जब कोई गैर-लिस्टेड स्टार्टअप किसी निवेशक से पैसे जुटाती है तो फेयर वैल्यू से जितना अधिक फंड मिलता था, अब तक इस पर टैक्स देनदारी बनती थी। यही एंजेल टैक्स है। इसे एक उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। मान लेते हैं कि कोई स्टार्टअप है जिसने 10 हजार रुपये के भाव पर किसी भारतीय निवेशक को 1 लाख शेयर जारी किए हैं और इसके जरिए 100 करोड़ रुपये जुटाए हैं। अब मान लेते हैं कि जो शेयर जारी हुए हैं, उनकी फेयर मार्केट वैल्यू 70 करोड़ रुपये ही है तो स्टार्टअप जो जो एक्स्ट्रा पैसे यानी 30 करोड़ रुपये (100 करोड़-70 करोड़ रुपये) मिले हैं, उस पर टैक्स देना होगा। इस पर 30.9 फीसदी की दर से 9.27 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी बनेगी। इससे समझ सकते हैं कि स्टार्टअप जो अपना कारोबार शुरू ही कर रही है, उसे टैक्स के रूप में बड़ा झटका लगता था। कंपनियां इसलिए भी अपने फेयर मार्केट वैल्यू से अधिक फंड जुटाने में संभव हो जाती हैं क्योंकि मार्केट में उनका क्रेज अच्छा है और उनके कारोबार में ग्रोथ की काफी गुंजाइश है। पहले यह सिर्फ भारतीय निवेशकों के निवेश पर लगता था लेकिन फिर वित्त अधिनियम 2023 के जरिए इसमें विदेशी निवेशकों को भी शामिल कर लिया गया।