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Pilibhit Loksabha: पीलीभीत में गूंज रही है वरुण गांधी की चुप्पी, BJP ने सीट बचाने के लिए लगाया पूरा जोर

Pilibhit Loksabha: पीलीभीत की चुनावी लड़ाई में इस बार वरुण गांधी (Varun Gandhi) मौजूद नहीं है, लेकिन इससे इलाके में उनका असर कम नहीं हुआ है। पक्ष और विपक्ष दोनों के चुनाव प्रचार में उनकी छाप साफ देखी जा सकती है। बीजेपी उम्मीदवार जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) सीधे तौर पर वरुण का नाम लेने से बच रहे हैं। वहीं विपक्षी उम्मीदवारों का जोर देकर कहना है कि जनता के मुद्दे उठाने के चलते BJP ने उनका टिकट काटा है

अपडेटेड Apr 13, 2024 पर 9:19 PM
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Pilibhit Loksabha: पीलीभीत में मुस्लिम, लोधी, कुर्मी, सिख, दलित और अपर कास्ट समुदाय के वोटर काफी संख्या में है

Pilibhit Loksabha: पीलीभीत की चुनावी लड़ाई में इस बार वरुण गांधी (Varun Gandhi) मौजूद नहीं है, लेकिन इससे इलाके में उनका असर कम नहीं हुआ है। पक्ष और विपक्ष दोनों के चुनाव प्रचार में उनकी छाप साफ देखी जा सकती है। बीजेपी उम्मीदवार जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) सीधे तौर पर वरुण का नाम लेने से बच रहे हैं। वहीं विपक्षी उम्मीदवारों का जोर देकर कहना है कि जनता के मुद्दों को जोरशोर से उठाने के चलते बीजेपी (BJP) ने उनका टिकट काटा है। स्थानीय किसान मनिंदर सिंह का कहना है, "आप वरुण को चुनाव में नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वह और उनकी माता मेनका गांधी यहां से 6 बार सांसद रहे हैं। इसलिए इलाके में उनका बड़ा प्रभाव है। वरुण की छवि एक ईमानदार नेता की है, जो जरूरत पड़ने पर लोगों के साथ खड़ रहते हैं।"

भंगा मोहम्मदी गांव के निवासी देवेंद्र भी गांधी परिवार के असर को याद करते हैं और कहते हैं कि उनके कारण ही इस इलाके में बीजेपी का लंबे समय कमल खिला हुआ है। हालांकि, वरुण की जगह पीडब्लूडी मंत्री जितिन प्रसाद को उतारने के बाद BJP की रणनीति में अब बदलाव आया है। वरुण ने पिछला चुनाव 2 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीता था। अब जितिन प्रसाद के सामने यह चुनौती है कि वह वरुण गांधी को सफलता को दोहरा सकें।

प्रसाद को भी इलाके में वरुण गांधी के असर की जानकारी है और इसलिए वे खुद को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जोड़ रहे हैं और चुनाव अभियान के दौरान खुद को प्रधान मंत्री के दूत के रूप में पेश करते हैं। मोहम्मदी गांव में एक रैली के दौरान उन्होंने कहा, ''आपका मेरे लिए दिया गया वोट, मोदी के लिए दिया गया वोट है।''


प्रसाद कहते हैं कि उनका मिशन पीलीभीत का विकास करना है और इसके लिए उन्हें मोदी से आदेश मिला हुआ है। प्रसाद साथ में यह भी कहते हैं विकास के लिए यह जरूरी है जनता बीजेपी को वोद देकर उसे जिताए। उन्होंने मतदाताओं से अपील किया, "पिछले एक दशक में मोदी सरकार ने कई क्रांतिकारी काम किए हैं। अब एक बार फिर मोदी पर अपना विश्वास सौंपने का समय आ गया है।"

वरुण की गैरमौजूदगी को बहुत अधिक महत्व नहीं देते हुए, प्रसाद पार्टी की एकजुटता पर जोर देते हैं और 2014 के बाद बीजेपी के किए गए कामों को गिनाते हैं। उन्होंने कहा, "मुझे चुनावी मैदान में उतारने के फैसले ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जीत के लिए एकजुट कर दिया है।"

वहीं दूसरी इंडिया गठबंधन से सपा के उम्मीदवार भगवत शरण गंगवार, वरुण की गैरमौजूदगी का इस्तेमाल लोगों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट करने और अपने पक्ष में माहौल बनाने में कर रहे हैं। गंगवार ने सरकार से असंतुष्ट लोगों को लामबंद करने के इरादे से कहा, "किसानों और बेरोजगार युवाओं की वकालत करने वाले नेता का बीजेपी ने टिकट काट दिया है, जो बताता है कि बीजेपी का जनता के वास्तविक मुद्दों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं है।"

वरुण और मेनका की गैरमौजूदगी को विपक्षी उम्मीदवार एक मौके के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि लंबे समय बाद बीजेपी के इस गढ़ में उन्हें सेंध लगाने का मौका दिख रहा है। एक स्थानीय शिक्षक, श्रीपाल शर्मा कहते हैं, "मेनका और वरुण ने पीलीभीत को बीजेपी का गढ़ बनाया था। उनकी गैरमौजूदगी में विपक्ष को यह सीट जीतने का मौका दिख रहा है।"

इस बीच, बसपा उम्मीदवार अनीस अहमद खान (जिन्हें फूल बाबू के नाम से जाना जाता है) "स्थानीय बनाम बाहरी" के मुद्दे को भुनाने में लगे हैं। अनीस का कहना है कि बीजेपी और सपा दोनों के उम्मीदवार बाहरी हैं, जो चुनाव के बाद इस इलाके को छोड़ देंगे। अनीस कहते हैं वह पीलीभीत के स्थानीय निवासी हैं और "यहीं लोगों के बीच में रहेंगे।"

पीलीभीत में मुस्लिम, लोधी, कुर्मी, सिख, दलित और अपर कास्ट समुदाय के वोटर काफी संख्या में है। फिलहाल पीलीभीत में बीजेपी, सपा और बसपा के बीच त्रिकोणीय लड़ाई दिख रहा है। हालांकि चुनाव की सरगर्मियां बढ़ने के साथ इलाके में वरुण गांधी की चुप्पी भी साफ महसूस की जा रही है।

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