4-Working Days: दुनिया भर की कंपनियों में आमतौर पर एक हफ्ते में छह या पांच वर्किंग डेज का फॉर्मूला है। काम और निजी जिंदगी में बैलैंस के तौर पर हफ्ते में चार दिनों के काम को लेकर बहस शुरू हो चुकी है। इस बीच जून 2022 में ब्रिटेन में इसे लेकर एक अध्ययन शुरू हुआ है। कई सेक्टर्स की कुछ कंपनियों ने छह महीने के लिए 4-डे वीक पायलट प्रोग्राम (4-Day Week UK Pilot Programme) के तहत हिस्सा लिया।
अब जब इस प्रोग्राम को शुरू हुए तीन महीने यानी आधा समय बीत चुका है तो इसमें हिस्सा लेने वाली कंपनियों की प्रतिक्रिया कैसी रही, इसे लेकर सीएनबीसी ने कुछ कंपनियों से बातचीत की। कंपनियों का मानना है कि कुछ चुनौतियों के बावजूद चार वर्किंग डेज का कांसेप्ट सकारात्मक है। वहीं कर्मियों के हिसाब से भी यह प्रयोग पॉजिटिव रहा।
4-वर्किंग डेज कांसेप्ट पर कंपनियों का क्या है मानना?
कंटेंट और डिजिटल माार्केटिंग कंपनी लिटरल ह्यूमन्स के को-फाउंडर गैड्सबी पीट के मुताबिक चार-वर्किंग डेज के कांसेप्ट में कुछ निगेटिव्स हैं लेकिन पॉजिटिव बहुत अधिक हैं। उनका कहना है कि हफ्ते में चार दिन ही काम से उत्पादकता 5 फीसदी कम हुई लेकिन कर्मियों की खुशी 50 फीसदी बढ़ गई और इसके चलते बेहतर टैलेंट आया।
कर्मियों के हिसाब से कैसा रहा यह प्रयोग?
शुरुआत में जब चार वर्किंग डेज का प्रयोग शुरू हुआ तो कर्मियों को बहुत दबाव महसूस हुआ क्योंकि चार ही वर्किंग डेज के चलते काम का बोझ बढ़ा। हालांकि अब उन्हें अपने काम और निजी जिंदगी के बीच संतुलन के लिए यह बेहतर आइडिया लग रहा। एक कर्मी ने सीएनबीसी से बताया कि अब उसे यह कांसेप्ट पसंद आ गया है और वह पांच वर्किंग डेज में कभी नहीं लौटेगी। उसका मानना है कि यह उसके काम और निजी जिंदगी के लिए बेहतर संतुलन है।
78% कर्मी और 63% कंपनियां 4-वर्किंग डेज के फेवर में
'द 4-डे वीक ग्लोबल' कारोबारी नेताओं और रणनीतिकारों का एक गैर-लाभकारी समूह है। इसकी वेबसाइट पर दावा किया गया है कि जिन कंपनियों का सर्वे किया गया, उनमें से 63 फीसदी ने चार कामकाजी दिनों के कांसेप्ट को टैलेंट आकर्षित करने वाला बताया यानी कि जिन कंपनियों में यह कांसेप्ट अपनाया गया, वहां बेहतर टैलेंट वालों के आवेदन अधिक मिले। वहीं दूसरी तरफ 78 फीसदी कर्मी भी इस कांसेप्ट से अधिक खुशी और कम तनाव में दिखे।
भारत में कब तक आएगा यह कांसेप्ट?
यूके के बाद अभी चार वर्किंग डेज के कांसेप्ट का ट्रॉयल कनाडा, अमेरिका और शेष यूरोप में शुरू होने वाला है। हालांकि भारत की बात करें तो एक्सपर्ट्स इसे लेकर बहुत पॉजिटिव नहीं हैं। स्पेशलिस्ट स्टॉफिंग फर्म Xpheno के को-फाउंडर Kamal Karanth ने जून में मनीकंट्रोल से बातचीत में कहा था कि भारत अभी इसके लिए तैयार नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि यहां लेबर मार्केट में कई लेयर हैं और यहां पर अलग-अलग प्रकार की कई कंपनियां हैं।
कैरियर कंसल्टिंग एंड कॉरपोरेट ट्रेनिंग फर्म Eclatmax के फाउंडर John Poulose की राय है कि भारतीय बाजार अभी यूरोप और अमेरिका जितना परिपक्व नहीं है। जॉन के मुताबिक चार वर्किंग डेज के कांसेप्ट को सभी सेक्टर्स और सभी रोल्स के लिए नहीं लागू किया जा सकता है लेकिन जहां इसे लागू किया जा सकता है, वहां भी कंपनियों के माइंडसेट में बदलाव की जरूरत होगी।