Hindu Succession Act Row: सुप्रीम कोर्ट हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के तहत हिंदू महिलाओं को दिए गए संपत्ति अधिकारों की व्याख्याओं से संबंधित भ्रम को दूर करने के लिए तैयार है। यह निर्णय इस बात को सुलझाने का प्रयास करेगा कि क्या एक हिंदू पत्नी को अपने पति द्वारा दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार प्राप्त होता है। शीर्ष अदालत आज यानी बुधवार (11 दिसंबर) को इस मुद्दों को हल करने की कोशिश करेगा कि क्या एक हिंदू पत्नी को अपने पति द्वारा दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार प्राप्त होगा या नहीं, भले ही उस वसीयत में प्रतिबंध लगाए गए हों।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की दो जजों वाली पीठ ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक बड़ी पीठ को भेजा है, जिसके कारण पिछले छह दशकों में 20 से अधिक निर्णय हुए हैं। पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा था कि यह मुद्दा 'अत्यंत महत्वपूर्ण' है क्योंकि यह प्रत्येक हिंदू महिला और उसके बड़े परिवार के अधिकारों को प्रभावित करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "यह मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रत्येक हिंदू महिला, उसके बड़े परिवार और ऐसे दावों और आपत्तियों के अधिकारों को प्रभावित करता है जो देश भर में लगभग सभी मूल और अपीलीय न्यायालयों में विचाराधीन हो सकते हैं।"
यह निर्णय कानूनी अर्थों से परे मुद्दों को हल करेगा क्योंकि लाखों हिंदू महिलाओं के लिए धारा 14 की व्याख्या यह निर्धारित करने में सक्षम हो सकती है कि वे बिना किसी हस्तक्षेप के उन्हें दी गई संपत्ति को बेच सकती हैं, ट्रांसफर कर सकती हैं या उसका उपयोग कर सकती हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम धारा 14 की व्याख्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 (1) को भेदभावपूर्ण प्रथागत कानूनों से निपटने और यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किया गया था कि हिंदू महिलाओं को उनके द्वारा अर्जित संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व मिले।
हालांकि, धारा 14(2) के अनुसार, यह हिंदू महिलाओं द्वारा गिफ्ट, वसीयत या न्यायालय के आदेश जैसे साधनों के माध्यम से अर्जित संपत्ति पर लागू नहीं होगा, जो संपत्ति के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाते हैं। 1977 में वी तुलसाम्मा और अन्य बनाम शेषा रेड्डी द्वारा एलआरएस में शीर्ष अदालत ने धारा 14 (1) के तहत हिंदू महिलाओं के पूर्ण स्वामित्व अधिकारों को बहाल किया था।
वर्तमान मामले की जड़ करीब छह दशक पुरानी हैं, जो 1965 में कंवर भान नामक व्यक्ति द्वारा निष्पादित वसीयत से जुड़ी हैं। उसमें उसने अपनी पत्नी को उसके जीवनकाल में एक जमीन पर कब्जा करने और उसका आनंद लेने का अधिकार दिया था, लेकिन इस शर्त के साथ कि उसके निधन के बाद संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों को वापस कर दी जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, कई साल बाद पत्नी ने उस जमीन को बेच दी और खुद को इसका पूरा मालिक बताया। इसके बाद बेटे और पोते ने बिक्री को चुनौती दी और मामला अदालतों में पहुंचा। इसमें हर स्तर पर विरोधाभासी फैसले सामने आए।
कानून के मुताबिक, पति के जीवित रहते उसकी खुद से अर्जित किए गए प्रॉपर्टी पर पत्नी का कोई अधिकार नहीं होता। हालांकि, पति की मौत के बाद उसकी पत्नी का उसकी संपत्ति में हक मिलेगा। 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक, पत्नी को पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर हिस्सा मिलता है। हालांकि, यह अधिकार केवल उन प्रॉपर्टी पर लागू होता है, जो पैतृक हैं, न कि उन संपत्तियों पर जो पति द्वारा बनाई गई हो।
पति की मौत के बाद अगर एकमात्र पत्नी है और कपल की कोई संतान नहीं है, तो उसे उसकी संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा मिलेगा। अगर पति ने कोई वसीयत लिखी होगी, तो उसके आधार पर प्रॉपर्टी का अधिकार तय होगा। अगर पति अपनी वसीयतनामे में अपनी पत्नी के लिए कोई संपत्ति नहीं छोड़ता है, तो महिला को मृत पति की स्वअर्जित प्रॉपर्टी से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।