FIIs Returns to India or not: लगातार 38 कारोबारी दिनों में बिकवाली के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने 25 नवंबर को शानदार वापसी की और घरेलू इक्विटी मार्केट में 10 हजार करोड़ रुपये की नेट खरीदारी की। उस दिन इक्विटी बेंचमार्क इंडेक्स 1.25 फीसदी ऊपर चढ़े थे, जिसे बीजेपी की अगुवाई वाले महायुति की महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीत से सपोर्ट मिला। 25 नवंबर को एफपीआई की नेट खरीदारी से अनुमान लगाए जाने लगे कि करेक्शन के चलते एफपीआई अब घरेलू मार्केट में वापसी कर रहे हैं लेकिन एक और एनालिसिसि से इससे विपरीत संकेत मिल रहे हैं।
किस एनालिसिस से मिल रहे अलग संकेत
25 नवंबर को 10 करोड़ रुपये से अधिक की नेट खरीदारी से उम्मीद बंधी कि विदेशी निवेशक वापस लौट आए हैं। हालांकि यह उसी दिन हुआ, जिस दिन MSCI के अहम इंडेक्स के रीबैलेंसिंग का दिन था। MSCI के ग्लोबल स्टैंडर्ड इंडेक्स में वोल्टास, ओबेरॉय रियल्टी, बीएसई, कल्याण ज्वैलर्स और एल्केम लैबोरेटरीज जैसे शेयर शामिल हुए हैं। इसके अलावा MSCI के स्मॉलकैप इंडेक्स में भी कई स्टॉक्स शामिल हुए हैं। ऐसे में पैसिव फंडों को अपने पोर्टफोलियो को इस हिसाब से एडजस्ट करना होता है और नुवामा के कैलकुलेशन के मुताबिक पैसिव फंडों से 18,000 करोड़ रुपये की खरीदारी होनी चाहिए थी। चूंकि नेट खरीदारी 10,000 करोड़ रुपये ही रही, इसका मतलब है कि एक्टिव फंड्स ने 8,000 करोड़ रुपये की शुद्ध बिक्री की। मंगलवार को एफपीआई की शुद्ध खरीदारी घटकर 1,157 करोड़ रुपये हो गई और बुधवार तक यह और भी कम होकर केवल 7.7 करोड़ रुपये रह गई। इसका मतलब है कि अभी तक उनकी वापसी के ठोस संकेत नहीं मिले हैं।
इस कारण बाहर जा रहे के विदेशी निवेशक
पिछले दो महीने में एफपीआई ने 1300 करोड़ डॉलर (करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये) के शेयर बेच डाले। विदेशी निवेशकों ने यह बिकवाली चीन में राहत पैकेजों के ऐलान और भारतीय कंपनियों के उम्मीद से कमजोर सितंबर तिमाही के नतीजे पर भारी बिकवाली की। इसके अलावा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद 'अमेरिका फर्स्ट' पर जोर की संभावना को देखते हुए फंड का फ्लो अमेरिका की तरफ बढ़ा। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर राजनीतिक अनिश्चितता के चलते भी निवेशक सुरक्षित बाजारों की तरफ मूव किए। कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय बाजारों में जो गिरावट आई है, उसके चलते विदेशी निवेशकों तेजी से वापसी कर सकते हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि कंपनियों की कमाई में गिरावट के चलते वैल्यूएशन अभी भी काफी महंगा है।
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