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Economic Survey: इकोनॉमी को बूस्ट देने के लिए सरकारी बैंकों में पूंजी डालना जरूरी

29 जनवरी को पेश इकोनॉमिक सर्वे 2021 में पब्लिक सेक्टर बैंकों में पर्याप्त पूंजी डालने की सिफारिश की गई है।

MoneyControl Newsअपडेटेड Feb 01, 2021 पर 7:47 AM
Economic Survey: इकोनॉमी को बूस्ट देने के लिए सरकारी  बैंकों में पूंजी डालना जरूरी

बजट 2021 के पहले 29 जनवरी को पेश इकोनॉमिक सर्वे 2021 में पब्लिक सेक्टर बैंकों में पर्याप्त पूंजी डालने की सिफारिश की गई है। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अगर PSU बैंकों को पूंजी नहीं मुहैया कराई जाती तो वो रिस्क शिफ्टिंग (risk-shifting) का तरीका अपनाएंगे। जिससे इकोनॉमिक रिकवरी को धक्का लगेगा।

इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पूंजी की कमी से जूझ रहे सरकारी बैंक, रिस्क शिफ्टिंग और जॉम्बिंग लैंडिंग का तरीका अपनाएंगे जिससे समस्या और बिगड़ जाएगी। इसका रियल इकोनॉमी पर बुरा असर पड़ेगा क्योंकि अच्छे उद्यमियों और परियोजनाओं के लिए कर्ज मिलने में मुश्किल होगी। इकोनॉमी में निवेश दर में गिरावट आएगी और इकोनॉमी में मंदी देखने को मिलेगी।

हाल के महीनों में कई कारणों की वजह से क्रेडिट ग्रोथ में भारी गिरावट देखने को मिली है। क्रेडिट ग्रोथ की गिरावट की अहम वजहों में आर्थिक मंदी और मांग में सुस्ती रही है। इसके अलावा बैंक भारी जोखिम को देखते हुए छोटे फर्मों को कर्ज देने से बचने की नीति अपना रहे हैं। इन स्थितियों को देखते हुए आर्थिक सर्वे में आज दी गई ये चेतावनी ज्यादा अहम हो जाती है।

बता दें कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम का 60 फीसदी हिस्सा पब्लिक सेक्टर बैंकों के तहत आता है जिसका मालिकाना हक सरकार के पास है। बैंकिंग सिस्टम का करीब 90 फीसदी stressed assets (NPA) सरकारी बैंकों के पास ही हैं।

बैंकों को RBI द्वारा निर्धारित, mandatory reserve requirement, बैड लोन के लिए प्रोविजनिंग और इकोनॉमी में मांग आने पर लेंडिंग साइकिल को शुरू करने के लिए पूंजी की जरूरत है। पिछले यूनियन बजट में वित्त मंत्री ने पब्लिक सेक्टर बैंकों के लिए कोई नया पूंजी आवंटन नहीं किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि पिछले सालों के दौरान सरकार ने सराकारी बैंकों में  3.5 लाख करोड़ रुपये डाले हैं। ऐसे में सरकारी बैंकों को अपनी पूंजी जरूरतों के लिए कैपिटल मार्केट का रूख करना चाहिए।

अगस्त 2020 में रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा था कि भारतीय सरकारी बैंकों को अगले 2 सालों में 2 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इनमें से लगभग आधे का उपयोग बैड लोन से निपटने में किया जाएगा।


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