बिहार चुनाव के नतीजे बाजार में तेजी से ज्यादा स्थिरता लाने वाले, इन सेक्टर्स और शेयरों पर बढ़ सकता है फोकस

Bihar Result Impact on Share Markets: अगर NDA की हार होती तो बाजार में उथलपुथल मच सकती थी। निकट भविष्य में यह फैसला उन सेक्टर्स में निवेशकों की दिलचस्पी बरकरार रखेगा, जो आमतौर पर नीतिगत निरंतरता से फायदा पाते हैं

अपडेटेड Nov 14, 2025 पर 4:51 PM
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वैसे तो राज्यों के चुनाव शेयर बाजारों पर कोई खास असर नहीं डालते लेकिन बिहार राज्य चुनावों के नतीजे केंद्र में एनडीए की मौजूदा स्थिति के कारण महत्वपूर्ण हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव में NDA की जीत साफ दिख रही है। राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 180 से अधिक पर बढ़त हासिल करते हुए यह गठबंधन प्रचंड जीत की ओर बढ़ रहा है। लेकिन पहली नजर में शेयर बाजार बिहार चुनाव के नतीजों से उत्साहित नहीं दिख रहा है। वैसे तो राज्यों के चुनाव शेयर बाजारों पर कोई खास असर नहीं डालते लेकिन बिहार राज्य चुनावों के नतीजे केंद्र में एनडीए की मौजूदा स्थिति के कारण महत्वपूर्ण हैं। लोकसभा में बीजेपी की स्ट्रेंथ कम हो गई है और NDA यानि कि नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस जेडी(यू) और टीडीपी जैसे प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगियों पर निर्भर है। इसके चलते राजनीतिक स्थिरता का गणित, गवर्नेंस के लिए एक अहम फैक्टर बन गया है।

एग्जिट पोल्स में बिहार में NDA के जीतने की उम्मीद जताई गई थी। अब चुनाव नतीजे पूरी तरह से सामने आने में बहुत ज्यादा देर नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या ये नतीजे शेयर बाजार में चुनाव के बाद की तेजी को बढ़ावा दे सकते हैं? या फिर उन्हें नए रिकॉर्ड हाई तक पहुंचा सकते हैं?

विपरीत नतीजों से मच सकती थी अफरा-तफरी


विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में जेडी(यू) की अच्छी पैठ है। ऐसे में कोई भी राजनीतिक आश्चर्य, खासकर बिहार से, गठबंधन के अंदर एकजुटता पर सवाल उठा सकता था। चुनावी प्रदर्शन में कमजोरी के किसी भी संकेत से छोटे सहयोगियों की प्रतिबद्धता, नीतिगत देरी की आशंका, या सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदर टकराव की संभावना के बारे में अटकलें लगाई जा सकती थीं।

वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव का कहना है कि बिहार में NDA की जीत उत्प्रेरक यानि कैटालिस्ट से ज्यादा स्थिरता लाने वाली खबर है। अगर NDA की हार होती तो बाजार में उथलपुथल मच सकती थी। अब अगले बड़े चुनाव पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि में मई 2026 में होंगे। इसलिए तब तक सब कुछ स्थिर है। संजीव श्रीवास्तव के अनुसार, यह फैसला बाजार की दिशा को नहीं बदलेगा, बस एक अनिश्चितता दूर करेगा।

एम्मर कैपिटल पार्टनर्स के सीईओ मनीषी रायचौधरी ने कहा कि चुनाव परिणामों ने प्रमुख नीतिगत फैसलों की राह की बाधा को दूर कर दिया है। सीएनबीसी-टीवी18 से बात करते हुए, मनीषी ने कहा, "जहां तक नीतिगत स्थिरता का सवाल है, यह स्पष्ट रूप से एक संकेत है... यह सत्तारूढ़ दल और NDA को कुछ और गुंजाइश देता है। बिहार चुनावों के कारण, विशेष रूप से कृषि और डेयरी से संबंधित, महत्वपूर्ण फैसले नहीं लिए जा रहे थे। ये राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे हैं। अब, यह उन फैसलों को अंतिम रूप देने के रास्ते खोलता है।" आगे कहा कि निकट भविष्य में कृषि, डेयरी, केमिकल, मैन्युफैक्चरिंग, ऑटो और निर्यात से जुड़े उद्योगों जैसे क्षेत्रों में मीडियम टर्म में अनुकूल परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

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बिहार के नतीजों से कौन से सेक्टर रहेंगे फोकस में

निकट भविष्य में यह फैसला उन सेक्टर्स में निवेशकों की दिलचस्पी बरकरार रखेगा, जो आमतौर पर नीतिगत निरंतरता से फायदा पाते हैं। जैसे कि रिटेल, हाउसिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, मीडिया, हेल्थकेयर और पब्लिक सर्विसेज। इन्हें राज्य में स्थिर प्रशासनिक माहौल और पूंजीगत व्यय की ​रुकावट रहित रफ्तार से फायदा होगा। इन सेक्टर्स में आदित्य विजन, वी2 रिटेल और हिंदुस्तान मीडिया वेंचर्स जैसे नाम बिहार की खपत और विज्ञापन भावना से जुड़े हैं। ऐसे में इनके शेयरों में दिलचस्पी बढ़ सकती है। आशियाना हाउसिंग, रेफेक्स इंडस्ट्रीज और जीना सीखो लाइफकेयर का बिहार में निवेश है। वरुण बेवरेजेज ने बक्सर में नई फैसिलिटी खोली है। जीआर इंफ्रा, पीएनसी इंफ्राटेक, एनसीसी, एलएंडटी और अशोका बिल्डकॉन जैसी इंफ्रास्ट्रक्चर-फोकस्ड कंपनियां राज्य के बड़े प्रोजेक्ट्स और चल रही केंद्रीय कनेक्टिविटी पहलों से फायदा उठा रही हैं।

बढ़ेगा लोकलुभावनवाद

एक पहलू यह भी है कि बिहार चुनाव के नतीजों को हर कोई बाजार के अनुकूल नहीं मान रहा है। डायमेंशन्स कॉर्पोरेट फाइनेंस सर्विसेज के एमडी अजय श्रीवास्तव का कहना है, "यह कड़ी मेहनत, फोकस्ड वर्क और मुफ्त सुविधाओं की जीत है... यह बाजारों के लिए बेस्ट नहीं है क्योंकि बदलाव की जरूरत कम हो रही है, इससे और अधिक राज्य लोकलुभावनवाद के रास्ते पर चल पड़ेंगे।"

आगे कहा कि राजनीतिक स्थिरता एक पॉजिटिव फैक्टर हो सकती है, लेकिन कल्याणकारी राज्यों का बढ़ना लॉन्ग टर्म में अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है। श्रीवास्तव के अनुसार, ऑटो, टेलिकॉम, अस्पताल, गोल्ड लोन कंपनियां, रक्षा ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं जिन पर फोकस रहेगा।

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