजीत पवार ने 1980 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया था। उस वक्त तक उनके चाचा शरद पवार राजनीति में अहम जगह बना चुके थे। 1982 में अजीत पवार शुगर मिल बोर्ड में शामिल हुए और उसके बाद पुणे जिले के सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन बन गए। उनकी पहली बड़ी राजनीतिक सफलता 1991 में देखने को मिली, जब बाारामती से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए। हालांकि, जल्द ही अपने चाचा के लिए उन्हें यह सीट खाली करनी पड़ी। महाराष्ट्र की राजनीति में उनका करियर लगातार आगे बढ़ता गया।
अजीत की राजनीति यात्रा करीबी तौर पर शरद पवार के साथ जुड़ी थी और वह उस वक्त भी चाचा के साथ बने रहे, जब 1999 में शरद पवार ने कांग्रेस छोड़कर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया। महाराष्ट्र में कई मंत्रालय संभालने के बावजूद अजीत पवार की मुख्यमंत्री बनने की कोशिशों पर शरद पवार पलीता लगाते आए हैं। 2004 में उनके पास मुख्यमंत्री बनने का मौका था, क्योंकि NCP के पास कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सीटें थीं। हालांकि, शरद पवार ने यूपीए सरकार में अतिरिक्त कैबिनेट बर्थ के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी कांग्रेस के लिए छोड़ने का फैसला किया। अजीत पवार ने सार्वजनिक तौर पर इस फैसले के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की थी।
बीतते वक्त के साथ अजीत पवार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने लगे। इस बीच, शरद पावर की बेटी सुप्रिया सुले भी राजनीति में एंट्री हो गई और वह 2009 में बारामती से सांसद बन गईं। इसके बाद शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर सवाल उठने लगे। हालांकि, शरद पवार से सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट किया था कि सुप्रीम सुले राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहेंगी, जबकि अजीत पवार राज्य में पार्टी मामलों की जिम्मेदारी संभालेंगे।
अजीत पवार ने 2023 में बगावत का झंडा बुलंद किया और NCP में विभाजन हो गया। उनके पक्ष में न सिर्फ पार्टी के ज्यादातर विधायक और सीनियर नेता थे, बल्कि चुनाव आयोग ने भी पार्टी का आधिकारिक नाम और घड़ी सिंबल भी उनके साथ ही रहने देने का फैसला किया। अजीत पवार के इस कदम को शरद पवार के राजनीतिक करियर के सबसे बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
पार्टी टूटने के बावजूद शरद पवार हार मानने को तैयार नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनावों में शरद पवार की पार्टी को 8 सीटें मिलीं, जबकि अजीत पवार की पार्टी को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली। साथ ही, अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा को भी हार का सामना करना पड़ा। बारामती सीट पर सुनेत्रा और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के बीच मुकाबला था।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव करीब है और अजीत पवार का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित दिख रहा है। वह राज्य की राजनीति पर अपनी पकड़ बनाए रखने में सफल रहेंगे या फिर से उन्हें अपना चाचा के पास लौटने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, इसका फैसला अब वोटर्स के हाथ में है।