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SEBI के ऑप्शंस ट्रेडिंग के नियमों को सख्त बना देने से फायदे की जगह हो रहा नुकसान

सेबी के नए नियमों से इंडेक्स डेरिवेटिव्स में काफी बदलाव आया है। कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ गया है। वीकली एक्सपायरी की फ्रीक्वेंसी कम हो गई है। ऑप्शन के एक्सपायरी डेज पर मार्जिन अब बढ़ गया है। इसके कई खराब नतीजे देखने को मिले हैं

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 19, 2024 पर 6:20 PM
SEBI के ऑप्शंस ट्रेडिंग के नियमों को सख्त बना देने से फायदे की जगह हो रहा नुकसान
सरकार का मकसद रिटेल इनवेस्टर्स के हितों की सुरक्षा था। लेकिन, रिटेल इनवेस्टर्स रेगुलेटेड एक्सचेजों की जगह अब अनरेगुलेटेड प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने लगे हैं।

मार्केट रेगुलेटर्स ने रिटेल इनवेस्टर्स को लॉस से बचाने के लिए फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (एफएंडओ) के लिए कई नियम बदले हैं। लेकिन, इनका ऑप्शंस ट्रेडिंग पर खराब असर पड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीएसई और एनएसई पर ऑप्शंस ट्रेडिंग वॉल्यूम में बड़ी गिरावट आई है। एनएसई पर बैंक निफ्टी ऑप्शंस की डेली ट्रेडिंग वॉल्यूम गिरकर इस महीने 2 करोड़ कॉन्ट्रैक्ट्स से कम रह गई है। नए नियमों के लागू होने से पहले यह 20 करोड़ थी। बैंक निफ्टी के वीकली कॉन्ट्रैक्ट के डिसकंटिन्यू होने से मंथली कॉन्ट्रैक्ट में दिलचस्पी काफी कम हो गई है।

सरकार और सेबी को वॉल्यूम में इतनी गिरावट का अंदाजा नहीं था

एनालिस्ट्स, ब्रोकर्स और सरकारी अफसरों को वॉल्यूम में कमी आने का अंदाजा था। लेकिन, ऐसा लगता है कि उन्हें वॉल्यूम में इतनी ज्यादा गिरावट की आशंका नहीं थी। ऑप्शंस (Options) मार्केट में कुल वॉल्यूम एक महीने में 40 फीसदी से ज्यादा गिर गई है। सेबी (SEBI) और फाइनेंस मिनिस्ट्री के इन प्रतिबंधों को लगाने से पहले ऑप्शंस ट्रेडिंग के लिहाज से इंडियन मार्केट दुनिया में पहले पायदान पर था। सेबी के रिसर्च में यह पाया गया कि पांच फीसदी से कम ऑप्शंस ट्रेडर्स को फायदा होता है। इसलिए सेबी ने नियमों को सख्त बनाने में जल्दबाजी दिखाई।

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