Agrochemical stocks: एग्रोकेमिकल सेक्टर के लिए कैसी रहेगी दूसरी छमाही, स्टॉक्स पर क्या होगा असर? जानिए एक्सपर्ट से
Agrochemical stocks: एग्रोकेमिकल सेक्टर के लिए वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही मिलीजुली रही। अब दूसरी छमाही में क्या बड़े बदलाव आने वाले हैं? क्या अमेरिकी टैरिफ और चीनी डंपिंग कंपनियों को दबाए रखेंगे, या निर्यात का बूम इन स्टॉक्स को नई उड़ान देगा? जानिए एक्सपर्ट से।
देश के भीतर एग्रो-केमिकल की मांग कमजोर रही, जबकि विदेशी बाजारों में कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर दिखा।
Agrochemical stocks: एग्रोकेमिकल सेक्टर के लिए वित्त वर्ष 2025-26 की पहली दो तिमाही मिली जुली रहीं। IIFL के वाइस प्रेसिडेंट (रिसर्च) रंजीत सिरुमल्ला ( Ranjit Cirumalla) का कहना है कि इस सेक्टर के लिए दूसरी छमाही में हाल कमोबेश ऐसा ही रहेगा। घरेलू बाजार अभी भी कमजोर है, लेकिन एक्सपोर्ट ऑर्डर लगातार मजबूत बन रहे हैं।
देश में सुस्ती, विदेशों में बेहतर स्थिति
देश के भीतर एग्रो-केमिकल की मांग कमजोर रही, जबकि विदेशी बाजारों में कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर दिखा। सिरुमल्ला के मुताबिक, पहली तिमाही में मानसून जल्दी शुरू हुआ और ज्यादा दिनों तक चला। इसकी वजह से किसानों ने शुरुआत में खूब खरीदारी की और कंपनियों की बिक्री तेजी से बढ़ गई।
लेकिन दूसरी तिमाही में बारिश बहुत ज्यादा हो गई, जिससे खेतों में काम रुक गया। दवाइयों और उर्वरकों की खपत कम हो गई। इससे कंपनियों की घरेलू बिक्री अचानक धीमी पड़ गई। इसलिए आधे साल के नतीजों में भारत में सुस्ती दिखी, जबकि एक्सपोर्ट मार्केट ने कुछ सहारा दिया।
एक्सपोर्ट्स में रिकवरी शुरू
निर्यात वाले बाजारों में खासकर वे कंपनियां बेहतर रहीं, जिनके पास रेफ्रिजरेंट से जुड़े एग्रो-केमिकल उत्पाद हैं। दुनिया भर में मांग धीरे-धीरे वापस आ रही है, इसलिए ग्लोबल वॉल्यूम रिकवरी शुरू हो चुकी है। इसी तरह, पिछले एक-दो साल से जो भारी इन्वेंट्री जमा होने की समस्या थी, वह भी काफी हद तक खत्म हो चुकी है। इससे कंपनियों पर स्टॉक खाली करने का दबाव कम हुआ है।
हालांकि, कीमतें अभी भी कमजोर बनी हुई हैं क्योंकि बाजार पूरी तरह स्थिर नहीं हुआ है। फिर भी, कुछ एग्रो-केमिकल प्रोडक्ट्स में हाल ही में थोड़ी बहुत कीमत बढ़ोतरी नजर आई है। यह संकेत देती है कि अंतरराष्ट्रीय मांग धीरे-धीरे मजबूत हो रही है।
दूसरी छमाही में एक्सपोर्ट से ग्रोथ
सिरुमल्ला के मुताबिक, साल की दूसरी छमाही में ग्रोथ की असली उम्मीद निर्यात से है, क्योंकि घरेलू मांग इस साल वापस पटरी पर आने की संभावना कम है। भारत में एग्रो-केमिकल की कुल खपत का करीब 65-70% हिस्सा खरीफ सीजन पर निर्भर करता है। यह सीजन अब खत्म हो चुका है, इसलिए इस साल बाकी महीनों में घरेलू बिक्री में बड़ा सुधार मुश्किल माना जा रहा है।
इसी वजह से, कंपनियां फिलहाल एक्सपोर्ट ऑर्डर्स पर ज्यादा निर्भर रहेंगी। दूसरी छमाही में उनकी ग्रोथ मुख्य रूप से विदेशी बाजारों से ही आएगी। घरेलू सुधार के संकेत अब अगली वित्त वर्ष में ही देखने को मिल सकते हैं।
उत्तरी और लैटिन अमेरिका से बढ़ेगी मांग
निर्यात का पीक सीजन साल की दूसरी छमाही में आता है। इसमें खास तौर पर नॉर्थ अमेरिका और लैटिन अमेरिका जैसे बड़े बाजार सबसे ज्यादा मांग पैदा करते हैं। इन क्षेत्रों में कृषि चक्र भारत से अलग होता है, इसलिए वहां दूसरी छमाही में एग्रो-केमिकल्स की खरीद तेजी से बढ़ती है।
इसी वजह से सिरुमल्ला का मानना है कि दूसरी छमाही कंपनियों के लिए पहली छमाही की तुलना में काफी मजबूत होगी, खासकर उनके लिए जिनका कारोबार इन दोनों क्षेत्रों पर निर्भर है। कंपनियों को एक्सपोर्ट ऑर्डर्स से अच्छे नतीजों की उम्मीद रहेगी।
टैरिफ और चीनी डंपिंग का दबाव
सिरुमल्ला के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारतीय एग्रो-केमिकल कंपनियों की कमाई पर पड़ा है, क्योंकि इन अतिरिक्त शुल्कों ने उनके मार्जिन घटा दिए हैं। कुछ कंपनियों ने नुकसान कम करने के लिए शिपमेंट के रूट बदल दिए हैं या फिर अपनी अन्य बिजनेस यूनिट्स के बेहतर प्रदर्शन पर भरोसा किया है।
उन्होंने यह भी कहा कि ब्राजील और भारत में बढ़ते सस्ते डंपिंग की वजह से चीन घरेलू निर्माताओं पर दबाव और बढ़ सकता है। सस्ते चीनी उत्पाद बाजार हिस्सेदारी खा लेते हैं और कीमतें नीचे ले जाते हैं। इससे भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा कमजोर पड़ने का जोखिम है।
नई डील्स और आउटसोर्सिंग बनी राहत
नई डील्स और आउटसोर्सिंग फिलहाल इस सेक्टर के लिए सबसे बड़ा सहारा बनी हुई हैं। कई ग्लोबल कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग भारत को आउटसोर्स कर रही हैं। साथ ही नई मॉलिक्यूल्स के लिए जो कॉन्ट्रैक्ट मिल रहे हैं, वे कंपनियों की ग्रोथ को थामे हुए हैं।
सिरुमल्ला का कहना है कि जिन कंपनियों को नए ऑर्डर और कॉन्ट्रैक्ट मिल रहे हैं, वही इस समय सबसे बेहतर स्थिति में हैं। ये कंपनियां अभी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं और आने वाले महीनों में भी इनके लिए मजबूत ग्रोथ की उम्मीद है।
एग्रो केमिकल सेक्टर बड़ी कंपनिया
UPL Ltd: भारत की सबसे बड़ी एग्रो केमिकल कंपनियो में से एक। इसे बाजार में मजबूत और भरोसेमंद खिलाड़ी माना जाता है। कंपनी पेस्ट कंट्रोल और क्रॉप प्रोटेक्शन जैसे प्रोडक्ट बनाती है।
PI Industries Ltd: स्पेशलिटी केमिकल और कृषि रसायन में अग्रणी कंपनी। यह कीटनाशक, हर्बिसाइड जैसे उत्पाद बनाती है। नई मोलिक्यूल डेवलपमेंट और निर्यात पर भी जोर देती है।
Bharat Rasayan Ltd: कीटनाशक और अन्य कृषि रसायन बनाने वाली मिड साइज कंपनी। यह अपने सेगमेंट में स्थिर और पहचान वाली कंपनी है।
Sharda Cropchem Ltd: फसल सुरक्षा से जुड़े कई तरह के केमिकल बनाती है, जैसे पेस्टिसाइड, हर्बिसाइड और फंगिसाइड। कंपनी घरेलू और विदेशी दोनों बाजारो में सक्रिय है।
Rallis India Ltd: टाटा ग्रुप की पुरानी और स्थापित कृषि रसायन कंपनी। यह कीटनाशक और अन्य एग्रो केमिकल प्रोडक्ट बनाती है और लंबे समय से इस सेक्टर में मौजूद है।
इन कंपनियों पर क्यों नजर रखना जरूरी
UPL और PI Industries जैसे बड़े नाम भारत और विदेश दोनों जगह काम करते हैं, इसलिए इनकी पकड़ मजबूत है और इनका प्रदर्शन स्थिर माना जाता है। Bharat Rasayan, Sharda Cropchem और Rallis India जैसी मिड साइज कंपनियों को तब फायदा मिलता है, जब कृषि क्षेत्र में मांग बढ़ती है या निर्यात में सुधार आता है।
एग्रो केमिकल कंपनियों के शेयर खेती की स्थिति, मौसम, वैश्विक बाजार और कच्चे माल की कीमतों जैसे कई फैक्टर पर निर्भर करते हैं। इसी वजह से इस सेक्टर के स्टॉक अक्सर ऊपर नीचे होते रहते हैं।
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