भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पूर्वानुमान जारी किया है कि फरवरी में देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक रहेगा, जबकि वर्षा औसत से कम होगी। जनवरी पहले ही अत्यधिक शुष्क और गर्म रहा, जहां औसत तापमान 18.98 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो 1901 के बाद तीसरा सबसे ज्यादा था। IMD के अनुसार, फरवरी में भी यही रुझान जारी रहने की संभावना है, जिससे कृषि और जल संसाधनों पर प्रभाव पड़ सकता है। उत्तर-पश्चिम और प्रायद्वीपीय भारत को छोड़कर देश के अधिकांश हिस्सों में न्यूनतम और अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। वहीं, फरवरी में औसत वर्षा 22.7 mm होती है।
इस बार यह 81% से भी कम रहने का अनुमान है। रबी फसलों के लिए आवश्यक सर्दियों की बारिश भी कम हो सकती है, जिससे किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। बदलते मौसम के मद्देनजर सतर्कता आवश्यक है।
फरवरी में औसत से कम बारिश का अनुमान
IMD के अनुसार, फरवरी में औसत वर्षा 22.7 मिमी होती है, लेकिन इस बार यह इसके 81% से भी कम रहने की संभावना है। विशेष रूप से, पश्चिम-मध्य, प्रायद्वीपीय और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर, देश के अधिकांश भागों में वर्षा सामान्य से कम रहेगी।
तापमान रहेगा सामान्य से अधिक
IMD से मिली जानकारी के अनुसार बताया गया कि फरवरी में न्यूनतम और अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की उम्मीद है। उत्तर-पश्चिम और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में ठंड का असर कम रहेगा।
जनवरी में रिकॉर्ड स्तर पर गर्मी और सूखा
जनवरी 2024 में भारत में औसतन केवल 4.5 mm बारिश हुई, जो 1901 के बाद से चौथी सबसे कम और 2001 के बाद तीसरी सबसे कम थी।
इसी दौरान, भारत का औसत तापमान 18.98 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो 1958 और 1990 के बाद जनवरी का तीसरा सबसे अधिक तापमान था।
2024 का अक्टूबर अब तक का सबसे गर्म अक्टूबर था, जहां तापमान सामान्य से 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
नवंबर 2023 पिछले 123 वर्षों में तीसरा सबसे गर्म नवंबर रहा।
रबी फसलों के लिए कम वर्षा चिंता का कारण
IMD ने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि जनवरी से मार्च के बीच उत्तर भारत में वर्षा औसत से कम होगी। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में रबी फसलों (गेहूं, चना, जौ, मटर) की खेती के लिए सर्दियों की बारिश अत्यंत आवश्यक होती है। मुख्य रूप से पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली यह बारिश इन फसलों की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करती है, लेकिन कम बारिश से फसलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।