Uttar Pradesh Lok Sabha polls: 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के साथ उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गलियारे में हलचल है। हालांकि चुनाव मैदान से बसपा प्रमुख मायावती (BSP chief Mayawati) की अनुपस्थिति सवाल उठाती है। इसकी वजह ये है कि वह लगभग 11 दिन पहले चुनाव की घोषणा के बावजूद रैलियां करने से परहेज कर रही हैं। इसके विपरीत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) पहले ही यूपी में चार चुनावी सभाओं को संबोधित कर चुके हैं। जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का व्यस्त कार्यक्रम है। वे रोजाना लगभग तीन जिलों में रैलियां कर रहे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव (SP chief Akhilesh Yadav) भी विभिन्न जिलों में मतदाताओं से सक्रिय रूप से जुड़ रहे हैं। लेकिन चुनावी मैदान में मायावती की चुप्पी रहस्यमय है।
यह उनकी कोई नई प्रवृत्ति नहीं है। 2022 के चुनावों के दौरान भी मायावती ने मतदान शुरू होने से महज आठ दिन पहले अपनी रैलियां शुरू कीं। चुनावों में सक्रिय भागीदारी की यह कमी चुनाव परिणामों में दिखाई दी। जहां बसपा को केवल एक सीट हासिल हुई। उस समय चुनाव में, 10 अप्रैल को मतदान शुरू होने के बावजूद, मायावती की पहली रैली 2 फरवरी को आगरा में हुई। इससे उनके चुनाव अभियान की देरी का पता चलता है।
बसपा के कार्यक्रम के अनुसार, मायावती 11 अप्रैल को नागपुर में अपनी पहली रैली को संबोधित करेंगी। उसके बाद 14 अप्रैल को यूपी में अपनी उद्घाटन रैली करेंगी। जिसमें उन क्षेत्रों पर फोकस किया जाएगा जहां बसपा का काफी प्रभाव है।
बसपा नेताओं ने उनके चुनावी लेटलतीफी का बचाव करते हुए कहा कि वह एक मजबूत अभियान चलाने की योजना बना रही हैं। जिसमें पूरे चुनाव के दौरान लगभग 40 रैलियां शामिल होंगी। इसके अलावा, मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक की जिम्मेदारी सौंपी है। हालांकि उनकी प्रचार गतिविधियां हाल ही में शुरू हुई हैं।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पार्टी में फूट है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली बार जीते 10 सांसदों में से सिर्फ एक सांसद गिरीश चंद्र को दोबारा उम्मीदवार बनाया गया है। हालांकि, गिरीश चंद्र की सीट नगीना से बदलकर बुलंदशहर कर दी गई है।
पार्टी के घटते जनाधार के बारे में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (Centre for the Study of Developing Societies (CSDS) ने उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि बीएसपी की चुनावी संभावनाएं कम हो रही हैं। पिछले 15 वर्षों में मूल जाटव मतदाता आधार 35% कम हो गया है। जिससे पार्टी के कुल वोट शेयर में 30% से 12% तक गिरावट आई है।
बसपा इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पिछले 4 विधानसभा और 3 लोकसभा चुनावों में पार्टी के वोट प्रतिशत में गिरावट जारी रही। 2007 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सबसे ज्यादा 30.43% वोट मिले थे।
206 विधायकों के साथ मायावती सीएम बनी थीं। 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 25.91% वोट, 2017 में 22.23% वोट और 2022 के चुनाव में केवल 12.88% वोट मिले थे।