HFT Firms : पावरफुल मशीनों के दम पर स्टॉक्स में कमा रहे अरबों, दिग्गजों पर भारी पड़े ये नए नवेले ट्रेडर
HFT Firms : इतनी सफलता के बावजूद अल्गो ट्रेडिंग कंपनियों के फाउंडर्स ने सुर्खियों से दूर रहने का विकल्प चुना है। आपको प्रेस में इनके बड़े-बड़े प्रोफाइल नजर नहीं आएंगे या कंपनियों की खरीद फरोख्त से जुड़ी उनकी खबरें भी नहीं आती हैं। इनके लाइमलाइट में नहीं आने की एक वजह एनएसई का कोलोकेशन सर्वर फैसिलिटी से जुड़ा विवाद हो सकता है
NSE के दिसंबर के डेटा से पता चलता है कि एक्सचेंज पर कुल ट्रेड्स में हाई फ्रेक्वेंसी ट्रेडिंग फर्म्स की हिस्सेदारी 54 फीसदी रही। बीएसई (BSE) पर यह आंकड़ा 41 फीसदी था
High frequency trading firms : कोविड के बाद के दौर में अनुभवी इनवेस्टर्स और नौसिखए ट्रेडर्स की किस्मत बदलने की कहानियां खासी सुर्खियों में रही हैं। हालांकि, एक कम चर्चित कहानी भी है जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। ये न्यू एज ट्रेडिंग कंपनियों की कहानियां हैं जिन्होंने धीरे-धीरे कमाई की और लगातार ऐसा करती रहीं। इस प्रकार वे बीते 4-5 साल में अपने प्रॉफिट को कई गुना बढ़ा चुकी हैं। दरअसल ये हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) फर्म हैं, जिन्हें मार्केट की भाषा में अल्गो फर्म्स भी कहा जाता है। ये तेज गति से ट्रेड करने के लिए बेहद जटिल अल्गोरिदम और शक्तिशाली कंप्यूटरों का इस्तेमाल करती हैं। NSE के दिसंबर के डेटा से पता चलता है कि एक्सचेंज पर कुल ट्रेड्स में इन कंपनियों की हिस्सेदारी 54 फीसदी रही। बीएसई (BSE) पर यह आंकड़ा 41 फीसदी था।
इस नंबर से दलाल स्ट्रीट पर शक्ति संतुलन में खासे बदलाव के संकेत मिलते हैं। यहां पर अब कंप्यूटर और गणित के विशेषज्ञ लेकिन नौसिखिए अपनी 30 के दशक की उम्र में बाजारों और कंपनियों की सीमित समझ के साथ पहले से स्थापित दिग्गजों को पूरी टक्कर दे रहे हैं। साथ ही आंकड़े बताते हैं कि ये एक्सपर्ट नौसिखिए इन दिनों दिग्गजों पर भारी पड़ रहे हैं।
कौन हैं बड़े खिलाड़ी
ज्यादातर लोगों ने ग्रेविटोन रिसर्च कैपिटल (Graviton Research Capital), अल्फाग्रेप सिक्योरिटीज (Alphagrep Securities), एपीटी पोर्टफोलियो (APT Portfolio), एनके रिसर्च (NK Research), क्वादिये सिक्योरिटीज (Quadeye Securities), दौलत एल्गोटेक (Dolat Algotech), टावर रिसर्च इंडिया (Tower Research India) और आईरेग ब्रोकिंग (iRage Broking) का नाम नहीं सुना होगा। वे एल्गोरिथम ट्रेडिंग की इस जटिल दुनिया के बड़े नाम हैं, जहां ट्रांजेक्शन और निवेश के फैसले गणित, सांख्यिकी और अत्याधुनिक तकनीक के एक दमदार संयोजन के आधार पर किए जाते हैं।
मनीकंट्रोल द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, इस क्षेत्र पर मुख्य रूप से QE Securities (Quadeye group का हिस्सा), Graviton Research और Tower Research India का दबदबा है। QE Securities का वित्त वर्ष 21 में नेट प्रॉफिट बढ़कर 353 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 19 में महज 33 करोड़ रुपये रहा था। वहीं इस दौरान टर्नओवर छह गुना बढ़कर 16,000 करोड़ रुपये से से 96,000 करोड़ रुपये हो गया।
गुड़गांव की ग्रेविटोन का नेट प्रॉफिट वित्त वर्ष 21 में 329 करोड़ रुपये हो गया जो वित्त वर्ष 17 में 55 करोड़ रुपये के स्तर पर था। आईआईटी दिल्ली से ग्रेजुएट निशील गुप्ता और अंकित गुप्ता द्वारा 2014 में स्थापित यह कंपनी अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी ट्रेड करती है। वित्त वर्ष 22 के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं।
इसी तरह Tower Research India का नेट प्रॉफिट वित्त वर्ष 21 में बढ़कर 334 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 17 में महज 50 लाख रुपये था। यह अमेरिका बेस्ड टावर रिसर्च की स्थानीय इकाई है।
एक अन्य एचएफटी कंपनी अल्फाग्रेब ने अपने वित्त वर्ष 22 के आंकड़े डिस्क्लोज कर दिए हैं। इनके मुताबिक, पांच साल में उसका नेट प्रॉफिट 3 करोड़ रुपये से बढ़कर 207 करोड़ रुपये हो गया है। इस कंपनी की स्थापना मोहित मुतरेजा और प्रशांत मित्तल ने 2009 में की थी। इसका लंदन, सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग में भी ऑपरेशन है।
इसी तरह एनके सिक्योरिटीज रिसर्च का नेट प्रॉफिट वित्त वर्ष 22 में 162 करोड़ रुपये रहा, जो एक साल पहले 50 करोड़ रुपये था। वहीं, लिस्टेड कंपनी Dolat Algotech का नेट प्रॉफिट वित्त वर्ष 22 में बढ़कर 167 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 17 में महज 1 करोड़ रुपये था। यह एचएफटी स्पेस में अकेली लिस्टेड कंपनी है।
क्या है बिजनेस मॉडल
आखिर एचएफटी कंपनियां क्या हैं और वे कैसे पैसे बनाती हैं? भले ही HFT कंपनियों को सामान्य रूप से अल्गो ट्रेडिंग फर्म कहा जाता है, लेकिन इनमें खासा अंतर है। Algo trading में ट्रेडिंग के फैसले लेने के लिए अल्गोरिदम का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं एचएफटी भी मुख्य रूप से अल्गो ट्रेडिंग है, लेकिन इसमें ट्रेड के लिए बेहद तेज गति वाली पावरफुल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही, मिलीसेकेंड के भीतर पोजिशन खत्म कर दी जाती है।
एक्सपर्ट्स ने कहा, ज्यादातर अल्गो कंपनियां एचएफटी और गैर एचएफटी स्ट्रैटजीस के मिलेजुले रूप को इस्तेमाल करती हैं।
सुर्खियों से दूर रहते हैं फाउंडर
इतनी सफलता के बावजूद अल्गो ट्रेडिंग कंपनियों के फाउंडर्स ने सुर्खियों से दूर रहने का विकल्प चुना है। आपको प्रेस में इनके बड़े-बड़े प्रोफाइल नजर नहीं आएंगे या कंपनियों की खरीद फरोख्त से जुड़ी उनकी खबरें भी नहीं आती हैं।
एक सूत्र ने कहा कि इन इनवेस्टर्स के लाइमलाइट में नहीं आने की एक वजह एनएसई का कोलोकेशन सर्वर फैसिलिटी से जुड़ा विवाद हो सकता है। इस बहुचर्चित मामले से एनएसई के कोलोकेशन नियमों की खामियां उजागर हो गई थीं, जिनका कुछ ट्रेडिंग मेंबर्स ने दोहन किया था।
एक सूत्र ने कहा, “फाउंडर्स को पब्लिसिटी की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनमें से अधिकांश न तो क्लाइंट जोड़ना चाहते हैं और न ही कैपिटल चाहते हैं। दूसरा, दूसरे इनवेस्टर्स और टेक्निकल एनालिस्ट की तरह ये अपनी ट्रेडिंग स्ट्रैटजी पर बात नहीं करना चाहते। इसके अलावा, यदि आपके पास एल्गो ट्रेडिंग है तो भी आप बहुत सारी पूंजी का निवेश नहीं कर सकते हैं। यह शेयरों के बड़े ब्लॉक खरीदने और फिर कीमत बढ़ने की प्रतीक्षा करने जैसा नहीं है।”
दुनिया में इन पर क्यों हो रही है बहस
HFTs वैश्विक स्तर पर बहस के केंद्र में रहे हैं। उनके चलते पैदा व्यवस्थित जोखिम की ओर आलोचकों का भी ध्यान गया है। एल्गो के कारण विश्व स्तर पर और साथ ही भारत में फ्लैश क्रैश के मामले सामने आए हैं।
इसके अलावा, एल्गो ट्रेडिंग फर्मों पर सामान्य निवेशकों और यहां तक कि म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन फंड जैसे लंबी अवधि के संस्थागत निवेशकों की कीमत पर अस्थिरता बढ़ाने और कमाई करने का आरोप लगाया जाता है, जो हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग में नहीं हैं।
वहीं, एल्गो ट्रेडिंग कंपनियों का तर्क है कि वे लिक्विडिटी प्रदान करके बाजार दक्षता में सुधार करते हैं। एक आम एचएफटी रणनीति में दो-तरफा कोट (एक साथ बाई और सेल का ऑर्डर देना, और अंतर को जेब में रखना) दिए जाते हैं। इस प्रकार वे मार्केट मेकर के रूप में काम कर रहे हैं।