Loksabha Electtion Result: राम मंदिर पर फोकस के बावजूद अयोध्या में बीजेपी की हार के क्या हैं मायने
उत्तर प्रदेश की फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर बीजेपी की हार से बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह समेत कई लोग अचंभे में हैं। सिंह को इस सीट पर 4,99,722 वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद को 5,54,289 मत हासिल हुए। जीत का अंतर 54,567 सीटों का था। सिंह का कहना है कि वह इस बात को लेकर आत्म-निरीक्षण करेंगे कि मोदी-योगी के नेतृत्व के बावजूद कैसे चुनाव हार गए
Ram Navami 2024: रामनवमी के अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु राम मंदिर पहुंच रहे हैं
उत्तर प्रदेश की फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर बीजेपी की हार से बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह समेत कई लोग अचंभे में हैं। सिंह को इस सीट पर 4,99,722 वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद को 5,54,289 मत हासिल हुए। जीत का अंतर 54,567 सीटों का था। सिंह ने एक अखबार से बातचीत में कहा, ' हम सम्मान नहीं बचा पाए।' उनका कहना था, 'मुझमें कुछ कमी हो सकती है। हमने काफी मेहनत की और पार्टी को लेकर पूरा समर्पण दिखाया। विपक्षी नेता और कार्यकर्ता हम पर टिप्पणियां कर सकते हैं, लेकिन हमें सहनशीलता दिखाते हुए कई चीजों को नजरअंदाज करना होगा। आप मैदान में कई बार हारते हैं, कई बार जीतते हैं।'
सिंह का कहना था कि वह इस बात को लेकर आत्म-निरीक्षण करेंगे कि मोदी-योगी के नेतृत्व के बावजूद कैसे चुनाव हार गए। सिंह इससे पहले 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं, जबक यूपी में बीजेपी को 71 और 62 सीटें मिली थीं। इस सीट पर बीजेपी के काउंटिंग एजेंट लक्ष्मीकांत तिवारी ने बताया, 'हमने काफी मेहनत की, लेकिन राम मंदिर का मुद्दा वोट में तब्दील नहीं हो पाया।' फैजाबाद के नए सांसद अवेधश प्रसाद ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'मैं उन लोगों के पुनर्वास में मदद करूंगा, जिनके घर और दुकानों को बीजेपी सरकार ने ढहा दिया। मैं भगवान राम की गरिमा को बनाए रखने के लिए काम करूंगा।'
बहरहाल, यूपी में बीजेपी को कई सीटों पर करारी हार का सामना पड़ा, लेकिन हम यहां जानने की कोशिश करेंगे कि फैजाबाद में बीजेपी की हार के क्या मायने हैं?
राम मंदिर पर था बीजेपी का फोकस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी में राम मंदिर का उद्घाटन किया था और इसे ऐसे इवेंट के तौर पर देखा जा रहा था, जो उनकी विरासत और चुनाव में बीजेपी की जीत
को मजबूती प्रदान करेगा। कई रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी की रैलियों में '500 वर्षों बाद रामलला अपने घर में आए हैं' और 'जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे' जैसे नारे गूंज रहे थे। राम मंदिर 1990 के दशक से ही बीजेपी की राजनीतिक का आधार रहा है और इसी की वजह से उसका राष्ट्रीय स्तर पर उभार देखने को मिला है। हालांकि, इस बार दलितों और अल्पसंख्यक वोटों का फायदा समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को मिला। विपक्ष ने जमकर यह प्रचार किया कि मोदी जी इस बार योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटा देंगे। इसके अलावा, खाद्य पदार्थों, डीजल, पेट्रोल, एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी का असर भी देखने को मिला।
'राम मंदिर नहीं बना बड़ा मुद्दा'
चुनाव के नतीजों से संकेत मिलते हैं कि बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा धर्म पर भारी पड़ा। एक अखबार के विश्लेषण के मुताबिक, 'चुनाव के नतीजों साफ है कि अगर बेरोजगारी, महंगाई और स्थानीय मुद्दों से सही तरीके से नहीं निपटा जा रहा है, तो सिर्फ मंदिर का मुद्दा काम नहीं काम कर सकता।' लोकनीति के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री का कहना था, 'बीजेपी का हुए नुकसान का संबंध 3 राज्यों से हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान शामिल हैं। खास तौर पर उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का निर्माण और उद्घाटन बड़ा मुद्दा नहीं बना और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस का सामाजिक गठबंधन कामयाब रहा।' राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र कुमार द्विवेदी ने कहा, 'पेपर लीक और बेरोजगारी जैसे मुद्दों का युवाओं पर असर पड़ा, जो काफी बड़ी संख्या में वोटर थे।'
बीजेपी के एक स्थानीय समर्थक अरविंद तिवारी ने बताया, 'अयोध्या में स्थानीय मुद्दे हावी रहे। अयोध्या के आसपास के गांवों के लोग इसलिए नाराज थे, क्योंकि मंदिर के पास उनकी जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा था। साथ ही, बहुजन समाज पार्टी का वोट समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद को ट्रांसफर हो गया, क्योंकि वह दलित हैं। सचाई यह है कि काफी कम अयोध्यावासी मंदिर जाते हैं। ज्यादातर श्रद्धालु बाहरी होते हैं। राम हमारे आराध्य हैं, लेकिन हम कैसे बचेंगे, जब आप हमारी आजीविका छीन लेंगे? राम पथ के निर्माण के दौरान स्थानीय लोगों को दुकान आवंटित करने का वादा किया गया था, लेकिन यह नहीं हुआ।'