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यूनियन बजट 2023 : अगले वित्त वर्ष सड़क, बंदरगाह, हवाईअड्डा जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर पर घट सकता है सरकार का खर्च

Budget 2023: फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने पिछले दो फाइनेंशियल ईयर में कैपिटल एक्सपेंडिचर काफी बढ़ाया था। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी सरकार का खर्च काफी बढ़ा था। लेकिन, अगले फाइनेंशियल ईयर में इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार का खर्च घट सकता है

अपडेटेड Jan 18, 2023 पर 10:38 AM
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एक्सपर्ट्स का कहना है कि ग्लोबल इकोनॉमी पर मंडराते मंदी के खतरे का असर इंडियन इकोनॉमी पर भी दिख सकता है। इससे टैक्स कलेक्शंस और सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने की सरकार की कोशिशों पर असर पड़ सकता है।

Union Budget 2023: अगले फाइनेंशियल ईयर (2023-24) में इंफ्रास्ट्रक्चर, बिल्डिंग्स और दूसरे फिक्स्ड एसेट्स पर सरकार का खर्च घट सकता है। ऐसा होने पर इंडियन इकोनॉमी (Indian Economy) की ग्रोथ की रफ्तार पर असर पड़ सकता है। अभी इंडियन इकोनॉमी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी में शामिल है। इससे तेज इकोनॉमिक ग्रोथ सिर्फ सऊदी अरब की इकोनॉमी की रहने की उम्मीद है। एक्सपर्ट्स उम्मीद कर रहे हैं कि फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) यूनियन बजट 2023 में इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ाने वाले उपायों का ऐलान करेंगी। वित्तमंत्री यूनियन बजट 2023 1 फरवरी को पेश करेंगी।

पिछले दो साल में कैपिटल एक्सपेंडिचर काफी बढ़ा था

पिछले दो फाइनेंशियल ईयर में निर्मला सीतारमण ने कैपिटल एक्सपेंडिचर काफी बढ़ाया था। दरअसल, सरकार इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार बढ़ाने के साथ ही इंडिया को फॉरेन इनवेस्टर्स के लिए एक अट्रैक्टिव डेस्टिनेशन के रूप में पेश करना चाहती है। पिछले दो साल में सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर अपना खर्च क्रमश: 39 फीसदी और 26 फीसदी बढ़ाया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ग्लोबल इकोनॉमी पर मंडराते मंदी के खतरे का असर इंडियन इकोनॉमी पर भी दिख सकता है। इससे टैक्स कलेक्शंस और सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने की सरकार की कोशिशों पर असर पड़ सकता है।


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खर्च घटाने के साथ ग्रोथ बढ़ाने के उपाय जरूरी

इस बार 1 फरवरी को जब फाइनेंस मिनिस्टर यूनियन बजट पेश करेंगी तब उनके सामने सरकार का फिस्कल डेफिसिट कम रखने के साथ ही इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ाने के उपाय करने की चुनौती होगी। सरकार इंडिया को मैन्युफैक्चरिंग में दुनिया में नंबर वन बनाना चाहती है। इसके लिए लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाने और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की जरूरत है। इसके लिए दोनों पर खर्च बढ़ृाना जरूरी है। इसके लिए सरकार को काफी पैसे चाहिए।

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टैक्स कलेक्शंस की ग्रोथ सुस्त पड़ने की आशंका

सरकार के खर्च करने की एक सीमा है। एलएंडटी फाइनेंस लिमिटेड की इकोनॉमिस्ट रुपा रेगे निस्तुरे ने कहा कि स्टैटिस्टिक्स बेस बहुत हाई है। इसलिए हर साल खर्च में लगातार वृद्धि करना मौजूदा संसाधनों के बीच मुमकिन नहीं है। सरकार के रेवेन्यू में भी सुस्ती की उम्मीद है। इसका असर भी सरकार के खर्च करने की क्षमता पर पड़ेगा। एचएसबीसी होल्डिंग्स के इकोनमिस्ट्स का कहना है कि अगले फाइनेंशियल ईयर में टैक्स कलेक्शंस की ग्रोथ 2021 और 2022 के 30 फीसदी के मुकाबले कम रह सकती है।

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