Get App

नेहरू ने भारत छोड़ो आंदोलन के विरोधी रहे राजा जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अंबेडकर को मंत्रिमंडल में क्यों किया था शामिल 

आज के कई कांग्रेसी इस बात के लिए श्यामाप्रसाद मुखर्जी की आलोचना करते रहते हैं कि वे सन 1937 में बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल हुए थे। लेकिन वे यह नहीं बताते थे कि मुखर्जी को नेहरू ने भी अपनी सरकार में शामिल क्यों किया था

Surendra Kishoreअपडेटेड Mar 27, 2023 पर 7:05 AM
नेहरू ने भारत छोड़ो आंदोलन के विरोधी रहे राजा जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अंबेडकर को मंत्रिमंडल में क्यों किया था शामिल 
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 20 नवंबर 1942 को नेहरू के मंत्री पद से इस्तीफा दिया था

देश के उन तीन बड़े नेताओं सी. राज गोपालाचारी, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने प्रथम मंत्रिमंडल का सदस्य बनाया था। जबकि इन लोगों ने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में हिस्सा नहीं लिया था। उलटे उन नेताओं ने उस आंदोलन का विरोध किया था। इनके अलावा जिन्ना और सावरकर भी भारत छोड़ो आंदोलन से अलग थे। 7 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक मुंबई के गोवलिया टैंक के मैदान में हुई थी। उस बैठक में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास किया और ‘करो या मरो’ का नारा दिया गया।

आज के कई कांग्रेसी इस बात के लिए श्यामाप्रसाद मुखर्जी की आलोचना करते रहते हैं कि वे सन 1937 में बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल हुए थे। लेकिन वे यह नहीं बताते थे कि मुखर्जी को नेहरू ने भी अपनी सरकार में शामिल क्यों किया था? यह बात भी कम ही लोग जानते हैं कि सन 1937 में कांग्रेस और जिन्ना के बीच यूपी के मंत्रिमंडल में शामिल होने पर सैद्धांतिक सहमति बन गई थी। लेकिन मंत्रियों की संख्या को लेकर विवाद के कारण मुस्लिम लीग के नेता सरकार से अलग रहे। मुस्लिम लीग की मांग दो सीटों की थी। किंतु दूसरी ओर कांग्रेस के साथ दिक्कत यह थी कि दो सीटें उसे दे देने के बाद विजयलक्ष्मी पंडित के लिए जगह नहीं बचती।

डॉक्टर अंबेडकर ने भारत छोड़ो आंदोलन को गैर जिम्मेदाराना कदम करार देते हुए कहा था कि गांधी जी को "Prophet for a Dark Age" कहा है। सी. राजगोपालाचारी ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करते हुए कहा था कि आज की जरूरत यह है कि ब्रिटिश सरकार से हम लोग बातचीत करें। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी तो सन 1941-42 में बंगाल की फजलुल हक सरकार में वित्त मंत्री थे।

मुखर्जी ने 20 नवंबर 1942 को मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। हां, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन ने आंदोलनकारियों का जो दमन किया, डॉक्टर मुखर्जी ने उसकी निंदा जरूर की थी। इन सब बातों के बावजूद सन 1946 में गठित नेहरू मंत्रिमंडल में ये तीनों नेता शामिल कर लिए गए थे। राज गोपालाचारी तो बाद में गवर्नर जनरल बने। नेहरू तो राजाजी को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे। किंतु कांग्रेस पार्टी ने नेहरू की सलाह नहीं मानी। नतीजतन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने। राजा जी उसके बाद मद्रास प्रांत के मुख्य मंत्री भी बने। राजा जी गांधी जी के समधी थे।

सब समाचार

+ और भी पढ़ें