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हॉस्टल की फीस के लिए नहीं थे पैसे, खटारा साइकिल से जाते थे कॉलेज... पढ़ें- भारत को चांद पर पहुंचाने वाले ISRO चीफ की अनसुनी कहानियां

chandrayaan-3 की सफलता के बाद और 'आदित्य-L1' सौर मिशन तथा गगनयान परीक्षण वाहन के लगातार लॉन्चिंग के बीच सोमनाथ ने अपनी आत्मकथा लिखने के लिए किसी तरह समय निकाल लिया। केरल स्थित 'लिपि प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक नवंबर में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। यह किताब एक गरीब गांव के युवा की घटनापूर्ण गाथा, इसरो के माध्यम से विकास, वर्तमान प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने और चंद्रयान-3 लॉन्चिंग तक की उनकी यात्रा की कहानी है

अपडेटेड Oct 25, 2023 पर 6:51 PM
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S Somanath ने आत्मकथा में अपनी जिंदगी की तमाम बातों के अलावा छोटे-छोटे डिटेल्स शेयर किए हैं

भारत को चांद पर पहुंचाने वाले इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के अध्यक्ष एस सोमनाथ (ISRO) Chairman S Somanath) आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। भले ही उन्होंने करोड़ों रुपये की परियोजनाओं के तहत देश को चंद्रमा पर विजय प्राप्त करने में मदद की हो। वह भले ही सूर्य के लिए भी ऐसा ही प्रयास कर रहे हों और भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में व्यस्त हों... लेकिन इसरो प्रमुख सोमनाथ की विनम्र शुरुआत से एक पुरानी साइकिल और एक मामूली से घर से हुई। जिनका इस्तेमाल वह कॉलेज में रहने के दौरान परिवहन और हॉस्टल के खर्चों में कटौती के लिए करते थे।

कई अन्य बातों के अलावा इन छोटे डिटेल्स का उल्लेख उनकी मलयालम में लिखी आत्मकथा में मिलता है, जिसे वे प्रतिभाशाली लेकिन आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहे युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास कहते हैं। मलयालम में 'निलावु कुदिचा सिम्हांगल (Nilavu Kudicha Simhangal)' शीर्षक से लिखी गई आत्मकथा प्रेरणा की एक कहानी है। अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपनी जिंदगी की तमाम बातों के अलावा छोटे-छोटे डिटेल्स शेयर किए हैं।

खटारा साइकिल से जाते थे कॉलेज


ISRO चीफ ने किताब में खुलासा किया है कि वह एक खटारा साइकिल से कॉलेज जाया करते थे। उनके पास बस या दूसरी गाड़ी से जाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे। इतना ही नहीं जब हॉस्टल की फीस के लिए पैसे नहीं थे तो इसरो प्रमुख एक छोटे से लॉज रूम में रुके थे। यह कठिनाइयों का सामना करने में कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति पर केंद्रित है। सोमनाथ के नेतृत्व वाले चंद्र मिशन 'चंद्रयान-3' की सफलता से प्रेरित है, जिसने भारत को राष्ट्रों की एक विशिष्ट कैटेगरी में ला खड़ा किया।

चंद्र मिशन की सफलता के बाद और 'आदित्य-L1' सौर मिशन तथा गगनयान परीक्षण वाहन के लगातार लॉन्चिंग के बीच सोमनाथ ने अपनी आत्मकथा लिखने के लिए किसी तरह समय निकाल लिया। केरल स्थित 'लिपि प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक नवंबर में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। यह किताब एक गरीब गांव के युवा की घटनापूर्ण गाथा, इसरो के माध्यम से विकास, वर्तमान प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने और चंद्रयान-3 लॉन्चिंग तक की उनकी यात्रा की कहानी है। सोमनाथ ने कहा कि वह इसे एक प्रेरक आत्मकथा के बजाय प्रेरक कहानी कहना चाहेंगे।

साधारण ग्रामीण युवा की कहानी

इसरो प्रमुख ने पीटीआई से कहा, "यह वास्तव में एक साधारण ग्रामीण युवा की कहानी है, जो यह भी नहीं जानता था कि उसे इंजीनियरिंग में दाखिला लेना चाहिए या बीएससी में… यह उसकी दुविधाओं, जीवन में लिए गए सही फैसलों और भारत जैसे देश में उसे मिले अवसरों के बारे में है।" इसरो अध्यक्ष ने कहा, "इस पुस्तक का उद्देश्य मेरी जीवन की कहानी को पढ़ाना नहीं है। इसका एकमात्र उद्देश्य लोगों को जीवन में प्रतिकूलताओं से जूझते हुए अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना है।"

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सोमनाथ ने अपनी साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि को याद किया, लेकिन कहा कि देश ने उनके सामने अपार अवसर खोले और आत्मकथा इसे उजागर करने का एक प्रयास है। यह चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता थी जिसने उन्हें जल्द ही एक किताब लाने के लिए प्रेरित किया। सोमनाथ ने कहा कि कई युवा प्रतिभाशाली तो होते हैं, लेकिन उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। उनके अनुसार, किताब का उद्देश्य यह बताना है कि जीवन में मिलने वाले अवसरों का उपयोग करना बेहद जरूरी है, चाहे हालात कुछ भी हों।

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