Budget 2024 : सरकार के फाइनेंशियल कैलेंडर में केंद्रीय बजट सबसे अहम है। बजट पेश होने से पहले सरकार के खर्च, फिस्कल डेफिसिट, इनकम टैक्स आदि के बारे में अनुमान लगने शूरू हो जाते हैं। सरकार को बजट में हर साल अपने रेवेन्यू और एक्सपेंडीचर के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करनी पड़ती है। वित्तमंत्री Nirmala Sitharaman 1 फरवरी को Interim Budget पेश करेंगी। अप्रैल-मई में लोकसभा चुनावों के बाद जो नई सरकार बनेगी, वह जुलाई में पूर्ण बजट पेश करेगी। लोकसभा चुनाव वाले साल में ऐसा होता है। इससे पहले 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे। उस साल 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश हुआ था। 5 जुलाई को पूर्ण बजट पेश हुआ था। सच यह है कि बजट बंपर ऑफर्स वाला कोई इवेंट नहीं है। यह ठीक उसी तरह से है जैसे कंपनी का कोई सीएफओ अपने फाइनेंस के बारे में अहम बातें बताता है। आप आसानी से बजट को समझ सकते हैं। इसके लिए मनीकंट्रोल आपको कुछ चीजों का मतलब बता रहा है। इससे आपको बजट को समझना बहुत आसान हो जाएगा।
बजट 2024 : सरकार को पैसा कहां से आता है?
बजट में सरकार के रेवेन्यू के तीन स्रोत होते हैं। पहला है टैक्स रेवेन्यू, दूसरा है नॉन-टैक्स रेवेन्यू और तीसरा है डिसइनवेस्टमेंट। डिविडेंड और इंटरेस्ट नॉन-टैक्स रेवेन्यू माने जाते हैं। सरकार का टैक्स रेवेन्यू का अनुमान व्यावहारिक है या नहीं, यह समझने के लिए नॉमिनल जीडीपी के डेटा को जानना जरूरी है।
नॉमिनल जीडीपी एक वित्त वर्ष में उत्पादित कुल गुड्स और सेवाओं के मूल्य का योग होता है। जीडीपी ग्रोथ का डेटा हर तिमाही और सालाना आधार पर जारी करती है। नॉमिनल जीडीपी को इनफ्लेशन से एडजस्ट के बाद जो डेटा आता है वह रियल जीडीपी होता है। इकोनॉमी की ग्रोथ को मापने के लिए रियल जीडीपी का इस्तेमाल किया जाता है। इस वित्त वर्ष में जीडीपी की नॉमिनल ग्रोथ करीब 8.9 फीसदी रहने का अनुमान है।
अगर आप इकोनॉमी की नॉमिनल जीडीपी का अंदाजा लगा लेते हैं तो फिर आप टैक्स रेवेन्यू का अंदाजा लगा सकते हैं। इसकी वजह यह है कि इंडिया में टैक्स और जीडीपी का रेशियो आम तौर पर 10-11 फीसदी होता है। वित्तमंत्री ने पिछले साल पेश बजट में ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू करीब 33.61 लाख करोड़ रहने का अनुमान लगाया था। यह अनुमान 11.1 फीसदी टैक्स-जीडीपी रेशियो के आधार पर था।
इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन इस वित्त वर्ष में 15.37 लाख करोड़ और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 18.24 लाख करोड़ रहने का अनुमान लगाया गया है। एक साल पहले यानी वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार का ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू 30.43 लाख करोड़ रुपये था। इसमें डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 14.2 लाख करोड़ रुपये था। नॉन-टैक्स रेवेन्यू 2.86 लाख करोड़ रुपये था। इसमें RBI और सरकारी कंपनियों की तरफ से मिला डिविडेंड शामिल है।
तीसरे नंबर पर डिसइनवेस्टमेंट आता है। इसमें सरकार अपने एसेट्स को बेचकर पैसे हासिल करती है। सरकार आम तौर पर सरकारी कंपनियों में आंशिक या ज्यादा हिस्सेदारी बेचती है। डिसइनवेस्टमेंट को सरकार की फिस्कल पॉलिसी का अहम हिस्सा माना जाता है। वित्त वर्ष 2023 में सरकार ने डिसइनवेस्टमेंट से 35,293 करोड़ रुपये जुटाया था। यह बजट में तय 65,000 करोड़ रुपये के टारगेट का 54 फीसदी था। इस वित्त वर्ष में सरकार ने डिसइनवेस्टमेंट के लिए 51,000 करोड़ रुपये का टारगेट तय किया है। लेकिन, वह अब तक सिर्फ 10,0051 करोड़ रुपये जुटा पाई है।
बजट 2024 : सरकार का पैसा कहां जाता है?
अब यह समझना जरूरी है सरकार का पैसा कहां खर्च होता है। इस वित्त वर्ष में सरकार का कुल खर्च 45.03 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। सरकार के खर्च को हम हिस्सों-रेवेन्यू एक्सपेंडिचर और कैपिटल एक्सपेंडिचर में बांट सकते हैं। रेवेन्यू एक्सपेंडीचर ठीक उसी तरह से है जैसे किसी ग्रॉसरी और यूटिलिटी पर परिवार का होने वाला खर्च। इस वित्त वर्ष में रेवेन्यू एक्सपेंडिचर 35 लाख करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है। इस साल चुनाव होने वाले हैं। इसलिए सरकार का खर्च नई स्कीमों पर बढ़ सकता है। सोशल-सेक्टर पर सरकार एक्सपेंडिचर बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 21.4 लाख करोड़ रुपये का अनुमान बजट में लगाया गया था।
कैपिटल एक्सपेंडिचर का मतलब ऐसे खर्च से है, जो लंबी अवधि के एसेट्स बनाने के लिए खर्च किए जाते हैं। जैसे सरकार सड़क, रेलवे बंदरगार बनाती है। इससे इकोनॉमी की ग्रोथ की रफ्तार बढ़ाने में मदद मिलती है। इससे रोजगार के मौके पैदा होते हैं। बुनियादी सुविधाएं बेहतर होती हैं। इस वित्त वर्ष में सरकार ने 10 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत खर्च का अनुमान तय किया है।
बजट 2024 : खर्च इनकम से ज्यादा हो जाने पर सरकार क्या करती है?
हमने ऊपर बताया था कि सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने खर्च और इनकम (रेवेन्यू) के बीच संतुलन बनाना होता है। सरकार के बजट में यह संतुलन दिखता है। इस संतुलन में फिस्कल डेफिसिट की बड़ी भूमिका है। फिस्कल डेफिसिट का मतलब सरकार की इनकम और एक्सपेंडिचर के बीच के फर्क से है। इससे यह पता चलता है कि सरकार को अपने खर्च पूरे करने के लिए कितने पैसे उधार लेने होंगे। सरकार के लिए ज्यादा कर्ज लेना अच्छा नहीं माना जाता है। सरकार ने इस वित्त वर्ष में फिस्कल डेफिसिट के लिए 5.9 फीसदी का टारगेट तय किया है। इसका मतलब है कि सरकार का फिस्कल डेफिसिट 5.9 फीसदी से ज्यादा जाने का अनुमान नहीं है।
सरकार अपने फिस्कल डेफिसिट को पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेती है। इसके लिए वह बॉन्ड्स और इस तरह के दूसरे इंस्ट्रूमेंट जारी करती है। इसके अलावा वह स्मॉल सेविंग्स फंड्स से पैसे लेती है। इस पैसे पर सरकार को इंटरेस्ट चुकाना पड़ता है। सरकार के बॉन्ड्स में बड़ी वित्तीय संस्थाएं निवेश करती हैं। स्मॉल सेविंग्स फंड्स में सरकार को पीपीएफ, पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट जैसी स्कीमों से पैसा आता है। आम आदमी इन स्कीमों में निवेश करता है। उसे अपने पैसे पर इंटरेस्ट मिलता है।