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Pitru Paksha 2024: श्राद्ध पक्ष में करें यह पाठ, पितृ दोष की हो जाएगी छुट्टी, पूर्वजों का मिलेगा आशीर्वाद

Pitru Paksha 2024: अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष को पितर पक्ष के नाम से जाना जाता है। पितर पक्ष में पितरों के श्राद्ध करने का नियम है। जिन लोगों की कुण्डली में पितृदोष होता है। उन्हें पितृ पक्ष में पितृ सूक्तम का पाठ करना चाहिए। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और घर में खुशहाली आती है

अपडेटेड Sep 18, 2024 पर 11:35 AM
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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष के समय में पितरों के लिए तर्पण, दान, श्राद्ध आदि करते हैं। पितरों को खुश करने के लिए ये काम करने जरूरी माना गया है।

सनातन धर्म में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत मानी जाती है। वहीं इसका समापन आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर होता है। पितृ पक्ष की शुरुआत इस साल आज (18 सितंबर) से हो गई है। गरुड़ पुराण में पितृ पक्ष का खास महत्व बताया गया है। पितृ पक्ष हर साल करीब 15 दिन के लिए आते हैं। इन दिनों में श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। मान्यता है कि इस काल में पितर यमलोक से धरती पर अपने परिवार और संत्तति का सुख-दुख देखने आते हैं। जिन लोगों की कुण्डली में पितृदोष है। उन्हें पितृ पक्ष में पितृ सूक्तम का पाठ करना चाहिए।

पुराणों में कहा गया है कि पितृ सूक्तम का पाठ करने से पितर प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही पितृदोष से छुटकारा मिलता है। तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव का कहना है कि पितरों के देवता अर्यमा होते हैं। ऐसे में पितृ पक्ष के समय इनकी पूजा करने से वो खुश होते हैं। इससे आपको पूर्वजों का आशीर्वाद मिलेगा।

कैसे करें पितृ सूक्तम का पाठ?


पितृ पक्ष के सभी दिनों में सुबह उठकर रोजाना के काम निपटाकर स्नान करें। फिर साफ कपड़े पहनकर पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। पितरों का आह्वान करके यह तर्पण जल, काले तिल और कुशा की मदद से करना चाहिए। पितरों के निमित्त सरसों के तेल का दिया जलाना चाहिए। फिर कुश या कंबल के आसन में बैठकर पितृ सूक्तम् का पाठ करना चाहिए। यह संस्कृत में लिखा है। इसमें उच्चारण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखना होता है।

पितृ सूक्तम् का पाठ

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।

असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।

तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।

तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।

वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।

तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।

तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।

ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥

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