शौक-ए-इलाही उर्फ चांद बाबा: 1980 के दशक का सबसे खूंखार गैंगस्टर! किसी के लिए अतीक अहमद का दोस्त, तो किसी के लिए उसका गुरु
शौक-ए-इलाही (Shauk-e-Ilahi) उर्फ चांद बाबा (Chand Baba), जिसे 1980 के दशक में तब के इलाहाबाद, और अब के प्रयागराज के इतिहास में सबसे खूंखार गैंगस्टर और बमबाज के रूप में जाना जाता है। 'बमबाज' शब्द का इस्तेमाल अक्सर ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है, जो देसी बम बनाने का एक्सपर्ट हो। शौक-ए-इलाही और माफिया से नेता बने अतीक अहमद (Ateeq Ahmed) के संबंधों की कई कहानियां हैं
शौक-ए-इलाही उर्फ चांद बाबा: किसी के लिए अतीक अहमद का दोस्त, तो किसी के लिए उसका गुरु
ये बात जून 1988 की है, जब इलाहाबाद (Allahabad) चौक कोतवाली में नई-नई पोस्टिंग पर आए कोतवाल ने एक खूंखार गैंगस्टर को पकड़ने का फैसला किया। नए कोतवाल नवरंग सिंह ने पूरे चौक इलाके का घेराव किया, लेकिन गैंगस्टर भागने में सफल रहा। पुलिस की इस हरकत से वो गैंगस्टर इतना नाराज हुआ, कि उसने उसी रात कोतवाली पर हमला कर दिया। कोतवाली पर इस कदर बमबारी हुई कि शोर के कारण आसपास के इलाकों में लोग पूरी रात नहीं सो पाए। इतना ही नहीं जान बचाने के लिए पुलिस को कोतवाली के स्मारकीय गेट तक बंद करने पड़े।
ये गैंगस्टर कोई और नहीं बल्कि शौक-ए-इलाही (Shauk-e-Ilahi) उर्फ चांद बाबा (Chand Baba) था, जिसे 1980 के दशक में तब के इलाहाबाद, और अब के प्रयागराज के इतिहास में सबसे खूंखार गैंगस्टर और बमबाज के रूप में जाना जाता है। 'बमबाज' शब्द का इस्तेमाल अक्सर ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है, जो देसी बम बनाने का एक्सपर्ट हो।
शौक-ए-इलाही और माफिया से नेता बने अतीक अहमद (Ateeq Ahmed) के संबंधों की कई कहानियां हैं। कोई चांद बाबा को अतीक अहमद का गुरु कहता है, तो कोई उसे उसका दोस्त बताता है।
अतीक अहमद का नाम 24 फरवरी को उमेश पाल हत्याकांड (Umesh Pal Murder Case) के बाद एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। 2005 में BSP विधायक राजू पाल की बेरहमी से हत्या के मामले में उमेश पाल एक प्रमुख गवाह था।
इलाहाबाद के बोल्ड इतिहास में दर्ज चांद बाबा का नाम
इलाहाबाद छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष अभय अवस्थी ने कहा, "मुझे लगता है किसी भी सर्च इजंन पर चांद बाबा के बारे में नाम और कुछ डिटेल आपको मिल पाएंगी, लेकिन इलाहाबाद के बोल्ड इतिहास और पुलिस रिकॉर्ड में इसे अच्छी तरह से हाइलाइट किया गया है।"
अवस्थी ने कहा कि शौक-ए-इलाही उर्फ चांद बाबा का आतंक 1984 से 1989 के दौरान चरम पर था। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि चांद बाबा अहमद के गुरु थे।
उनके मुताबिक, ये सब नवंबर 1984 में शुरू हुआ, जब इलाहाबाद तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कानून और व्यवस्था की स्थिति से जूझ रहा था।
अवस्थी ने बताया, ये तब था, जब चौक इलाके में सब्जी मंडी मोहल्ला की संकरी गलियां एक नीम-हकीम या बाबा की हत्या की गवाह बनीं, जिसे चांद हद्दी नाम के एक शख्स ने कथित तौर पर अपने बड़े भाई की मौत का बदला लेने के लिए मार डाला था।"
इसके बाद चांद हद्दी को गिरफ्तार कर नैनी जेल भेज दिया गया। अवस्थी के मुताबिक, वह जमानत पर बाहर आया और चौक के ठठेरी बाजार इलाके में अपने भाई के दोस्त की हत्या कर दी और उसके ऊपर बम से हमला किया।
उसक तीसरा शिकार एक वकील था और उन्हें भी कुछ पैसों के विवाद के बाद दिनदहाड़े क्रूरता से बम से उड़ा दिया गया था। बैक टू बैक, तीन हत्याओं ने उसे प्रयागराज के गैंगस्टरों के बीच फेमस कर दिया। कुछ बहुमत को साथ उसे अपना लीडर बना लिया और जिन्होंने विरोध किया, उन्हें बम से उड़ा दिया गया या उनकी हत्या कर दी गई।
क्योंकि उसने पहली हत्या एक बाबा की की थी। इसलिए वे 'चांद बाबा' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि 1986 में जब उसके खिलाफ मुकदमों की फेहरिस्त लंबी थी, तो उसने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और नैनी जेल में बंद हो गए।
अवस्थी ने कहा, "...लेकिन इससे भी उसके आतंक में कोई कमी नहीं आई। ऐसा कहा जाता है कि जेल अधीक्षक ने एक बार चांद बाबा की एक मांग को ठुकरा दिया था, जिसने बाद में जेल से मिले कच्चे माल का इस्तेमाल करके जेल के अंदर एक बम बनाया और बाद में अधीक्षक पर हमला कर दिया, जो सौभाग्य से बच गया।"
एक स्थानीय नगरसेवक जिया उबैद खान ने कहा, "अब तक, चांद बाबा इलाहाबाद का एक बड़ा गैंगस्टर था, और बाबा ने जो बनाया, वो स्थानीय लोगों के बीच उनकी रॉबिनहुड छवि थी। जब उन्होंने रानी मंडी, चौक में पास के एक वेश्यालय को स्थानीय लोगों के अनुरोध पर खाली करवा दिया, तो उनकी छवि उनके जीवन से बड़ी हो गई।" उबैद खान सब्जी मंडी मोहल्ला में रहते हैं, ये उसी इलाके में जहां चांद बाबा रहता था।
चांद बाबा के उदार भाव का सभी ने स्वागत किया और उन्हें स्थानीय लोगों और युवाओं के बीच और ज्यादा लोकप्रिय बना दिया, जो उन्हें एक युवा आइकन के रूप में देखने लगे। खान ने कहा कि उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण चांद बाबा को राजनीतिक संरक्षण भी मिला।
1988 में, अपने राजनीतिक गॉडफादरों की सलाह पर, बाबा ने आत्मसमर्पण कर दिया और नैनी जेल चले गए, जहां से उन्होंने निगम चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया और बाद में चुनाव जीता, जिसके बाद वे जेल से बाहर आए। बाहर आने के बाद वो अतीक अहमद की खुली जिप्सी में सवार हुए और मार्च किया। जेल से अपने इलाके तक रोड शो किया।
खान ने कहा कि चांद बाबा के साथ अच्छे संबंध रखने वाले अतीक अहमद ने 1989 का विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, जिसकी तारीख की घोषणा तब नई-नई हुई थी।
"उनके अनुरोध पर, चांद बाबा ने पहले उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति दी, लेकिन उनके राजनीतिक गॉडफादरों की तरफ से उनका ब्रेनवॉश किए जाने के बाद, उन्होंने भी उसी इलाहाबाद पश्चिम सीट से पर्चा भरा, जहां से अहमद एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे।"
इसके बाद 6 नवंबर 1989 को वो दिन आया, जब रौशन बाग ढल के पास चौक इलाके में भीषण गैंगवार हुआ, जिसमें चांद बाबा मारा गया। अगले दिन, विधानसभा चुनाव का नतीजा घोषित किया गया, जिसमें अहमद लगभग 25,909 वोटों से जीता, जबकि शौक-ए-इलाही को केवल 9,221 वोट ही मिले।
इस बात को करीब 34 साल हो गए हैं, लेकिन चांद बाबा उर्फ शौक-ए-इलाही की यादें आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं।