मेघालय कैबिनेट ने NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) के 565 करोड़ रुपये के बकाए को खत्म करने की मंजूरी दे दी है। मेघालय कैबिनेट ने 18 अक्टूबर को इसे 20 किश्तों में भरने की मंजूरी दी है। यह जानकारी राज्य के पावर मिनिस्टर एटी मंडल ने दी है। मेघालय पावर डिपार्टमेंट के प्रस्ताव को राज्य के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा की अध्यक्षता में राज्य के कैबिनेट ने दी। उन्होंने बताया कि एनटीपीसी 100 करोड़ रुपये माफ करने के लिए तैयार हो गई है। हालांकि अभी भी इसे लेकर बातचीत चल रही है ताकि पूरी राशि 20 किश्तों में चुकाई जाए या किश्तों में चुकाने की राहत मिल जाए। उन्होंने कहा कि मेघालय एनर्जी कॉरपोरेशन की वित्तीय स्थिति बेहतर नहीं है तो इस बकाए से फटाफट निपटने के लिए ही सरकार ऐसा कर रही है।
बकाया नहीं चुकाते तो बढ़ जाता बोझ
मेघालय के बिजली मंत्री के मुताबिक राज्य सरकार ने आत्मनिर्भर लोन लिया था और 488 करोड़ रुपये के बकाए का आधा हिस्सा चुका दिया। 488 करोड़ रुपये का 244 करोड़ रुपये चुका दिया गया था और बाकी 244 करोड़ रुपये ही बढ़कर अब 665 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। रिपोर्ट्स से बातचीत में मंडल ने कहा कि जब बिजली बकाया 665 करोड़ रुपये पहुंच गया तो एनटीपीसी से बातचीत शुरू की गई। अगर इस बकाए को लेकर अभी कदम नहीं उठाए जाते तो यह जल्द ही 1000 करोड़ रुपये से अधिक हो जाता और मेघालय पावर डिस्ट्रीब्यूशनल कॉरपोरेशन लिमिटेड (MePDCL), मेघालय एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड (MeECL) और पूरे राज्य सरकार के लिए भारी बोझ बन जाता।
उन्होंने कहा कि बातचीत और बैठकों के बाद एनटीपीसी इस बात पर सहमत हुई कि उन्हें 664 या 665 करोड़ रुपये की बजाय 565 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा सकता है। हालांकि यह पेमेंट करीब 20 किश्तों में होगा। उन्होंने कहा कि एनटीपीसी 100 करोड़ रुपये से अधिक माफ करने पर सहमत हो गया है और अब ब्याज दर भी कम करने की संभावना है।
मंडल ने इसका भी खुलासा किया कि ऐसी स्थिति आई ही क्यों। उन्होंने बताया कि 2007 में राज्य सरकार और एनटीपीसी के बीच एक समझौते के चलते ही ऐसी नौबत आई। एनटीपीसी काफी अधिक फिक्स्ड चार्जेज ले रही थी। ऐसे में सरकार ने ब्याज और फिक्स्ड चार्जेज और ओवरऑल सभी में कमी के लिए कंपनी से कॉन्टैक्ट किया था लेकिन बात नहीं बन पाई। इसके बाद सरकार मामले को लेकर कोर्ट पहुंच गई। हालांकि जो सौदा 2007 में हुआ था, सब कुछ उसी हिसाब से हो रहा था तो अदालत ने कंपनी के पक्ष में ही फैसला दिया।