Sunny Deol को बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) ने एक नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया था कि करीब 56 करोड़ रुपये नहीं चुकाने पर मुंबई के जुहू का उनका बंगला नीलाम कर दिया जाएगा। बैंक ने यह नोटिस अखबरा में भी प्रकाशित कराया। बैंक ने कहा कि सनी देओल के विला की ई-नीलामी 25 सितंबर को होगी। बैंक ने यह नोटिस SARFAESI Act, 2002 के तहत जारी किया था। तकनीकी वजह बताते हुए इस नोटिस को 21 अगस्त को वापस ले लिया गया। बैंक का कहना है कि उसने 1 अगस्त को देओल की इस प्रॉपर्टी को कब्जे में लेने के लिए CJM कोर्ट में अप्लिकेशन दिया था। अभी इस पर फैसला नहीं आया है। दूसरा, देओल ने बैंक से संपर्क किया है। उन्होंने कहा है कि वह पूरा पैसा चुका देंगे।
इस मामले की इतनी चर्चा क्यों?
इस नोटिस ने खूब सुर्खियां बटोरी। पहला, देओल बॉलीवुड के बड़े अभिनेता रह चुके हैं। अभी उनकी फिल्म गदर-2 आई है, जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं। वह बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र के बेटे हैं। इसके अलावा वह पंजाब के गुरदासपुर के सांसद हैं। उन्होंने भाजपा के टिकट पर 2019 को लोकसभा चुनाव में यह सीट जीती थी। बैंक ने 21 साल पुराने SARFAESI Act का इस्तेमाल देओल की जुहू की इस प्रॉपर्टी को अपने कब्जे में लेने के लिए किया। दरअसल, देओल ने बैंक से लोन लेने के लिए इस प्रॉपर्टी की गिरवी रखी थी।
SARFAESI Act 2002 में पारित हुआ था। यह बैंकों और वित्तीय संस्थानों को उस स्थिति में लोन लेने वाली संपत्ति बेचकर अपना पैसा वसूल करने का अधिकार देता है, जब लोन लेने वाला बैंक का पैसा चुकाने में नाकाम रहता है। इसके लिए उसे कोर्ट की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती है। हालांकि, इस एक्ट में यह बताया गया है कि ऐसा करने के लिए बैंक को किस तरह की प्रक्रिया का पालन करना होगा। इस एक्ट को लेकर किसी तरह का विवाद पैदा होने पर उसकी सुनवाई डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल (DRT) में होती है। देश में 39 DRT हैं और पांच डेट रिकवरी एपेलेट ट्राइब्यूनल (DRATs) हैं।
BoB ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में अप्लिकेशन क्यों दिया?
SARFAESI Act के सेक्शन 13 के तहत जब ग्राहक लोन पर डिफॉल्ट करता है और उसके लोन अमाउंट को बैंक NPA की कैटेगरी में डाल देता है तो बैंक या वित्तीय संस्थान को उसे एक नोटिस भेजना पड़ता है। इसमें कहा जाता है कि 60 दिन के अंदर उसे बैंक का पैसा चुकाना होगा। अगर ग्राहक इसके बाद भी पैसे नहीं चुकाता है तो बैंक लोन लेने के लिए गिरवी रखी गई संपत्ति को अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू कर देता है। इसके लिए बैंक को CJM या इलाके के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) की इजाजत लेनी पड़ती है। इसके लिए बैंक सेक्शन 14 के प्रावधान का इस्तेमाल करता है। अगर ग्राहक को यह लगता है कि बैंक का प्रॉपर्टी को नीलाम करना सही नहीं है तो वह सिक्योराइटेजेशन अप्लिकेशन (SA) दाखिल कर सकता है।
मजिस्ट्रेट से इजाजत लेने के बाद बैंक प्रॉपर्टी की नीलामी के लिए बोलियां आमंत्रित करता है। इसमें यह बताया जाता है कि किस दिन बिड्स ओपन किए जाएंगे। उसके बाद प्रॉपर्टी सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले बिडर को नीलाम कर दी जाती है। अब बैंक प्रॉपर्टी की नीलामी के लिए इलेक्ट्रॉनिक ऑक्शन का इस्तेमाल करते हैं। इसमें पूरा प्रोसेस ऑनलाइन होता है, जिससे पारदर्शिता रहती है।
DRT पर सुस्त होने के इल्जाम लगते रहे हैं। हालांकि, उसके पास काफी कानूनी अधिकार हैं, लेकिन उसके आदेश को लागू करना बहुत मुश्किल रहा है। खासकर इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 के लागू होने के बाद यह दिक्कत और बढ़ी है। पिछले कुछ सालों में DRT में लंबित मामलों की संख्या काफी बढ़ी है। इसकी वजह यह है कि इसके कई पद खाली पड़े हैं। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से SARFAESI और RDDFI के मामलों की सुनवाई करने को कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के अंत और 2022 की शुरुआत में एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को DRT की स्थिति के बारे में अवगत कराने को कहा था। हालांकि, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि DRT में ज्यादातर खाली पड़े पदों पर भर्तियां हो गई हैं, लेकिन ट्राइब्यूनल में मामलों की संख्या कम नहीं हो रही है।
अब बैंक और वित्तीय संस्थान SARFAESI Act के तहत डीआरटी का रुख करने की जगह IBC के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) में जाते हैं। उदाहरण के लिए जब किंगफिशर एयरलाइंस 2012 में दिवालिया हो गई तो बैंकों ने पैसे की रिकवरी के लिए DRT और DRAT का दरवाजा खटखटाया। लेकिन 2019 में जेट एयरवेज के दिवालिया हो जाने पर बैंकों ने IBC के तहत NCLT में जाना बेहतर समझा। चूंकि IBC का इस्तेमाल सिर्फ कंपनियों से जुड़े मामलों में हो सकती है, जिससे बैंकों को अब भी रिकवरी के लिए DRT में जाना पड़ता है। चूंकि सनी देओल का मामला इंडिविजुअल का है, जिससे बैंक के नोटिस वापस नहीं लेने पर उन्हें DRT का रुख करना पड़ेगा।