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Padma Awards 2024: कर्पूरी ठाकुर के रास्ते पर ही खांटी ईमानदारी से चली है सुरेंद्र किशोर की लेखनी!

Padma Awards 2024: मंगलवार, 23 जनवरी को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा करने वाली मोदी सरकार ने 25 जनवरी को उनके खास सहयोगी रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर को पद्म श्री सम्मान देने की घोषणा की। पिछले पांच दशक से पटना में ही रहकर धारदार पत्रकारिता कर रहे सुरेंद्र किशोर अपनी सादगी, ईमानदारी और शुचिता के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें सत्ता का मोह कभी नहीं रहा। इन्हीं वजहों से वह जन नायक कर्पूरी ठाकुर ही नहीं, लोक नायक जयप्रकाश नारायण के भी लाड़ले रहे

Brajesh Kumar Singhअपडेटेड Feb 02, 2024 पर 2:24 PM
Padma Awards 2024: कर्पूरी ठाकुर के रास्ते पर ही खांटी ईमानदारी से चली है सुरेंद्र किशोर की लेखनी!
सुरेंद्र किशोर का अक्खड़पन पूरी जिंदगी जारी रहा। आपातकाल के दिनों में जॉर्ज फर्नांडीस के करीबी साथी थे सुरेंद्र किशोर।

सुरेंद्र किशोर से आमने-सामने मिलना कभी नहीं हुआ। बिहार की राजधानी पटना में मैंने कभी लंबा काम भी नहीं किया, कभी पोस्टिंग नहीं रही, चुनावों के समय दो-चार दिन गुजारता था, वो भी रिपोर्टिंग के दिनों में। बिहार जन्मभूमि प्रदेश जरूर है, लेकिन कर्मभूमि गुजरात ही रही करीब डेढ़ दशक तक। गुजरात में सैकड़ों पत्रकारों और समाज जीवन के तमाम बड़े चेहरों को जानता हूं, लेकिन बिहार के गिने-चुने पत्रकारों को ही जानता हूं, समाज के बाकी हिस्से से परिचय और भी कम।

फिर सुरेंद्र किशोर की चर्चा क्यों। वजह खास है। कर्पूरी ठाकुर की तरह सुरेंद्र किशोर भी सादगी की मूर्ति हैं, नखशिख ईमानदार हैं, प्रामाणिक हैं, सच्चे समाजवादी आचार-विचार के हैं, लेकिन विचारधारा के नाम पर अंधे नहीं हैं। जो कुछ अच्छा हो रहा है, उसकी सराहना करते हैं, गलत के खिलाफ आवाज उठाते हैं, सावधान करते हैं, अपनी कलम से। मेरे मन में यह तस्वीर उनकी लेखनी से बनी है, उनके बारे में जानने वालों से चर्चा के दौरान बनी है, सुरेंद्र किशोर से हुई गिनी-चुनी, लेकिन यादगार टेलीफोनिक वार्ताओं के आधार पर बनी है।

रिकॉर्ड के तौर पर सुरेंद्र किशोर बिहार में राजधानी पटना से सटे, सारण जिले के एक गांव भरहापुर से आते हैं। परिवार समृद्ध, खेती- बाड़ी भरपूर, लेकिन सुरेंद्र किशोर युवा दिनों से ही विद्रोही। जिस जमाने में बिहार में दहेज लेना सामान्य शिष्टाचार होता था, उस जमाने में बिना दहेज शादी की। दहेज नहीं, तो फिर बारात का खर्चा कौन उठाए? पिता जमीन बेचना चाह रहे थे, लेकिन सुरेंद्र किशोर इसके लिए तैयार नहीं हुए। नाराज होकर पिता शिवनंदन सिंह शादी में शामिल नहीं हुए, सबसे महत्वपूर्ण बाराती बने थे कर्पूरी ठाकुर।

बिहार के दो- दो बार मुख्यमंत्री रहे और मोदी सरकार की तरफ से मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से नवाजे गये कर्पूरी ठाकुर और सुरेंद्र किशोर के जुड़ाव की कहानी भी अनूठी है। वर्ष 1967 में जब कर्पूरी ठाकुर बिहार के उपमुख्यमंत्री हुआ करते थे, उनके पास छपरा से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता अंबिका दादा एक तेज- तर्रार युवक को लेकर आए। ये युवक उस क्रांतिकारी विद्यार्थी संघ का सारण जिला सचिव था, जो युवा सोशलिस्टों ने मिलकर बनाया था।

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