Dhanlaxmi Bank : केरल (Kerala) के सबसे पुराने वित्तीय संस्थानों (financial institutions) में से एक धनलक्ष्मी बैंक का अंतहीन आंतरिक टकरावों वाला इतिहास रहा है। वर्षों के दौरान बोर्ड और टॉप मैनेजमेंट से जल्दी-जल्दी इस्तीफे या एक्जिट के कई मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर एक्जिट की वजह प्रभावशाली शेयरहोल्डर्स और टॉप एग्जीक्यूटिव के बीच समय समय पर ‘पावर स्ट्रगल’ यानी अपनी पकड़ बनाने की कोशिशें रही हैं। समय से पहले निकलने वालों की लिस्ट खासी लंबी है।
एक बार तो ऐसा भी हुआ था जब एक सीईओ को माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स ने ही उनके प्रदर्शन से नाखुश होकर बाहर कर दिया था। सीईओ ने साजिश करने का आरोप लगाया था। ऐसी घटनाओं से बैंक के प्रति इनवेस्टर्स का भरोसा खासा प्रभावित हुआ। इस अस्थिरता से शीर्ष स्तर पर फैसले लेने की प्रक्रिया खासी बाधित हुई और बैंक कॉम्पीटिशन में पीछे छूट गया।
बोर्ड में जगह बनाने के लिए होता रहा है टकराव
हाल में, Dhanlaxmi Bank में बोर्ड की सीटों के लिए टकराव हुआ। कुछ बड़े शेयरहोल्डर्स बोर्ड में अपने नॉमिनी चाहते थे। नॉमिनीज देश के शीर्ष वकीलोंके साथ केरल हाईकोर्ट में चले गए। बैंक ने लड़ाई लड़ी। अदालती लड़ाई के चलते बैंक में नए बोर्ड सदस्यों शामिल नहीं हो सके और नई पूंजी भी नहीं जुटाई जा सकी। इस गतिरोध ने RBI का ध्यान अपनी ओर खींचा और उसने अपने दो नॉमिनीज को घटनाक्रम की बारीकी से जांच के लिए बोर्ड में शामिल कर दिया।
इस बीच, शेयरहोल्डर्स के एक गुट ने सीईओ के अधिकार सीमित करने और कोर्ट के याचिकाकर्ताओं के साथ विवाद के समाधान का काम एक बोर्ड मेंबर को सौंपने की मांग करते हुए ईजीएम बुलाने के लिए एप्लीकेशन आगे बढ़ाई।
हालांकि, हाई कोर्ट के याचिकाओं को सुनने योग्य नहीं मानने के फैसले के बाद शेयरहोल्डर्स ने ईजीएम की मांग वापस ले ली। इसके तुरंत बाद बैंक ने बोर्ड में तीन नए निदेशकों की नियुक्ति की, जिसने याचिकाकर्ताओं की मांगों पर सहमति जताते हुए एक समझौता किया। बैंक के इस ताजा घटनाक्रम के दो मतलब हैं।
पहला, विभिन्न गुटों के बीच समझौते के बाद मैनेजमेंट को बिजनेस पर फोकस करने में मदद मिलेगी। दूसरा, नए डायरेक्टर्स के साथ बैंक अब राइट इश्यू के जरिये कैपिटल जुटा सकेगा। ये घटनाक्रम आने वाले दिनों में बैंक के लिए पॉजिटिव हो सकते हैं।
Dhanlaxmi ने 1927 में स्थापना के बाद स्थानीय आबादी और बिजनेस कम्युनिटी के लिए अहम भूमिका निभाई है। हाल तक, बैंक के बोर्ड में सिर्फ पांच मेंबर (आरबीआई के डायरेक्टर्स को छोड़कर सिर्फ दो) थे। अब बोर्ड में नए चेहरों के साथ, बैंक के सामने आगे बढ़ने का मौका है। इसके लिए शेयरहोल्डर्स और मैनेजमेंट के बीच कोऑर्डिनेशन की जरूरत है। राइवल्स से मिल रहे कॉम्पिटीशन और संभावित टेकओवर की चुनौती को देखते हुए, दोनों ही पक्षों को इस बात का बेहतर तरीके से अहसास हो चुका है।