Twitter अब एलॉन मस्क (Elon Musk) की हो जाएगी। पहले से उनके पास टेस्ला (Tesla) और स्पेसएक्स (SpaceX) जैसी दिग्गज कंपनियां हैं। इस डील की चर्चा इंडिया में ज्यादा हो रही है। इसकी वजह हैं पराग अग्रवाल (Parag Agarwal)। वह ट्विटर के सीईओ हैं। इस डील से उनके फ्यूचर को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
क्या Parag Agarwal ट्विटर के बॉस बने रहेंगे? क्या एलॉन मस्क अपनी पसंद के व्यक्ति को ट्विटर का बॉस बनाएंगे? क्या अग्रवाल को ट्विटर में ही कोई दूसरी जिम्मेदारी मिलेगी? ये ऐसे सवाल हैं, जिनकी चर्चा इंडिया में ज्यादातर मिडिल क्लास परिवारों में हो रही है।
पराग अग्रवाल के ट्विटर के बॉस बनने पर इंडिया में जश्न मना था। मिडिल क्लास युवाओं के लिए अग्रवाल प्रेरणा के स्रोत हैं। इंडिया में पढ़ाई करने वाले अग्रवाल का ट्विटर जैसी कंपनी का सीईओ बनना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। इसकी वजह यह है कि उन्होंने बहुत कम उम्र में यह बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वह अभी 37 साल के हैं। अगले महीने की 21 तारीख को उनका जन्मदिन है।
अग्रवाल पिछले साल नवंबर में ट्विटर के सीईओ बने थे। उन्होंने कंपनी में जैक डोर्सी की जगह ली थी। मस्क की डील की खबर आने के बाद अग्रवाल ने ट्वीट किया। इसमें उन्होंने कहा, "मैं अपनी टीम को लेकर बहुत गौरवान्वित हूं और काम से बहुत प्रेरित हूं जो पहले कभी इतना महत्वपूर्ण नहीं था। मैं जानता हूं यह एक बड़ा बदलाव है और आप भी इसका अंदाजा लगा रहे होंगे कि आपके लिए और ट्विटर के फ्यूचर के लिए इसका क्या मतलब है।"
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अग्रवाल के फ्यूचर को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। अगर आप हालिया घटनाक्रम को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि एलॉन मस्क के अग्रवाल को ट्विटर का सीईओ बनाए रखने की उम्मीद कम लगती है। मस्क ने सबसे पहले ट्विटर में 9 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी ली। फिर, उनके कंपनी के बोर्ड में शामिल होने की चर्चा शुरू हुई। यह चर्चा तब खत्म हुई, जब अग्रवाल ने स्पष्ट कर दिया कि मस्क ट्विटर के बोर्ड में शामिल नहीं होंगे।
मस्क ने फिर ट्विटर को खरीदने की पेशकश कर दी। उन्होंने ट्विटर को फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए बहुत अहम बताया। वह पिछले कुछ हफ्तों में ट्विटर के काम करने के तरीके को लेकर कई ट्वीट कर चुके हैं। इन ट्वीट से यह संकेत मिलता है कि वह ट्विटर के कामकाज के तरीके से नाखुश हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि उन्हें ट्विटर के मैनेजमेंट पर भरोसा नहीं है। अगर उनके इस स्टेटममेंट का मतलब निकाला जाए तो साफ है कि वह ट्विटर को अपने ढंग से चलाना चाहेंगे।
उधर, ट्विटर के बोर्ड ने जिस तरह से कंपनी (ट्विटर) को मस्क को बेचने का फैसला लिया, उससे संकेत मिलता है कि कंपनी का बोर्ड अग्रवाल की नेतृत्व क्षमता को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं था। इसकी वजह यह है कि अग्रवाल ने पिछले साल के आखिर में इस कंपनी की कमान संभाली थी। कंपनी के बोर्ड का मानना था कि ट्विटर उतने पैसै नहीं कमा रही है, जितनी वह कमा सकती है। ऐसे में अग्रवाल पर ट्विटर का प्रॉफिट बढ़ाने का बहुत दबाव रहा।
मस्क ने यह भी कहा था कि ट्विटर को ग्रो करने और 'फ्री स्पीच' को बढ़ावा देने के लिए उसका प्राइवेट कंपनी बनना जरूरी है। इससे यह संकेत मिलता है कि ट्विटर के लिए उनका खास विजन है। कंपनी को खरीदने के बाद वह इस विजन को पूरा करने की कोशिश करेंगे। वैसे भी कंपनी को खरीदने या बेचने के बाद आम तौर पर उसके मैनेजमेंट में बदलाव होता है।