अनिता कात्याल
अनिता कात्याल
राजस्थान में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार खत्म होने जा रहा है। पिछले कई सालों में ऐसा पहली बार है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के खिलाफ लोगों में किसी तरह की नाराजगी नहीं दिख रही है। इसके बावजूद गहलोत की लोकप्रियता कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लौटाने के लिहाज से नाकाफी लगती है। पांच साल सरकार चलाने के बाद भी गहलोत की स्वीकार्यता में कमी नहीं आई है। इसके उलट 2018 में चुनावों से पहले वसुंधरा राजे को लेकर मतदाता उलझन में दिख रहे थे। उनमें गुस्सा था। भाजपा के कार्यकर्ता भी उन्हें घमंडी और ऐसा नेता के रूप में देख रहे थे, जिस तक पहुंचना बहुत मुश्किल था। तब यह स्लोगन काफी सुनने को मिलता था, "No CM after 8 PM"। दूसरा स्लोगन था, ''मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।'' इससे पता चलता था कि हवा वसुंधरा के पक्ष में नहीं थी। 2013 में यही बात गहलोत के साथ देखने को मिली थी।
गहलोत ने हर वर्ग के लिए स्कीम शुरू की है
2013 में लोगों की सोच थी कि गहलोत ने कोई काम नहीं किया है। हालांकि, मुख्यमंत्री ने कुछ वेल्फेयर स्कीम के ऐलान किए थे। लेकिन, चुनाव से कुछ ही दिन पहले ऐलान होने से इन्हें लागू नहीं किया जा सका था। लोगों को लगा था कि मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े ऐलान का मकसद सिर्फ चुनावों को जीतना है। इस वजह से मतदाताओं का नाराजगी उनके सत्ता से बाहर जाने की वजह बनी। ऐसा लगता है कि गहलोत ने पिछली गलतियों से सबक लिया है। इस बार उन्होंने ऐलान के बाद उन्हें लागू करने पर जोर दिया है। उनकी कोशिश समाज के हर वर्ग-महिला, किसान, युवा, सरकारी एंप्लॉयी के लिए स्कीम का ऐलान करने की थी। पुरानी पेंशन योजना को दोबारा लागू करने का ऐलान भी सरकार ने किया। साथ ही गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह अकेले चुनाव अभियान का नेतृत्व किया।
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भाजपा हिंदुत्व को बना रही आधार
गहलोत की इस कोशिश का असर दिखा। उनके खिलाफ लोगों में किसी तरह का गुस्सा नहीं दिख रहा। कुल मिलाकर लोग उनके प्रदर्शन से खुश हैं। यहां तक कि भाजपा को भी गहलोत के बारे में लोगों की धारणा बदलने में दिक्कत आ रही है। यहीं वजह है कि इस बार भाजपा ने धार्मिक मसलों को आधार बनाने की कोशिश की है। इनमें उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल की हत्या का मामला शामिल है। भाजपा ने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री महिलाओं की सुरक्षा करने में नाकाम रहे हैं। हालांकि, इनके सीमित असर पड़ने की संभावना है। लेकिन ऐसा लगता है कि गहलोत को लेकर लोगों की पॉजिटिव सोच उन्हें दोबारा सत्ता में लौटाने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है।
कांग्रेस विधायकों से मतदाता नाखुश
गहलोत ने इस बार खुद को लोगों के गुस्सा की वजह नहीं बनने दी है। लेकिन, उनके विधायकों के बार में ऐसा नहीं कहा जा सकता। कई विधायकों के खिलाफ मतदाताओं में गुस्सा है। लोगों का मानना है कि उनके प्रतिनिधियों ने क्षेत्र के विकास के लिए उतना काम नहीं किया, जितनी उम्मीद थी। कांग्रेस ने इसे भांपते हुए अपने कई विधायकों के टिकट काट दिए। उधर, युवाओं में पेपर लीक और एग्जाम की तारीख बार-बार बदलने को लेकर भी गुस्सा है।
सचिन पायलट से सुलह की खबरों पर विश्वास नहीं
जहां तक सचिन पायलट के साथ गहलोत के संबंध की बात है तो कांग्रेस नेतृत्व के दोनों के बीच सुलह की कोशिश के बावजूद जमीनी स्तर पर बहुत कुछ बदला हुआ नहीं लग रहा है। गहलोत और पायलट दोनों अलग-अलग प्रचार कर रहे हैं। दोनों ने एक साथ एक भी रैली नहीं की है। ज्यादातर लोग यह मानने को तैयार नहीं कि दोनों नेता मिलकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इसका कुछ फायदा भी भाजपा को मिलता दिख रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैलियों में कहा है कि कांग्रेस के नेता एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं।
वसुंधरा राजे का मुख्यमंत्री बनना तय नहीं
उधर, भाजपा की बड़ी चिंता वसुंधरा राजे हैं। हालांकि, यह कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है। भाजपा ने अब तक राजे को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है। इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का एक वर्ग निराश है। उन्हें लगता है कि भाजपा के जीतने के बाद राजे का मुख्यमंत्री बनना तय नहीं है। राजे भी इस बार सिर्फ उन्हीं उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रही हैं, जो उनके करीबी माने जाते हैं। भाजपा इस बार सामूहिक नेतृत्व की बात कह रही है। इसका मतलब है कि इस बार भाजपा पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निर्भर है। उसे लगता है कि मोदी की लोकप्रियता में किसी तरह की कमी नहीं आई है, जिससे इसका फायदा उठाना समझदारी होगी। ऐसे में अगर भाजपा चुनाव जीतती है तो ऐसा मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, जिसे रिमोट से कंट्रोल किया जा सके। वसुंधरा राजे के साथ यह मुमकिन नहीं है।
(अनिता कात्याल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं। इसका इस प्रकाशन से किसी तरह का संबंध नहीं है)
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