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Tata Sons IPO: लोकसभा सांसद ने आईपीओ में जानबूझकर देरी का लगाया आरोप, सरकार से हस्तक्षेप की मांग की

Tata Sons IPO: लोकसभा सांसद ने सुझाव दिया कि वेनु श्रीनिवासन की भूमिकाओं और उनके टाटा संस और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा की जाए। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि इन संस्थानों में जनता का भरोसा कमजोर न हो और उनकी साख बनी रहे

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 30, 2024 पर 7:33 PM
Tata Sons IPO: लोकसभा सांसद ने आईपीओ में जानबूझकर देरी का लगाया आरोप, सरकार से हस्तक्षेप की मांग की
Tata Sons IPO: नालंदा से लोकसभा सांसद कौशलेंद्र कुमार ने आरोप लगाया है कि टाटा संस के आईपीओ को जानबूझकर टाला जा रहा है

Tata Sons IPO: नालंदा से लोकसभा सांसद कौशलेंद्र कुमार ने आरोप लगाया है कि टाटा संस के आईपीओ को जानबूझकर टाला जा रहा है। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। बता दें कि टाटा संस भारत के सबसे बड़े ग्रुप में से एक टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है। चार बार लोकसभा सांसद रह चुके कुमार ने कहा कि टाटा संस के पब्लिक ऑफरिंग से बहुत अधिक निवेश आ सकता है और इससे डोमेस्टिक स्टॉक मार्केट को बढ़ावा मिल सकता है।

ये आरोप ऐसे समय में सामने आए हैं जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) टाटा संस की ओर से आईपीओ से छूट के लिए किए गए आवेदन की जांच कर रहा है। RBI के नियमों के अनुसार किसी अपर-लेयर नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (NBFC) को आईपीओ घोषित किए जाने के तीन साल के भीतर शेयर बाजारों में लिस्ट होना होता है। टाटा संस की बात करें तो इसे पहली बार सितंबर 2022 में NBFC-अपर-लेयर एंटिटी के रूप में क्लासिफाइड किया गया था, जिसका मतलब है कि इसे पब्लिक होने के लिए सितंबर 2025 तक का समय है।

लोकसभा सांसद ने लगाए ये आरोप

कुमार ने टाटा संस की बोर्ड मेंबरशिप में संभावित हितों के टकराव का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा, "मैं आपका ध्यान एक अहम चिंता के विषय की ओर आकर्षित करने के लिए लिख रहा हूं, जिसे हाल ही में न्यूज रिपोर्ट्स में बार-बार उठाया गया है और जो प्रमुख संस्थानों के बारे में पब्लिक परसेप्शन को प्रभावित करने लगा है। टीवीएस मोटर कंपनी के मानद चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन वर्तमान में टाटा संस और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) दोनों के बोर्ड में कार्यरत हैं। इस दोहरी भूमिका ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिससे हितों का टकराव हो सकता है और इन संस्थानों की विश्वसनीयता पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं।"

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