RBI ने शुक्रवार को अपनी मॉनेटरी पॉलिसी (Monetary Policy) पेश कर दी। उसने रेपो रेट में 0.5 फीसदी वृद्धि की है। इसकी उम्मीद पहले से की जा रही थी। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (shaktikanta Das) ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) के अनुमान में बदलाव नहीं किया है। उन्होंने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में जीडीपी ग्रोथ 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है।
दास ने कहा कि इस साल मुद्रास्फीति सबसे बड़ा चैलेंज है। इसके बावजूद वित्त वर्ष 2022-23 में इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। इसका मतलब है कि इंडिया इस फाइनेंशियल ईयर में सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी होगी।
आरबीआई के गवर्नर ने कहा कि इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 16.2 फीसदी रहने का अनुमान है। दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के दौरान जीडीपी की ग्रोथ 6.2 फीसदी रहने की उम्मीद है। तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ 4.1 फीसदी रहने का अनुमान है। इस वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवररी से मार्च के दौरान जीडीवी की ग्रोथ 4 फीसदी रह सकती है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि आने वाले समय में RBI का फोकस महंगाई को काबू में करने पर बना रहेगा। आरबीआई गवर्नर ने यह साफ कर दिया है कि उदार मौद्रिक नीति का दौर अब खत्म हो चुका है। आगे वह इकोनॉमी की जरूरतों को देखते हुए अपनी मॉनेटरी पॉलिसी तय करेगा।
जीडीपी में ग्रोथ का यह अनुमान तब बहुत ज्यादा लगता है कि जब दुनिया की दूसरी बड़ी इकोनॉमी में गिरावट देखने को मिल रही है। इस साल अमेरिका की इकोनॉमी लगातार दो तिमाही घटी है। इस तरह से तकनीकी रूप से अमेरिकी इकोनॉमी मंदी में चली गई है। कई यूरोपीय देशों में भी यही स्थिति है।
मुश्किल हालात में इंडियन इकोनॉमी न सिर्फ महंगाई से निपटने को कोशिश करती नजर आ रही है बल्कि ग्रोथ को भी बनाए रखा है। आरबीआई ने कहा है कि सप्लाई साइड के दबाव में कमी आ रही है। इसका असर दिखने लगा है। खाद्य तेल की कीमतों में कमी आई है। आने वाले समय में मुद्रास्फीति के दबाव में और कमी देखने को मिल सकती है।