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RBI Monetary Policy: क्या यह बैंकों के लिए RBI की तरफ से अप्रत्याशित नवरात्रि गिफ्ट है?

RBI Monetary Policy: प्रोविजनिंग का एक्सपेक्टेड क्रेडिट लॉस (ECL) फ्रेमवर्क सभी शिड्यूल्ड कमर्शियल बैंक (स्मॉल फाइनेंस बैंक को छोड़कर), पेमेंट बैंक्स (PB), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक्स (RRB) और ऑल इंडिया फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस (AIFIs) पर 1 अप्रैल, 2027 से लागू होगा

अपडेटेड Oct 01, 2025 पर 5:06 PM
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प्रस्तावित बदलाव से बैंक 'incurred loss' एप्रोच की जगह 'Expected Loss' एप्रोच का इस्तेमाल कर सकेंगे।

आरबीआई ने अक्टूबर की मॉनेटरी पॉलिसी में रेपो रेट में बदलाव नहीं किया। लेकिन, इसने बैंकिंग सेक्टर के लिए बड़ा ऐलान किया। क्या यह यह बैंकों के लिए फेस्टिवल सीजन में खुशखबरी है, जो घटती क्रेडिट ग्रोथ, इंटरेस्ट मार्जिन पर दबाव और एसेट क्वालिटी पर दबाव जैसे चैलेंज का सामना कर रहे हैं?

incurred loss की जगह Expected loss एप्रोच का होगा इस्तेमाल

प्रोविजनिंग का एक्सपेक्टेड क्रेडिट लॉस (ECL) फ्रेमवर्क सभी शिड्यूल्ड कमर्शियल बैंक (स्मॉल फाइनेंस बैंक को छोड़कर), पेमेंट बैंक्स (PB), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक्स (RRB) और ऑल इंडिया फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस (AIFIs) पर 1 अप्रैल, 2027 से लागू होगा। प्रस्तावित बदलाव से बैंक 'incurred loss' एप्रोच की जगह 'Expected Loss' एप्रोच का इस्तेमाल कर सकेंगे। इनकर्ड लॉस एप्रोच में क्रेडिट लॉस की पहचान ईसीएल एप्रोच के मुकाबले काफी बाद में होती है।


बड़े प्राइवेट बैंकों पर बदलाव का कम असर पड़ेगा

प्राइवेट सेक्टर के बैंक इस बदलाव के लिए तैयार हैं। बड़े प्राइवेट बैंकों पर इस बदलाव का कम असर पड़ेगा। इसकी वजह कोविड-19 के दौरान उनकी तरफ से मेंटेन किया गया कंटिजेंसी प्रोविजनिंग है। इसके अलावा एसेट क्वालिटी के मामले में भी उनका रिकॉर्ड बेहतर रहा है। कुछ सरकारी बैंकों पर इसका असर कम होगा, क्योंकि उनकी तरफ से कंटिजेंसी प्रोविजनिंग की गई है। स्लिपेज में और इम्प्रूवमेंट होने से Probability of Default (PD) मल्टीपल्स में इम्प्रूवमेंट आ सकता है, जिससे ईसीएल एस्टिमेट घटेगा।

बेहतर कैपिटलाइजेशन लेवल से बैंकों को नहीं आएगी दिक्कत

आरबीआई ने किसी ईसीएल से संबंधित वन-टाइम प्रोविजंस के स्प्रेडिंग के लागू होने की तारीख से मैक्सिमम 4 साल के टाइमफ्रेम का प्रस्ताव दिया है। लेकिन, उम्मीद है कि ज्यादातर बैंक इस बदलाव के असर को पहले ही मैनेज कर लेंगे। इंडियन बैंकिंग सेक्टर अभी अच्छी स्थिति में है। जून 2005 में सिस्टम-लेवल कैपिटल टू रिस्क वेटेड एसेट रेशियो (CRAR) 17.54 फीसदी रहा। यह रेगुलेटरी मिनिमम लेवल से काफी ज्यादा है। जून 2025 में GNPA रेशियो 2.22 फीसदी होने से एसेट क्वालिटी में इम्प्रूवमेंट दिखता है। जून 2024 में यह 2.67 फीसदी था। अच्छा कैपिटलाइजेशन लेवल, एसेट क्वालिटी और प्रॉफिटेबिलिटी में इम्प्रूवमेंट से बैंक ईसीएल नियम के लागू होने के असर को बर्दाश्त कर सकेंगे।

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कैपिटल एडेक्वेसी के बेसल III नियम 1 अप्रैल, 2027 से लागू होंगे

कैपिटल एडेक्वेसी के संशोधित Basel III नियम कमर्शियल बैंकों (SFB, PB और RRBs को छोड़कर) के लिए 1 अप्रैल, 2027 से लागू होंगे। कुछ सेगमेंट पर प्रस्तावित कम रिस्क वेट से कुल कैपिटल रिक्वायरमेंट में कमी आने की उम्मीद है। खासकर एमएसएमई और रेजिडेंशियल रियल एस्टेट (होम लोन सहित) के मामले में ऐसा हो सकता है, जो ज्यादातर बैंकों के लिए ग्रोथ के मुख्य फोकस एरिया रहे हैं।

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