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भारत के गरीबों का भला Revolution से होगा या Development से?

पिछले 10 साल में आखिर OBC और SC-ST के मोर्चे पर हुआ क्या है? देश ने कितनी छलांग लगाई। ये कुछ आंकड़ें जो कि डेटा क्रंचिंग में डॉक्टर साहब को महारत हासिल है जो आपके सामने रखे तो इसलिए जब वोट करिए सोच समझकर कीजिए। तथ्यों को ध्यान में रखिए सिर्फ हल्ले-गुल्ले को नहीं।

अपडेटेड May 07, 2024 पर 7:52 PM
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OBC और SC-ST की बढ़ती भागदारी क्यों नहीं देख पा रहे हैं राहुल गांधी

राहुल गांधी के एक बयान के बाद OBC और SC-ST के वेलफेयर को लेकर बहस शुरू हो गई है। कांग्रेस की सरकार करीब 5 दशक तक रही है और सवाल भी राहुल गांधी ही कर रहे हैं। राहुल गांधी जिस क्रांति की बात कर रहे हैं वो देश के लिए कितनी भारी पड़ेगी ये समझा रहे हैं मनीकंट्रोल के मैनेजिंग एडिटर नलिन मेहता और नेटवर्क18 के ग्रुप एडिटर- कन्वर्जेंस ब्रजेश कुमार सिंह। पेश है उनकी बातचीत के अहम अंश।

ब्रजेश कुमार सिंह: 2024 के लोकसभा चुनाव में एक अहम मुद्दा खड़ा हो गया है। इसको लेकर काफी विवाद भी हो रहा है कि OBC का भला कैसे हो सकता है। राहुल गांधी आजकल बार-बार कह रहे हैं कि अगर OBC और SC-ST को न्याय देना है तो क्रांति करनी होगी। और क्रांति का ये जो कॉन्सेप्ट है, काफी खतरनाक है। क्योंकि एक तरह से कई बार यह वर्ग संघर्ष की स्थिति तक पहुंच जाता है। यहां तक का कह दिया गया कि चूंकि सवर्णों के हाथ में पूरा मेरिट का सिस्टम है, इवैल्यूएशन का सिस्टम है इसलिए OBC को जस्टिस नहीं मिल पाता है।

दूसरी तरफ बीजेपी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो OBC बैकग्राउंड से आते हैं और पिछले दस साल से देश के प्रधानमंत्री हैं। अगर आप देखें तो देश में जो सर्वोच्च संवैधानिक पद है उस पर एक आदिवासी वर्ग की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं और पीएम नरेंद्र मोदी हैं।


ऐसे में ये पूरा जो नैरेटिव है कि कौन भला कर रहा है OBC का? कौन है आखिर खैरख्वाह? रिकॉर्ड क्या कहता है? यह बताने के लिए हमारे साथ हमारे सहयोगी नलिन मेहता हैं जो मनीकंट्रोल के मैनेजिंग एडिटर हैं। इसके साथ ही इनकी जो किताब है The New BJP वो काफी जबरदस्त रिसर्च वर्क है कि आखिरी मोदी की अगुवाई में पिछले 10 साल में BJP का विस्तार कैसे हुआ।

मैं आप से समझना चाहता हूं कि जिस तरीके से..जिस आक्रामक अंदाज़ में, एक तरह से कह सकते हैं कि राहुल गांधी SC-ST के इश्यू को उसका रहे हैं। लेकिन अगर हम कांग्रेस का रिकॉर्ड देखें, जिसने 1947 के बाद लगातार 5 दशकों तक राज किया। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी हैं जो 2014 में देश के प्रधानमंत्री बनें। आखिर OBC और SC-ST के वेलफेयर का तरीका क्या हो सकता है? उन्हें आगे बढ़ाने का क्या तरीका है। वो रास्ता जो राहुल गांधी बता रहे हैं या फिर वो रास्ता जिस पर पीएम मोदी चल रहे हैं या अपलिफमेंट कर रहे हैं।

नलिन मेहता: ब्रजेश जी, तीन, चार मुद्दे हैं। एक होती कथनी और एक होती है करनी। जो राहुल गांधी कह रहे हैं और जो मोदी जी कर रहे हैं, आप उनमें अंतर देखिए। पहली बात जो आपने कहा, मोदी जी देश के दूसरे OBC पीएम हैं। नरेंद्र मोदी एक ऐसे OBC प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपना पूरा कार्यकाल खत्म किया और दो टर्म पूरे किए हैं। और तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव हो रहा है।

लेकिन आप देखिए कांग्रेस ने कभी OBC प्रधानमंत्री नहीं बनाया। दूसरी चीज ये है कि जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जिस नई बीजेपी का विस्तार हुआ है उसमें OBC की अहम भागीदारी है।

अगर आप नंबर्स के हिसाब से देखें तो आज की तारीख में, इस चुनाव में OBC कैंडिडेट देखें कि कांग्रेस ने कितने उम्मीदवार उतारे हैं और भाजपा ने कितने उतारे हैं। तो भाजपा के OBC कैंडिडेट्स पर्सेंटेज के हिसाब से कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा हैं।

अगर आप भाजपा के MP देखें तो 29% OBC से हैं। देश में भाजपा के 1358 विधायक हैं जिनमें से 27% OBC से हैं। भाजपा ने सोसायटी के हर लेवल पर भागीदारी बढ़ाई है। 2019 में भाजपा के SC और OBC कैंडिडेट्स मिलाकर 57 फीसदी थे। जबकि विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के OBC कैंडिडेट्स 50 फीसदी से ज्यादा थे।

अगर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंत्रिमंडल देखें तो OBC की भागीदारी सबसे ज्यादा है। ये जो बदलाव आए हैं भाजपा में पहले ऐसा नहीं था। भाजपा पहले सवर्णों की पार्टी मानी जाती थी। लेकिन अब OBC और SC-ST भी बीजेपी से जुड़ रहे हैं।

ब्रजेश कुमार सिंह: आज राहुल गांधी जोर-शोर से चिल्ला रहे हैं कि SC-ST और OBC पीछे रहे गए। उनके लिए कुछ नहीं हुआ। उनके लिए क्रांति की जरूरत है। वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन जैसे डेंजरस कॉन्सेप्ट की बात हो रही है। आप मेरिट को ऐसे मैनिप्यूलेट कर रहे हैं जैसे लग रहा है कि देश में मेरिट को कभी कोई वैरीयता दी ही नहीं गई। चूंकि राहुल गांधी का मानना है कि पूरा एजुकेशन सिस्टम सवर्णों के हाथ में रहा है इसलिए जो पिछड़ी जातियां हैं उनके साथ कभी न्याय नहीं हो पाया। जबकि उसी सिस्टम के तहत देश के सभी वर्ग का रीप्रेजेंटेशन तमाम सर्विसेज में रहा है। राहुल गांधी के इंटरप्रिटेशन का जो तरीका है यह कितना खतरनाक है? क्या वो समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं?

नलिन मेहता: सामाजिक न्याय हर एक आदमी चाहता है लेकिन जो वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन की जो बात है, ये कई देशों में पहले ट्राई किया जा चुका है। आप उदाहरण के तौर पर वेनेजुएला को देखिए, चीन का एग्जांपल लीजिए। जब ऐसा किया जाता है तो समाज में उथलपुथल होता है। क्रांति एक ऐसा शब्द है जिसके नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों मतलब निकलते हैं। लेकिन क्रांति बिना समझे तरीके से करेंगे तो इसका उलटा असर ही होगा।

आप अपने आसपास देख लीजिए। पाकिस्तान को देख लीजिए, बांग्लादेश को देखिए, श्रीलंका को देख लीजिए...ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद जितने भी देश हैं कहीं भी इस तरह का डिस्ट्रीब्यूशन नहीं हुआ है फिर चाहे वो कास्ट हो या क्लास हो। इससे ज्यादा आप कुछ भी करेंगे तो वो बेमतलब बात होगी।

ब्रजेश कुमार सिंह: एक बड़ी चीज जो आपकी लेटेस्ट बुक India's Techade में भी आई थी। जिस तरह 2014 में नरेंद्र मोदी देश के पीएम बने और उसके बाद टेक्नोलॉजी को यूज किया। सरकार ने बेसिक सिस्टम में रिफॉर्म किए। राहुल गांधी के पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने एक भाषण में कहा था कि एक रुपया भेजते हैं तो 15 पैसे मिलते हैं। आज नरेंद्र मोदी ने JAM Yojana को जितने प्रभावी ढंग से लागू किया है उसका फायदा शत-प्रतिशत मिल रहा है। अगर आज 100 रुपए भेजे जा रहे हैं तो गरीब को 100 रुपए मिल भी रहे हैं। पिछले 10 साल में यह जो कारगर हुआ है उसके सामने राहुल गांधी के बयान को कैसे देखते हैं? इसके साथ ही क्या कांग्रेस इस Moral High Ground ले सकती है? देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू रहे। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी रहे। अगर कांग्रेस की नजर में OBC और SC-ST पिछड़ रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या कांग्रेस को अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत नहीं है?

नलिन मेहता: तथ्य तो ये है कि पिछले दस सालों में वेलफेयर पर काफी काम हुआ है। सब सरकारें गरीबों पर पैसा खर्च करती है लेकिन बात ये है कि वो पैसा गरीब तक पहुंचता है या नहीं। जैसा कि राजीव गांधी ने भी कहा था कि सरकार के भेजे गए हर 1 रुपए में से सिर्फ 15 पैसे ही गरीबों के पास पहुंच रहे हैं। JAM trinity की वजह डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर भारत की अनूठी चीज बन गई है। JAM trinity यूनीक आईडी, सस्ते मोबाइल डेटा औ जनधन अकाउंट का एक कॉम्बिनेशन है। इस देश में फाइनेंशियल इनक्लूजन सिर्फ 20 फीसदी थी और आज यह बढ़कर 80% तक पहुंच गया है।

2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से जो भाषण दिया था उसमें जनधन और स्वच्छ भारत का ऐलान किया था। बहुत लोगों ने इसकी हंसी उड़ाई थी। अगस्त 2014 के अंत में जन धन खाते खोलने की शुरुआत होती है और एक गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बन जाता है। लोगों ने बोला ये तो हो ही नहीं सकता। लेकिन सिर्फ 4-5 साल में फाइनेंशियल इनक्लूजन बढ़कर 80 फीसदी तक पहुंच गया। इस देश में गरीबों के लिए 50 करोड़ जनधन खाते खुले हैं। जो दुनिया में कहीं नहीं हुआ है।

पहले लोग कहते थे कि ये फर्जी अकाउंट है। लेकिन हमने सर्वे किया तो पता चला कि हर अकाउंट में औसत 2500 रुपए हैं। 50 करोड़ जनधन खाते में से 47 करोड़ खाते एक्टिव हैं। एक्टिव का मतलब कि महीने में कम से कम दो ट्रांजैक्शन होती है। उससे फायदा ये हुआ कि सरकार हमेशा पैसे खर्च करती थी लेकिन अब सीधे गरीबों के खातों मे पैसा जाता है।

आधार और DBT मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में आया था। जनवरी 2023 में देशभर के 56 जिलों में DBT (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) का ट्रायल किया गया। लेकिन वो नाकाम रहा। जब तक उसकी गड़बड़ियां दूर की गईं तब तक मोदी जी पावर में आ गए। पीएम मोदी ने जनधन आधार और आधार पर अपना पूरा जोर लगाया। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2013-14 में सिर्फ 7500 करोड़ रुपए का डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर हुआ। जबकि आज की तारीख में वो 2.5 लाख करोड़ है। तब DBT स्कीम में 10-12 स्कीम थी जबकि आज के डेट में इसमें 300-350 स्कीम्स हैं।

आज देश के करीब 80 करोड़ लोगों को सरकार के किसी ना किसी स्कीम का फायदा मिला है। ये स्कीमें राज्य सरकारों की भी हो सकती हैं और केंद्र सरकार की भी। ये जो सिस्टम बनाया गया है. वर्ल्ड बैंक को देख लीजिए, IMF को देख लीजिए। सबने जनधन खातों के बारे में बात की है। यह एक तरह का बदलाव है और इसीलिए भाजपा चुनाव जीत रही है। 2014 के बाद आपने देखा होगा कि भाजपा ने ज्यादा चुनाव जीते हैं। और जो हारी भी है तो वहां उसका परफॉर्मेंस पहले के चुनावों के मुकाबले बेहतर रहा है।

ब्रजेश कुमार सिंह: जैसे कि विधानसभा चुनाव, जहां भाजपा सत्ता में नहीं आ पाई वहां पर भी पर्सेंटेज और नंबर पहले से बेहतर रहा है।

नलिन मेहता: लोग कहते हैं कि ये सिर्फ हिंदू-मुसलमान करते हैं। बात ये है कि लोग सिर्फ इसलिए वोट नहीं करते हैं। भाजपा जो पहले गरीबों की पार्टी नहीं थी लेकिन बीजेपी New BJP इसलिए बनी क्योंकि यह गांवों और गरीबों की पहली पार्टी बन गई है। और इन सब में बड़ा हाथ डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर्स का है।

ब्रजेश कुमार सिंह: ये वो सारे तथ्य हैं जो कि डॉक्टर साहब रख रहे थे और उससे ये पता चलता है कि जिस तरह की बातें उछाली जाती हैं, जिस तरह के आरोप लगाए जाते हैं। सिर्फ वोट पाने के लिए आप किसी भी किस्म की नेगेटिविटी तक जा सकते हैं। उसके बीच देश किस तरीके से आगे बढ़ा है। और खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फोकस में हैं। तीसरे टर्म के लिए वो लगातार चुनाव प्रचार कर रहे है। वोट मांग रहे हैं। और तमाम प्रीडिक्शन भी कहते हैं कि वो बहुत आराम से सत्ता में आ रहे हैं।

तो पिछले 10 साल में आखिर OBC और SC-ST के मोर्चे पर हुआ क्या है। देश ने कितनी छलांग लगाई। ये कुछ आंकड़ें जो कि डेटा क्रंचिंग में डॉक्टर साहब को महारत हासिल है जो आपके सामने रखे तो इसलिए जब वोट करिए सोच समझकर कीजिए। तथ्यों को ध्यान में रखिए सिर्फ हल्ले-गुल्ले को नहीं।

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