कहा जाता है कि किसी चीज को पूरी तरह देखने के बाद ही उसके अच्छे या खराब होने का अंदाजा लगाना चाहिए। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि बजट भाषण (Budget Speech) में अच्छी बातें होती है। सरकार के सख्त फैसले फाइनेंस बिल (Finance Bill) में शामिल होते हैं। इसका मकसद स्टॉक मार्केट्स (Stock Markets) और फाइनेंस एवं लीगल एक्सपर्ट्स की तुरंत प्रतिक्रिया से बचना है। इस बार भी बजट (Union Budget 2023) को लेकर कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि सरकार टैक्स में इजाफा से लेकर टैक्सपेयर्स पर कंप्लायंस का बोझ तक बढ़ा सकती है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं:
सरकार ने 2015 में वेल्थ टैक्स (Wealth Tax) को खत्म कर दिया था। इसे मोदी सरकार का बड़ा रिफॉर्म बताया गया था। वेल्थ टैक्स को हटाने का ऐलान करते हुए पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने 2015 के अपने बजट भाषण में कहा था, "वित्त वर्ष 2013-14 में इंडिया में कुल वेल्थ कलेक्शन 1,008 करोड़ रुपये था। क्या ऐसा टैक्स जिसके कलेक्शन का खर्च ज्यादा है और यील्ड कम है, उसे बनाए रखना कही होगा? अमीर लोगों को कम इनकम वाले लोगों के मुकाबले ज्यादा टैक्स चुकाना चाहिए। इसलिए मैंने वेल्थ टैक्स खत्म करने का फैसला किया है। इसकी जगह बहुत अमीर लोगों पर अतिरिक्त 2 फीसदी का सरचार्ज लगाया जा रहा है। यह ऐसे लोगों पर लागू होगा, जिनकी टैक्सेबल इनकम एक करोड़ रुपये से ज्यादा होगी। इससे टैक्स के नियमों को आसान बनाने में मदद मिलेगी। डिपार्टमेंट कंप्लायंस और टैक्स बेस बढ़ाने पर फोकस कर पाएगा।"
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2. इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग फीस
सोशल मीडिया पर हाल में एक अफवाह चल रही थी। इसमें कहा गया था कि सरकार इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग फीस लगाने के बारे में सोच रही है। इसका मकसद इनकम टैक्स रिटर्न की प्रोसेसिंग पर आने वाले खर्च का इंतजाम करना है। खासकर ऐसे रिटर्न की फाइलिंग का खर्च वसूलना, जिसमें लोग किसी तरह का टैक्स नहीं चुकाते हैं। पिछळे कुछ सालों से सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है। ऐसे लोगों के लिए भी इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग अनिवार्य बनाई जा रही है, जिनकी टैक्सेबल इनकम नहीं है। अगर सरकार यह फीस लगाती है तो टैक्सपेयर्स पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इससे ऐसे कई लोग इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना बंद कर देंगे जो अभी स्वेच्छा से रिटर्न फाइल करते हैं, क्योंकि उनकी इनकम टैक्सेबल नहीं होती है।
3. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन स्ट्रक्चर में बदलाव
अभी कैपिटल गेंस टैक्स के अलग-अलग रेट्स हैं। लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस के नियम अलग-अलग हैं। अलग-अलग एसेट क्लास के लिए नियम अलग-अलग है। उदाहरण के लिए लिस्टेड शेयरों के लिए लॉन्ग टर्म एक साल का है, जबकि अनलिस्टेड शेयरों के लिए यह दो सला है। डेट म्यूचुअल फंडस के लिए यह तीन साल है। लॉन्ग टर्म की कैटेगरी में आने पर कुछ खास एसेट पर लोअर टैक्स रेट या इंडेक्सेशन का बेनेफिट उपलब्ध है। इसलिए अगर किसी एसेट पर होल्डिंग पीरियड बढ़ाया जाता है तो इससे टैक्सपेयर्स पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। हालांकि, होल्डिंग पीरियड अगर घटाया जाता है तो इस फैसले का स्वागत होगा।
4. टैक्स डिडक्शंस घटाना या खत्म करना
टैक्स नियमों को आसान बनाने के लिए इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 15bac के तहत न्यू टैक्स रीजीम शुरू की गई थी। लेकिन, इसमें टैक्सपेयर्स ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि इसमें टैक्सपेयर्स पर टैक्स का बोझ बढ़ जाता है। ओल्ड टैक्स रीजीम में कई तरह के बेनेफिट और एग्जेम्प्शंस उपलब्ध हैं। इससे टैक्सपेयर्स पर टैक्स का बोझ कम हो जाता है।
अभी एग्रीकल्चर इनकम पर सीधे तौर पर टैक्स नहीं लगता है। लेकिन, अगर किसान की इनकम के दूसरे स्रोत होन पर टैक्स लगता है। कई इकोनॉमिस्ट्स अमीर किसानों और एग्री सेक्टर में काम करने वाली कंपनियों को टैक्स के दायरे में लाने की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन, किसान संगठनों ने हमेशा इस प्रस्ताव का विरोध किया है। इसलिए सरकार इस बारे में ऐलान करने से बचती रही हैं। यह देखना होगा कि फाइनेंस मिनिस्टर इस बारे में फैसला लेती है या आने वाले सालों के लिए टाल देती हैं।
पिछले कुछ सालों में कई सख्त ऐलान किए गए हैं। कई टैक्स बेनेफिट्स को चुपके से वापस ले लिया गया है। खासकर, सैलरीड टैक्सपेयर्स के मामले में ऐसा देखने को मिला है। इससे उन पर टैक्स का बोझ बढ़ गया है। अब इंतजार यूनियन बजट 2023 का है। यह जानने के लिए हमें इंतजार करना होगा कि इसमें कौन से सख्त फैसले छुपे होंगे।