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Lok Sabha Elections 2024: क्या इस बार चुनावी हवा का रुख अपने पक्ष में कर पाएंगे अखिलेश यादव, आखिर क्यों बेचैन और बेकरार है समाजवादी पार्टी?

Lok Sabha Elections 2024: विडंबना ही है की हर चुनाव में उनके मुद्दे अलग-अलग रहे। मुद्दों को पकड़ना और छोड़ना उनके स्वभाव में है। इस बार उन्होंने PDA को अपना ब्रह्मास्त्र बताया है। पीडीए यानी पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक। इसी मतदाता को एकजुट कर वह चुनावी वैतरणी पार कर लेना चाहते हैं, लेकिन जमीनी हालात ऐसे नहीं हैं कि यह तीनों एकजुट होकर उनके साथ आ सकें

Brijesh Shuklaअपडेटेड Feb 09, 2024 पर 6:20 AM
Lok Sabha Elections 2024: क्या इस बार चुनावी हवा का रुख अपने पक्ष में कर पाएंगे अखिलेश यादव, आखिर क्यों बेचैन और बेकरार है समाजवादी पार्टी?
Lok Sabha Elections 2024: क्या 2024 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव को कोई शुभ सूचना देगा

Lok Sabha Elections 2024: समाजवादी पार्टी (SP) बेचैन भी है, बेकरार भी और अकुलाहट भी। बेचैनी इस लिए क्योंकि चुनावी सफलता के नजरिए से पिछले 10 साल से सूखा पड़ा है और जीत कैसे हाथ लगे, इसे लेकर बेचैनी भी है और उससे किसी भी तरह निकलने की अकुलाहट भी। लेकिन 2014 से अब तक समाजवादी पार्टी का हर दांव उल्टा पड़ता रहा है। क्या 2024 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को कोई शुभ सूचना देगा। सपा के नेता दावा करते हैं कि इस बार सपा की जय जयकार हो जाएगी। सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह किसी तरह हार के सिलसिला को तोड़े, जो 2014 से उसे अनवरत मिल रही है।

यही नहीं अखिलेश यादव को साबित करना होगा कि वह विपरीत परिस्थितियों में भी न सिर्फ लड़ सकते हैं बल्कि विजय पताका भी फहरा सकते हैं। लेकिन यह डगर आसान नहीं है। यह भी विडंबना ही है की अखिलेश यादव को अब तक, जो साथी मिले वे या तो उनके प्रति वफादार नहीं रहे या अखिलेश यादव ही उनके प्रति वफादारी साबित नहीं कर सके।

आने वाले खतरे को समझ रहे हैं अखिलेश यादव

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वह अपने सहयोगियों के प्रति काफी उदार रहे हैं और चुनाव में उनको पर्याप्त संख्या में सीट भी देते हैं, लेकिन तीर निशाने में लगता ही नहीं है। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई अखिलेश के लिए काफी महत्वपूर्ण है। अगर वह यह लड़ाई जीतते हैं, तो देश की राजनीति में उनकी हैसियत बढ़ेगी और अगर हारते हैं, तो दूसरे विपक्षी दलों को यह मौका मिल जाएगा की वह सपा की जगह अपने को बीजेपी का विकल्प बताएं। अखिलेश यादव इस खतरे को समझ रहे हैं और इसीलिए वह कांग्रेस को भी अपने साथ रखना चाहते हैं और वह भी उन परिस्थितियों में जब कांग्रेस और उनके बीच की खाई बहुत बड़ी है।

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