सुरेंद्र किशोर से आमने-सामने मिलना कभी नहीं हुआ। बिहार की राजधानी पटना में मैंने कभी लंबा काम भी नहीं किया, कभी पोस्टिंग नहीं रही, चुनावों के समय दो-चार दिन गुजारता था, वो भी रिपोर्टिंग के दिनों में। बिहार जन्मभूमि प्रदेश जरूर है, लेकिन कर्मभूमि गुजरात ही रही करीब डेढ़ दशक तक। गुजरात में सैकड़ों पत्रकारों और समाज जीवन के तमाम बड़े चेहरों को जानता हूं, लेकिन बिहार के गिने-चुने पत्रकारों को ही जानता हूं, समाज के बाकी हिस्से से परिचय और भी कम।