भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024 में सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर कुल करीब 165 अरब रुपये (1.98 अरब डॉलर) जुटाए। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सोमवार को आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से यह जानकारी दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2024 के दौरान कुल 10 सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेची और 165 अरब डॉलर जुटाए। हालांकि यह सरकार के लक्ष्य से करीब 9 प्रतिशत कम रहा। दरअसल सरकार ने वित्त वर्ष 2024 में सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर 180 अरब रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली मोदी सरकार ने 19 अप्रैल से शुरू हो रहे लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकारी कंपनियों के निजीकरण की रफ्तार को कम कर दिया है। सरकार चुनावी साल में विपक्ष को अपने ऊपर हमले का कोई मौका नहीं देना चाहती है।
मोदी सरकार ने पिछले एक दशक में केवल दो बार ही निजीकरण और कंपनियों में आंशिक हिस्सेदारी बेचने के लक्ष्य को पूरा किया है। सरकार को कई कारणों से विभिन्न सरकारी कंपनियों के निजीकरण योजना में देरी का सामना करना पड़ा है।
इसे देखते हुए मोदी सरकार ने 1 अप्रैल से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए रकम जुटाने का कोई लक्ष्य नहीं रखा है। यह एक तरह से सालों से चली आ रही प्रथा से अलग है। हालांकि कुछ बजट एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार लोकसभा चुनावों के बाद पेश किए जाने बजट में विनिवेश का लक्ष्य रख सकती है।
सरकार हिस्सेदारी बिक्री के लक्ष्य से जरूर चूक गई है, लेकिन इस वित्त वर्ष में सरकारी कंपनियों से केंद्र को डिविडेंड राशि अधिक मिली है, जिससे उसके हुए नुकसान की आंशिक तौर पर भरपाई हो गई है। रॉयटर्स ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया, वित्त वर्ष 2024 में सरकार को सिर्फ डिविडेंड के तौर पर 630 अरब रुपये मिले हैं, जो उसकी ओर से रखे गए 500 अरब रुपये के लक्ष्य से कहीं अधिक है।