Budget 2024 : Marico और Dabur India ने दिसंबर तिमाही के अपने अपडेट में ग्रामीण इलाकों में कमजोर मांग के संकेत दिए हैं। Godrej Consumer ने कहा है कि बाजार की स्थिति में दूसरी तिमाही के मुकाबले कोई बदलाव नहीं आया है। इससे पहले आए अपडेट्स में इन कंपनियों ने ग्रामीण इलाकों में जल्द रिकवरी की उम्मीद जताई थी। यह एफएमसीजी कंपनियों के लिए चिंता की बात है। आम तौर पर हर बजट में रूरल इकोनॉमी पर फोकस रहता है। इसकी वजह यह है कि अब भी आबादी का 60 फीसदी हिस्सा गांवों में रहता है।
रूरल इकोनॉमी को सहारा देने की जरूरत
बजट में सरकार का फोकस रूरल इकोनॉमी को सहारा देने वाले उपायों पर हो सकता है। संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने इस वित्त वर्ष में 58,378 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च के लिए संसद की मंजूरी ली है। इसमें से 14,524 करोड़ रुपये मनरेगा (MGNREGA) के लिए है, जबकि 13,351 करोड़ रुपये फर्टिलाइजर सब्सिडी के लिए है।
कई कंपनियों की रूरल डिमांड कमजोर रहने की शिकायत
कमजोर रूरल डिमांड का सामना सिर्फ एफएमसीजी कंपनियों को नहीं करना पड़ रहा है। पेंट्स, कार और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स कंपनियों ने भी यह शिकायत की है। उधर, सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी ग्रोथ 7.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। इसका मतलब है कि अगर रूरल डिमांड कमजोर रहने के बावजूद इकोनॉमी 7 फीसदी से ज्यादा ग्रोथ हासिल करने में सफल रहेगी। इसका यह भी मतलब है कि रूरल इकोनॉमी में सुस्ती के बावजूद जीडीपी ग्रोथ अच्छी रह सकती है। इस वित्त वर्ष में प्राइवेट फाइनल कंजम्प्शन एक्सपेंडीचर की ग्रोथ 4.4 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि, जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी गिरकर 56.9 फीसदी पर आ गई है, जो एक साल पहले 58.5 फीसदी थी।
लोगों के हाथ में पैसे पहुंचाने के उपाय कर सकती हैं निर्मला सीतारमण
सवाल है कि ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ाने के लिए क्या बजट 2024 में बड़े ऐलान हो सकते हैं। हाल में हुए कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में जिन मतदाताओं ने BJP के पक्ष में वोटिंग की है, वे अप्रैल-मई में लोकसभा चुनावों में फिर से वोटिंग करने वाले हैं। ऐसे में यह लाजिमी है कि सरकार अपना खजाना खोलेगी और ग्रामीण इकोनॉमी को सहारा देने वाले उपायों का ऐलान करेगी। सरकार यह सोच सकती है कि अगर वर ग्रामीण इलाकों में लोगों के हाथ में पैसे पहुंचाने के उपाय करती है तो इससे कंजम्प्शन बढ़ेगा। लोगों के हाथ में पैसा आने से मजूदरी भी बढ़ेगी, क्योंकि लोगों को मजदूर की सेवाएं लेने के लिए ज्यादा पैसे देने होंगे। इससे इनफ्लेशन भी बढ़ेगा। इससे स्थिति और खराब हो सकती है।
पहले से चल रही योजनाओं का बढ़ सकता है आवंटन
सरकार पहले से चल रही योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ा सकती है। वह रूरल इनकम बढ़ाने वाले कुछ नए प्रोग्राम का भी ऐलान कर सकती है। लेकिन, वह यह ध्यान रखेगी कि इनसे मजदूरी नहीं बढ़े और इनफ्लेशन में इजाफा न हो। निवेशकों की नजरें इस बात पर होगी कि सरकार के उपायों का असर कंपनियों के स्टॉक्स पर कितना पड़ता है। उधर, इकोनॉमिस्ट्स यह देखना चाहेंगे कि बजट में आवंटन बढ़ाने से सरकार की वित्तीय स्थिति खतरे में नहीं पड़ जाए।