अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ का ऐलान कर अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार ली है। रेसिप्रोकल टैरिफ का सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को होगा। इससे अमेरिकी इंकोनॉमी के मंदी में जाने का खतरा बढ़ गया है। अमेरिका इकोनॉमी का मंदी में जाना न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि पूरी दुनिया को बड़ी मुश्किल में डाल सकता है। रोजनबर्ग रिसर्च के फाउंडर और प्रेसिडेंट डेविड रोजनबर्ग का मानना है कि 2025 के अंत तक अमेरिका मंदी में जा सकता है। रोजनबर्ग को वैश्विक अर्थव्यवस्था की व्यापक समझ है। वह मेरिल लिंच के चीफ इकोनॉमिस्ट रह चुके हैं।
अमेरिकी इकोनॉमी पहले से दबाव में
अमेरिकी इकोनॉमी पर पहले से ही दबाव के संकेत दिख रहे थे। एक महीना पहले रोजनबर्ग ने कहा था कि इस साल अमेरिका की ग्रोथ एक फीसदी से कम रह सकती है। 2 अप्रैल को ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ के ऐलान के बाद यह खतरा और बढ़ गया है। किसी देश की जीडीपी में लगातार दो तिमाही गिरावट का मतलब है कि वह मंदी में जा चुकी है। दूसरे एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि रेसिप्रोकल टैरिफ का अमेरिकी इकोनॉमी पर काफी खराब असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि दूसरे देश भी अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाने का ऐलान करेंगे। इससे ग्लोबल ट्रेड पर काफी खराब असर पड़ेगा। यह पूरी दुनिया के लिए निगेटिव होगा।
स्टॉक मार्केट्स लंबे बेयर फेज में जा सकते हैं
रोजनबर्ग का मानना है कि अगर ग्लोबल ट्रेड में बड़ी गिरावट आती है तो इससे कई देशों की ग्रोथ घट जाएगी। उन्होंने कहा ऐसा होने पर स्टॉक मार्केट्स के बेयर फेज में जाने की आशंका बढ़ जाएगी। हालांकि, ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ से अमेरिका को इंपोर्ट ड्यूटी के रूप में अरबों डॉलर की इनकम होगी। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे अमेरिका में फिर से इनफ्लेशन बढ़ेगा। इंडिया की जीडीपी करीब 27 लाख करोड़ (ट्रलियन) डॉलर की है। यह इंडिया के मुकाबले करीब 7 गुना है।
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पूरी दुनिया की ग्रोथ पर पड़ सकता है असर
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी इकोनॉमी इतनी बड़ी है कि इसके मंदी में जाने का मतलब है कि दुनिया की दूसरी इकोनॉमी के लिए भी संकट बढ़ जाएगा। चीन सहित दुनिया के कई देश अमेरिका को काफी ज्यादा गुड्स का एक्सपोर्ट करते हैं। अमेरिका बुनियादी जरूरतों की ज्यादातर चीजें इंपोर्ट करता है। अगर अमेरिका मंदी में जाता है तो वह कंज्यूमर डिमांड घट जाएगी। इसका सीधा असर अमेरिका को एक्सपोर्ट करने वाले देशों पर पड़ेगा। अच्छी बात यह है कि इंडिया ऐसे देशों में शामिल नहीं है। इंडिया की जीडीपी में घरेलू डिमांड की ज्यादा हिस्सेदारी है।