मेरी मुलाकात एक स्कूल टीचर से हुई जो एक फिनटेक कंपनी के आईपीओ को लेकर काफी उत्साहित थीं। उनका फोकस कंपनी के रेवेन्यू मॉडल और कारोबार से जुड़े रिस्क पर नहीं था। वह सिर्फ इसलिए इनवेस्ट करना चाहती थी, क्योंकि उन्होंने खबरों में पढ़ा था कि वह आईपीओ 80 गुना सब्सक्राइब्ड हो चुका है। उन्होंने 2 लाख रुपये मूल्य के शेयरों की बोली लगाई। इस आईपीओ के शेयर एक हफ्ते बाद 15 फीसदी डिस्काउंट पर लिस्ट हुए। उन्होंने दोबारा किसी आईपीओ में निवेश नहीं करने की कसम खाई।
आईपीओ में बड़ी संख्या में रिटेल इनवेस्टर्स गंवा रहे पैसे
यह ऐसा अकेला मामला नहीं है। कई कंपनियों के IPO में ऐसी कहानियां सुनने को मिलती हैं। रिटेल इनवेस्टर्स आज पहले के मुकाबले काफी उत्साहित हैं। स्टॉक्स मार्केट में उनका पार्टिसिपेशन बढ़ा है। स्टॉक्स में निवेश करना बहुत आसान हो गया है। लोगों की जेब में निवेश करने के लिए पैसे हैं। वे खासकर बड़ी कंपनियों के आईपीओ को फटाफट मुनाफा बनाने के मौके के रूप में देखते हैं। उधर, संस्थागत निवेशक बड़ी कंपनी के आईपीओ में निवेश करने से पहले कंपनी की बैलेंसशीट, बिजनेस से जुड़े रिस्क और ग्रोथ की संभावनाओं को समझने में कई महीने लगाते हैं।
रिटेल इनवेस्टर्स यूट्यूब पर फिनफ्लूएंसर्स की बातों पर भरोसा करते हैं
संस्थागत निवेशकों के मन में किसी आईपीओ में निवेश करने से पहले कुछ बड़े सवाल होते हैं। जैसे-क्या कंपनी मंदी की स्थिति का सामना कर सकती है? क्या यह मार्केट में पहले से मौजूद कंपनियों को कड़ी टक्कर दे सकती है? इधर, रिटेल इनवेस्टर्स यूट्यूब इंफ्ल्यूएंसर्स, व्हाट्सएप मैसेजेज और सब्सक्रिप्शन के डेटा से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
कर्ज लेकर आईपीओ में निवेश करने वाले इनवेस्टर्स को होती है ज्यादा मुश्किल
2021 में आए फूड डिलीवरी कंपनी के आईपीओ में रिटेल इनवेस्टर्स ने 1.5 लाख करोड़ रुपये निवेश किए थे। रिटेल इनवेस्टर्स का कोटा 13 गुना सब्सक्राइब हुआ था। जब यह स्टॉक ग्रे मार्केट में चल रहे प्रीमियम से 40 फीसदी डिस्काउंट पर लिस्ट हुआ तो रिटेल इनवेस्टर्स घबराहट में शेयर बेचने लगे। इनमें कई ऐसे इनवेस्टर्स थे, जिन्होंने कर्ज लेकर आईपीओ में निवेश किया था। उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा।
आईपीओ में निवेश करने के लिए आसानी से मिलता है कर्ज
रिटेल इनवेस्टर्स के बड़े आईपीओ में ज्यादा दिलचस्पी दिखाने की वजह यह है कि अब आसानी से आईपीओ में बोली लगाने के लिए कर्ज मिल जाता है। फिनटेक एप्स 'आईपीओ फाइनेंसिंग' यानी आईपीओ में इनवेस्ट करने के लिए कर्ज दे रही हैं। कुछ रिटेल इनवेस्टर्स तो इतने उत्साहित होते हैं कि वह परिवार के अलग-अलग सदस्यों के नाम से आईपीओ में बोली लगाते हैं। इससे सब्सक्रिप्शन का डेटा काफी ज्यादा बढ़ जाात है।
LIC का शेयर लिस्टिंग के बाद कुछ महीनों में 35% क्रैश कर गया था
सवाल है कि क्या संस्थागत निवेशक IPO में निवेश करने में रिटेल इनवेस्टर्स जैसी जल्दबाजी दिखाते हैं? इसे समझने के लिए LIC के आईपीओ का उदाहरण लिया जा सकता है। एलआईसी का आईपीओ कई गुना सब्सक्राइब हुआ था। लेकिन, संस्थागत निवेशकों ने इस इश्यू में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। कुछ ही महीनों में यह शेयर 35 फीसदी तक क्रैश कर गया था।
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रिटेल इनवेस्टर्स आईपीओ पेश करने के पीछ के असल मकसद को नहीं समझते
ज्यादातर लोग किसी कंपनी के आईपीओ पेश करने के मकसद को नहीं समझते। उनकी नजरें सिर्फ सब्सिक्रिप्शन के डेटा और लिस्टिंग गेंस पर होती हैं। दरअसल, जब कोई कंपनी आईपीओ पेश करती है तो वह बताना चाहती है कि 'अब हम आम लोगों के भरोसे के साथ बिजनेस को बढ़ाने जा रहे हैं।' आईपीओ के प्रोसेस में सब्सक्रिप्शन, ओवरसब्सक्रिप्शन और लिस्टिंग गेंस जैसी चीजें होती हैं। लेकिन, कंपनी का फोकस तो मीडियम टर्म और लॉन्ग टर्म में ग्रोथ के अपने प्लान पर होता है।