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Rajasthan Election 2023: राजस्थान के चुनावी रण में वसुंधरा राजे को सेनापति क्यों नहीं बनाना चाहती BJP?

Rajasthan Election 2023: ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) राजस्थान के चुनावी रण में जीत तो चाहती है, लेकिन इस बार वसुंधरा राजे सिंधिया को अपना सेनापति नहीं चाहती। पार्टी ने राजस्थान में चुनाव अभियान की कमान संभालने के लिए फिर से केंद्रीय नेतृत्व पर ही भरोसा जताया, जबकि राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और अपनी वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे को दरकिनार कर दिया

अपडेटेड Sep 29, 2023 पर 1:38 PM
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Rajasthan Election 2023: जयपुर के दादिया गांव में 'परिवर्तन संकल्प महासभा' के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी नेता वसुंधरा राजे और पार्टी के दूसरे नेता

Rajasthan Election 2023: राजस्थान में साल 2018 के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के दौरान एक नारा काफी चर्चाओं में रहा कि 'मोदी तुझसे बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं'। रानी यानि वसुंधरा राजे सिंधिया (Vasundhara Raje Scindia)। जनता ने इस नारे को सही सबित करते हुए, उस साल सत्ता से रानी की रवानगी कर दी। इस बार इस तरह का कोई नारा भले न हो, लेकिन रानी और उनकी पार्टी के बीच बैर जरूर दिखाई पड़ रहा है।

ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) राजस्थान के चुनावी रण में जीत तो चाहती है, लेकिन इस बार वसुंधरा राजे सिंधिया को अपना सेनापति नहीं चाहती। पार्टी ने राजस्थान में चुनाव अभियान की कमान संभालने के लिए फिर से केंद्रीय नेतृत्व पर ही भरोसा जताया, जबकि राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और अपनी वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे को दरकिनार कर दिया।

पार्टी और राजे के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, इसके शुरुआती संकेत तभी सामने आ गए थे, जब बीजेपी की प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति और प्रदेश संकल्प पत्र समिति में वसुंधरा को जगह नहीं दी गई थी। हालांकि, बात तो काफी पहले ही बिगड़नी शुरू हो गई थी।


वसुंधरा राजे सिंधिया की पहचान राज्य में बीजेपी के पर्याय के तौर पर होती है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि इतनी कद्दावर नेता से पार्टी खुद ही कन्नी काटती दिख रही है?

वसुंधरा राजे खुद भी हैं इसकी जिम्मेदार

इस पर राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मिथलेश जैमिनी कहते हैं कि बीजेपी अब अगर वसुंधरा राजे को साइडलाइन कर रही है, तो इसके लिए वसुंधरा कहीं न कहीं खुद भी जिम्मेदार हैं। पिछले साढ़े चार के दौरान उनका जो बर्ताव रहा, उसे लेकर पार्टी कुछ नाराज है।

उन्होंने कहा, "विपक्ष में बैठने के दौरान न उन्होंने सदन में ऐसा कुछ किया कि जिससे ये लगे की वह बीजेपी को मजबूत कर रही हैं। जब सतीश पूनिया बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष थे, तो उनके तमाम प्रदर्शनों से भी उन्होंने दूरी बना कर रखी। इसलिए BJP को अब ये महसूस होने लगा था कि मैडम ने पार्टी या संगठन को मजूबत नहीं किया।"

जैमिनी झालावाड़ में बीजेपी की परिवर्तन यात्रा का जिक्र करते हुए कहते हैं, "यात्रा में हिमंत बिस्वा सरमा और पुष्कर सिंह धामी जैसे दूसरे राज्य के मु्ख्यमंत्री तक आए, लेकिन मैडम नहीं गईं। पार्टी ने उनकी गैर-मौजूदगी को भी एक मुद्दा बनाया।"

उन्होंने इसके पीछे राजाखेड़ा में अशोक गहलोत के उस बयान को भी एक प्रमुख कारण माना, जिसमें गहलोत ने कहा था कि 2020 में मेरी सरकार वसुंधरा राजे की वजह से बची थी। बीजेपी एक कैडर वाली पार्टी है, इसलिए वो इस सब को ध्यान में रखते हुए एक स्ट्रॉन्ग मैसेज देने के लिए ये सब कर रही है।

अशोक गहलोत और वसुंधरा के राजनीतिक संबंध

आगे बढ़ते हुए पहले बात कर लेते हैं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के बीच राजनीतिक संबंधों की। राजस्थान में ये किसी से छिपा नहीं है कि गहलोत और राजे के बीच एक अच्छी ट्यूनिंग सेट है और दोनों नेता एक दूसरे को भाई बहन की तरह मानते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. जैमिनी ने बताया कि दोनों नेताओं के संबंध को राजस्थान की सियासत में भाई-बहन का संबंध कहा जाता है। उन्होंने इसे समझाया कि कांग्रेस नेता सचिन पायलट की तरफ से वसुंधरा राजे सरकार पर घोटोलों के गंभीर आरोप लगाए गए और प्रदर्शन किया। इसमें उन्होंने माइन आवंटन और कालीन घोटाला जैसे मुद्द उठाए और जांच की मांग की।

इस पर अशोक गहलोत की तरफ से जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की गई। जैमिनी ने कहा, "मुख्यमंत्री ने सिर्फ औपचारिकता के तौर पर इन घोटालों की जांच के लिए माथुर आयोग बनाया। कहीं न कहीं हर राजस्थानी को पता है कि मैडम और अशोक गहलोत के बीच में एक ट्यूनिंग है।"

बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी ये बात जानता है। उन्होंने राज्यसभा चुनाव का जिक्र करते हुए बताया, "जब सदन के अंदर वोटिंग चल रही थी, तो चार विधायक गायब थे। ये विधायक उस बीजेपी के थे, जो एक अनुशासित पार्टी मानी जाती है। ऐसे में पार्टी के चार मजबूत सिपाहियों का गायब हो जाना और उसके पीछे वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर भी काफी सवाल उठे थे।"

वसुंधरा की ताकत उनके विधायक

राजस्थान में बीजेपी के 70 विधायकों में से 40 से ज्यादा पहले ही वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं। कहा तो ये भी जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व सूबे के करीब 30 से 35 वसुंधरा समर्थक विधायकों के टिकट काटना चाहता है, जिसे लेकर राजे को आपत्ति है। लेकिन बीजेपी में कुछ लोगों को लगता है कि हवा का रुख किस तरफ होगा, इसके आधार पर ये विधायक पाला बदल सकते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार जैमिनी का भी कुछ ऐसा ही मानना है। उन्होंने कहा, "अगर ज्यादा विधायक बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, तो उस स्थिति में बीजेपी के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है, लेकिन बीजेपी में इस तरह कोई इतना बड़ा एक्शन ले ले, ऐसा कम ही देखने को मिलता है।"

उनका मानना है कि वसुंधरा समर्थक ज्यादातर विधायकों को एडजस्ट कर लिया जाएगा। बस देखना ये होगा कि कितने विधायकों को टिकट मिलता है और कितनों का कट सकता है।

डॉ. जैमिनी ने वसुंधरा राजे की अमित शाह के साथ अलग से हुई 40 मिनट की मुलाकात का हवाला देते हुए कहा, "उसमें आलाकमान की तरफ से वसुंधरा से ये कहा गया कि जिन विधायकों का जीत का आधार है और जो हमारे पैरामीटर को पूरा कर सकते हैं, उन्हें टिकट मिल जाएगा।"

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वसुंधरा राजे और पार्टी के बीच तना-तनी को लेकर, जो कारण सामने आए, अगर उन पर भी और गहराई से नजर डाली जाए, तो राजे विरोधी खेमे का कहना है कि उन्हें पिछले साढ़े चार साल में पार्टी के लिए और ज्यादा काम करना चाहिए था, जबकि उनके करीबी लोगों का कहना है कि जिन कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने का उन पर आरोप है, उनमें उन्हें कभी बुलाया ही नहीं गया।

पिछले साल दिसंबर में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने जन आक्रोश यात्रा निकाली। राजे इस यात्रा से गायब रहीं। हाल ही में, BJP ने जयपुर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली में अपनी परिवर्तन यात्राओं का समापन भी किया। हालांकि, राजे चार जगहों से यात्रा की शुरुआत में तो शामिल हुईं, लेकिन उसके बाद उन्होंने इससे दूरी बनाए रखी। खबर थी कि वे यात्रा के दौरान दिल्ली में डेरा डाले हुई थीं।

वहीं अगर बात जयपुर में हुई प्रधानमंत्री की रैली की करें, तो इस पूरी रैली का मैनेजमेंट राजस्थान बीजेपी की महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं के हाथ में था, लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी कि महिलाओं के नेतृत्व में हुई इस रैली में, राज्य की सबसे बड़ी महिला नेता वसुंधरा राजे सिंधिया शामिल तो हुईं और मंच पर जगह भी दी गई, लेकिन उन्हें जनता को संबोधित करने का मौका नहीं दिया गया।

इसी रैली में सबसे बड़ा संकेत प्रधानमंत्री मोदी ने भी दे दिया, जब अपने आधे घंटे के संबोधन के दौरान एक बार भी PM ने वसुंधरा सरकार या उसके कामों का न तो जिक्र किया और न ही मौजूदा CM अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार से इसकी तुलना की।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक साफ संदेश देते हुए रैली में दोहराया, "मैं हर बीजेपी कार्यकर्ता से कहना चाहता हूं कि हमारी पहचान और शान केवल कमल है।"

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