हम जीने के लिए खा रहे हैं या मरने के लिए.. पिछले कुछ समय से खाने-पीने की चीजों में मिलावट को देखते हुए शायद आप भी यही सोच रहे होंगे। अगर भी मिलावटी खाने से परेशान हैं तो हमें कॉमेंट करके बताइए तब तक हम आपको ये बताएंगे कि ZERODHA के बॉस नितिन कामत इस बारे में क्या सोचते हैं। आप भले ही शेयर बाजार से पैसा अच्छा बना रहे हों लेकिन अपनी सेहत के साथ लापरवाही नहीं कर सकते हैं। नितिन कामत ने जोर देकर कहा कि हमारे खाने में क्या-क्या मिलावट है, इसे लेकर सवाल पूछे जाने चाहिए। आप किसी खाने में हाई लेवल शुगर इनटेक लेते हैं, कभी मिलावटी मसाले खाते हैं तो कभी हार्मफुल केमिकल्स आपके अंदर जाता है। ऐसे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन यानि NIN के प्रस्ताव को गंभीरता से लेना चाहिए। दरअसल ये पूरी बहस तब शुरू हुई जब मिलावटी मसालों का मामला उजागर हुआ। इसके बाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन ने हेल्दी डायट पक्का करने के लिए एक प्रपोजल पेश किया है।
जीरोधा के सीईओ नितिन कामत ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि हम भारतीयों को यह सवाल करने की जरूरत है कि हम जो भी चीजें खाते हैं, उसमें क्या होता है। जितना ज्यादा हम पूछेंगे, हमारे पास उतने बेहतर विकल्प होंगे। नितिन कामत का ये भी कहना है कि खाने-पीने की ज्यादातर चीजों में चीनी की मात्रा काफी ज्यादा है। मसाला, दूध और प्रोटीन जैसी खाने पीने की चीजों में मिलावट होती रहती है। इतना ही नहीं, फलों और सब्जियों में रंग और प्रिजर्वेटिव्स में घटिया केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है। कामत ने कहा कि ये सभी चीजें धीरे-धीरे हमें मार रही हैं। यह बात पैकेज्ड फूड और रेस्टोरेंट के खाने, दोनों के लिए सही है।
अब आइए जान लेते हैं कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के प्रपोजल में क्या है? इस प्रपोजल में नया निर्देश पेश किया है, जिसका सॉफ्ट ड्रिंक्स, जूस, कुकीज, आईसक्रीम, अनाज समेत कई चीजों की ब्रांडेंड कंपनियों पर असर पड़ सकता है। इससे खाने-पीने की चीजों में शुगर कंटेंट की मात्रा को लेकर जोर दिया गया है। यह निर्देश ऐसे समय में आया है, जब बच्चों के फूड प्रोडक्ट सेरेलैक और माल्टेड ड्रिंक बोर्नविटा में अधिक चीनी के चलते सोशल मीडिया और बाकी फोरम में इसे लेकर चर्चा हो रही है।
इसके अलावा मोटापे और शुगर के मामले भी बढ़ रहे हैं। नए निर्देशों के मुताबिक शुगर की अधिकतम सीमा को एडेड शुगर से करीब 5 फीसदी के बराबर और ओवरऑल शुगर से 10 फीसदी पर रखा गया है। हालांकि पैकेज्ड फूड कंपनियों के एग्जेक्यूटिव्स का कहना है कि इन सिफारिशों को तभी लागू किया जा सकता है जब मौजूदा फॉर्मूलों में बदलाव होंगे।
खाने-पीने की कंपनियों के ऐतराज जताने के बावजूद हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि देश में मोटापे और डायबिटीज के बढ़ते मुद्दों से निपटने के लिए ये गाइडलाइंस बहुत ही जरूरी हैं। उनका कहना है कि शुगर की अधिकतम मात्रा कितनी हो, यह स्पष्ट कर दिया जाएगा तो पारदर्शिता बढ़ेगा और लोग भी यह जान सकेंगे कि वह क्या खा-पी रहे हैं। तो आप भी हेल्दी खाइए और सवाल पूछते रहिए कि आप जो खा रहे हैं उसमें क्या क्या मिला हुआ है।